आखिर क्यों बच्चों से दूर हो रहे हैं भारतीय कपल?
India Fertility Rate गिरने से जन्म दर पर संकट, रिपोर्ट में चौंकाने वाले आंकड़े
जानकी शरण द्विवेदी
India Fertility Rate पर जारी संयुक्त राष्ट्र की ताज़ा जनसांख्यिकी रिपोर्ट ने भारत को लेकर गंभीर संकेत दिए हैं। भारत को अब जनसंख्या विस्फोट नहीं, बल्कि जनसंख्या गिरावट के खतरे का सामना करना पड़ सकता है। India Fertility Rate में अचानक आई भारी गिरावट ने विशेषज्ञों और नीति निर्माताओं को चौंका दिया है। संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (UNFPA) की ताजा रिपोर्ट ‘द रियल फर्टिलिटी क्राइसिस’ के अनुसार, भारत की कुल प्रजनन दर 1.9 प्रति महिला तक आ चुकी है, जो 2.1 प्रतिस्थापन स्तर से नीचे है।
इसका सीधा अर्थ है कि एक पीढ़ी अब अगली पीढ़ी जितने बच्चे पैदा नहीं कर पा रही है। यह संकट केवल संख्या का नहीं, बल्कि प्रजनन स्वतंत्रता, आर्थिक बाधाओं और सामाजिक असमानताओं का है। इस गिरती India Fertility Rate के गंभीर नतीजे अगले दो दशकों में देखने को मिल सकते हैं, जब भारत की जनसंख्या तेजी से उम्रदराज होने लगेगी।
आखिर क्यों घट रही है India Fertility Rate?
संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट बताती है कि भारत में प्रजनन स्वतंत्रता आज भी लाखों लोगों के लिए केवल एक सपना है। रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 38 प्रतिशत लोग आर्थिक कारणों से इच्छानुसार संतान नहीं कर पा रहे हैं। इसके अलावा 21 प्रतिशत लोग नौकरी की असुरक्षा, 22 प्रतिशत आवास की कमी और 18 प्रतिशत बाल देखभाल सेवाओं के अभाव के कारण माता-पिता बनने से हिचकते हैं।
India Fertility Rate में गिरावट केवल जीवनशैली या शिक्षा के कारण नहीं, बल्कि एक जटिल सामाजिक-आर्थिक तंत्र का परिणाम है। इसके पीछे गर्भनिरोधक साधनों की अनुपलब्धता, स्वास्थ्य सेवाओं तक सीमित पहुंच और सामाजिक दबाव भी शामिल हैं।
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India Fertility Rate: भारत में कहां ज्यादा और कहां कम?
रिपोर्ट में यह भी उल्लेख किया गया है कि देश के भीतर भी India Fertility Rate में भारी असमानता देखी जा रही है। बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में यह दर अभी भी 2.1 से ऊपर है। जबकि केरल, तमिलनाडु, दिल्ली और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में यह दर 1.5 से भी नीचे जा चुकी है। इसका कारण राज्यों में शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार और महिला सशक्तिकरण के स्तर में अंतर है। इससे यह भी स्पष्ट होता है कि भारत में एकरूप जनसंख्या नीति अपनाना प्रभावी नहीं होगा।
India Fertility Rate में गिरावट के क्या होंगे खतरनाक परिणाम?
अगर यही रफ्तार जारी रही, तो भारत को भविष्य में बुजुर्गों की बड़ी आबादी, कामकाजी युवाओं की कमी और आर्थिक असंतुलन का सामना करना पड़ेगा। India Fertility Rate में गिरावट का मतलब है कि आने वाले दशकों में स्कूलों में बच्चों की संख्या घटेगी, नौकरी के इच्छुक युवा कम होंगे, और पेंशन, स्वास्थ्य सेवा जैसे क्षेत्रों में सरकार पर बोझ बढ़ेगा।
UNFPA की रिपोर्ट के अनुसार, भारत की जनसंख्या 2025 के अंत तक 1.46 अरब हो जाएगी, जो दुनिया में सर्वाधिक होगी। लेकिन इसके बाद इसमें स्थिरता या गिरावट आ सकती है।
क्या India Fertility Rate में गिरावट का हल है?
रिपोर्ट साफ तौर पर कहती है कि हल केवल जनसंख्या बढ़ाने की नीति नहीं, बल्कि ‘प्रजनन स्वतंत्रता’ है।
इसका अर्थ है हर व्यक्ति को यह अधिकार और सुविधा मिले कि वह कब और कितने बच्चे पैदा करना चाहता है। हर महिला को अपनी प्रजनन क्षमता से जुड़े फैसलों में पूरा नियंत्रण और जानकारी हो। इसके लिए स्वास्थ्य सेवाओं का विस्तार, सुरक्षित गर्भनिरोधक उपायों की उपलब्धता, यौन शिक्षा, मानसिक स्वास्थ्य सेवाएं, और सामाजिक समर्थन तंत्र को मजबूत करना आवश्यक है।
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भारत की युवा जनसंख्या अब भी उम्मीद की किरण
हालांकि, India Fertility Rate में गिरावट के बावजूद भारत के पास अभी भी विश्व की सबसे बड़ी युवा जनसंख्या है। 0-14 वर्ष के बच्चे देश की 24 प्रतिशत आबादी हैं। 10-19 आयु वर्ग में 17 प्रतिशत युवा हैं। जबकि 10-24 वर्ष के आयु वर्ग में 26 प्रतिशत आबादी आती है। देश की 68 प्रतिशत जनसंख्या अभी भी 15-64 वर्ष की कार्यशील आयु में है, जो कि भारत को आर्थिक रूप से सशक्त बना सकती है – बशर्ते युवाओं को सही अवसर और समर्थन मिले।
India Fertility Rate को नजरअंदाज करना होगा खतरनाक
India Fertility Rate में गिरावट केवल जनसंख्या कम होने का मामला नहीं, बल्कि यह देश के भविष्य की नींव से जुड़ा मुद्दा है। इस पर जल्द कार्रवाई नहीं हुई, तो आने वाले वर्षों में भारत को जनसंख्या संतुलन, आर्थिक विकास और सामाजिक ढांचे पर भारी असर देखने को मिल सकता है।
इसलिए यह आवश्यक है कि भारत अब जनसंख्या नियंत्रण नहीं, बल्कि जनसंख्या संतुलन की रणनीति पर काम करे, जहां हर व्यक्ति को संतान संबंधी निर्णय लेने की स्वतंत्रता और संसाधन मिल सकें।
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