Gonda News : बोझ नहीं आदर, सेवा और सम्मान के अधिकारी हैं बुजुर्ग

बुजुर्गों के भरण-पोषण हेतु सरकार देती है पांच सौ रुपये प्रतिमाह

80 वृद्ध जन शहर के पंतनगर स्थित वृद्धाश्रम में गुजार रहे हैं अपनों के बिना जिंदगी

जनकी शरण द्विवेदी

गोण्डा। विश्व में वृद्धों एवं प्रौढ़ों के साथ होने वाले अन्याय, उपेक्षा और दुर्व्यवहार पर लगाम लगाने के उद्देश्य से प्रत्येक वर्ष 21 अगस्त को अंतरराष्ट्रीय वृद्ध दिवस के रूप में मनाया जाता है, जिसे भिन्न-भिन्न-नामों से जाना जाता है जैसे ‘अंतरराष्ट्रीय बुजुर्ग दिवस’, ‘अंतरराष्ट्रीय वरिष्ठ नागरिक दिवस’, ‘विश्व प्रौढ़ दिवस’ अथवा ‘अंतरराष्ट्रीय वृद्धजन दिवस’ इत्यादि। इस दिवस को मनाने का मुख्य उद्देश्य समाज के वृद्धजनों एवं प्रौढ़ों को सम्मान देने के अलावा उनकी वर्तमान समस्याओं के बारे में जनमानस में जागरूकता बढ़ाना है। इस दिवस की शुरुआत 19 अगस्त 1988 को अमेरिका के राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन ने अपने घोषणा-पत्र पर हस्ताक्षर करके 21 अगस्त को अमेरिका में राष्ट्रीय वरिष्ठ नागरिक दिवस घोषित किया। उसके बाद से यह दिवस 21 अगस्त से प्रत्येक वर्ष मनाया जाने लगा। इसके बाद संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 14 दिसंबर 1990 को 21 अगस्त को ‘विश्व वरिष्ठ नागरिक दिवस’ के रूप में मनाने की घोषणा की।
इस दिवस को मनाये जाने के महत्व के बारे में गोण्डा शहर से महज तीन किलोमीटर की दूरी पर स्थित गाँव करनीपुर-हारीपुर के निवासी सेवानिवृत्त अध्यापक राज नरायण मिश्र का कहना है कि माता-पिता, गुरुजन, बुजुर्गों को देवताओं की श्रेणी में रखा गया है, लेकिन आज कई लोग अपने बुजुर्गों से नाता तोड़ने में लगे हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के अवसरों का अभाव, बेहतर रोजगार के लिए शहरों की तरफ पलायन, घर-घर तक टीवी, मोबाइल की पहुंच आदि के कारण युवा अपने बुजुर्गों से दूर हो रहे हैं द्य बुजुर्गों को प्रताड़ना का शिकार होना पड़ रहा है। हालात यह हो गए हैं कि बुजुर्गों को इलाज के बहाने कहीं ले जाकर छोड़ने में भी उनके अपने बच्चे और परिवार के सदस्य गुरेज नहीं कर रहे हैं। कोई धार्मिक स्थल के पास छोड़कर चला जाता है तो कोई अस्पताल में, जोकि अत्यंत उपेक्षापूर्ण हैं। मिश्र का कहना है कि विश्व में इस दिवस को मनाने के तरीके अलग-अलग हो सकते हैं, परन्तु सभी का मुख्य उद्देश्य यही है कि वे अपने बुजुर्गों एवं वरिष्ठजनों के योगदान को न भूलें और उनको अकेलेपन की कमी को महसूस न होने दें। हमारा भारत तो बुजुर्गों को भगवान के रूप में मानता है। इतिहास में अनेकों ऐसे उदाहरण है कि माता-पिता की आज्ञा से जहां भगवान श्रीराम जैसे अवतारी पुरुषों ने राजपाठ त्याग कर वनों में विचरण किया, मातृ-पितृ भक्त श्रवण कुमार ने अपने अन्धे माता-पिता को काँवड़ में बैठाकर चारधाम की यात्रा कराई। फिर क्यों आधुनिक समाज में वृद्ध माता-पिता और उनकी संतान के बीच दूरियां बढ़ती जा रही है। समाज में अपनी अहमितय न समझे जाने के कारण हमारा वरिष्ठ नागरिक समाज दुःखी, उपेक्षित एवं त्रासद जीवन जीने को विवश है। वरिष्ठजनों को इस दुःख और कष्ट से छुटकारा दिलाना आज की सबसे बड़ी जरूरत है।
वहीं शहर के पंतनगर स्थित वृद्धाश्रम में बतौर संरक्षक तैनात अरविंद सिंह का कहना है कि वर्तमान समाज में वरिष्ठ नागरिकों की दशा अधिक चिन्तनीय है। दादा-दादी, नाना-नानी की यह पीढ़ी एक जमाने में भारतीय परंपरा और परिवेश में अतिरिक्त सम्मान की अधिकारी हुआ करती थी और उसकी छत्रछाया में संपूर्ण पारिवारिक परिवेश निश्चिंत और भरपूर खुशहाल महसूस करता था। न केवल परिवार में बल्कि समाज में भी इस पीढ़ी की रुतबा और शान थी। आखिर यह शान क्यों लुप्त होती जा रही है? क्यों वृद्ध पीढ़ी उपेक्षित होती जा रही है? क्यों वरिष्ठजनों को निरर्थक और अनुपयोगी समझा जा रहा है? उनका कहना है कि वरिष्ठजनों की उपेक्षा से परिवार तो कमजोर हो ही रहे हैं लेकिन सबसे ज्यादा नई पीढ़ी प्रभावित हो रही है। इस समस्या का समाधान पाने के लिए जन-जन की चेतना को जागना होगा। इस दृष्टि से विश्व वरिष्ठ नागरिक दिवस का मनाया जाना एक महत्वपूर्ण भूमिका साबित हो सकती है। उन्होंने बताया कि इस समय आश्रम में 80 वृद्धजन पंजीकृत हैं, जिनका भरण-पोषण और उनके स्वास्थ्य के देखभाल आश्रम में की जा रही है। इस क्रम में मनोरोग विशेषज्ञ डॉ अशोक सिंह का कहना है कि परिवार चलाने के लिए आपसी सामंजस्य बहुत जरूरी है। हर व्यक्ति की अपेक्षा होती है, जिसकी पूर्ति नहीं होने पर परिवार में कलह होती है। दूसरी बात यह कि जब मां-बाप की उम्र अधिक हो जाती है तब बेटे-बहू स्वयं पारिवारिक निर्णय लेना चाहते हैं और उसमें बुजुर्गों का हस्तक्षेप नहीं चाहते। हस्तक्षेप होने पर कलह होती है। आज की भागदौड़ भरी जिंदगी के कारण विचारों का आदान-प्रदान नहीं हो पाता, जिससे बुजुर्गों से दूरी बढ़ ही है।
सरकारी प्रयास :
जिला समाज कल्याण अधिकारी मोती लाल का कहना है कि वरिष्ठ नागरिकों को आर्थिक सहायता प्रदान किए जाने को लेकर समाज कल्याण विभाग द्वारा वृद्धावस्था पेंशन योजना का संचालन किया जा रहा है। इस योजना का लाभ उन सभी शहरी और ग्रामीण क्षेत्र के बाशिंदों को दिया जाता है, जिनकी उम्र 60 साल से अधिक हो। इसके अलावा ग्रामीण क्षेत्र के निवासियों की सालाना आय 48,400 रुपये एवं शहरी क्षेत्र के निवासियों की सालाना आय 56,460 रुपये से अधिक न हो। योजना के तहत वृद्धजन को 500 रुपये प्रति माह की दर से चार तिमाही किस्तों में पेशन की धनराशि सीधे उनके बैंक खाते में भेजी जाती है। उन्होंने कहा कि गोंडा जनपद के एक लाख पांच हजार दो सौ उन्नीस वरिष्ठ नागरिकों को वर्तमान में इसका लाभ मिल रहा है। आवेदन करने के लिए संबंधित व्यक्ति की एक फोटो, जन्म/आयु प्रमाण पत्र, पहचान प्रमाण पत्र वोटर आईडी कार्ड, आधार कार्ड, राशन कार्ड आदि में से कोई एक, बैंक पासबुक, आय प्रमाण पत्र की आवश्यकता होती है। ग्रामीण क्षेत्र के लाभार्थी ऑनलाइन आवेदन करके हार्ड कॉपी अपने क्षेत्र के बीडीओ कार्यालय में जमा करें। खण्ड विकास अधिकारी कार्यालय के माध्यम से जिला समाज कल्याण अधिकारी, कार्यालय को भेजा जाता है। वहीं शहरी क्षेत्र में ऑनलाइन आवेदन की हार्ड कॉपी उप जिलाधिकारी/सिटी मजिस्ट्रेट कार्यालय में जमा की जाती है। प्राप्त प्रस्ताव को जांच के बाद मंजूर करते हुए पेंशन की सहायता राशि लाभार्थी के बैंक खाते में भेजी जाती है।

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