Gonda News : पंचायत भवनों का नहीं हो रहा इस्तेमाल

प्रेम नारायण मिश्र

धानेपुर, गोण्डा। सरकार द्वारा ग्राम पंचायतों के विकासपरक गतिविधियों का संचालन अथवा ग्राम वासियों की विभिन्न समस्याओं का निस्तारण गाँव में बने सचिवालय में ही कराये जाने के उद्देश्य से सरकार द्वारा भारी भरकम बजट खर्च कर प्रत्येक ग्राम पंचायत में पंचायत भवनों का निर्माण कराया गया था, जिसमे नियमित रूप से ग्राम प्रधान, सेक्रेटरी, लेखपाल अथवा सम्बंधित अधिकारियों की उपस्थिति में बैठक किया जाना था। मुज़ेहना ब्लॉक के 57 ग्राम पंचायतों में शायद ही कोई ऐसा सचिवालय हो जिसका निर्माण के बाद से संचालन किया गया हो। यही नहीं, तमाम पंचायत भवन तो अब ढहने जाने की पोजीशन ले चुके हैं चांकाने वाली बात तो भी है कि निर्माण के बाद लम्बे अरसे से उपयोग में न होने के बाद की कई बार काया कल्प के लिए ग्राम पंचायतों को बजट भी आंवटित किये जा चुके हैं, किन्तु धरातल पर उन सभी पंचायतों भवनों में बड़ी बड़ी घास और झाड़ियाँ उगी हुयी हैं। खिड़की दरवाजे सब टूट चुके हैं। परिसर में बने शौचालय की स्थिति देखकर लगता है कि जैसे बनने के बाद किसी ने उसका उद्घाटन भी नही किया हो। ऐसी हालत किसी एक पंचायत भवन की नही, बल्कि सभी ग्राम पंचायतों की है। ग्राम पंचायत बछईपुर और बनगाई में तो पंचायत भवनों का लगभग जीवन समाप्त होने को है।
ग्राम पंचायत मतवरिया में नहर किनारे तलहटी में पंचायत भवन की एक तरफ की दीवाल ढह गयी है जबकि दरवाजे खिड़कियों का पता नही लगे भी थे अथवा नही, बेसहूपुर का तो कारनामा ही पुरुस्कृत किये जाने के योग्य है कई बार कायाकल्प और इंटरलाकिंग कराये जाने के बाद भी न तो उसकी सूरत बदली और न ही आने जाने के लिए कोई रास्ता ही बनवाया जा सका, ग्राम पंचायत दुर्जनपुर ने तो सभी को मात दे दी वहां के पूर्व ग्राम प्रधान रही कमला देवी ने पंचायत भवन का पूरा पैसा ही डकार लिया करीब 14 लाख से केवल पंचायत भवन की नीव ही भरी जा सकी,अब उनके बाद चुनी गयीं ग्राम प्रधान प्रभावती का भी कार्यकाल खत्म होने को है लेकिन न तो पंचायत भवन बना और न उनसे धन रिकबरी की कार्यवाही की जा सकी है। अब इन सबके बावजूद अधिकारी प्रतिदिन जांच और कार्यवाही के लिए दौड़ लगाते तो हैं मगर उनके दौड़भाग का परिणाम क्या होता है ये लक्ष्मी पति भगवान विष्णु ही जाने, खैर जो भी है एक बात तो अस्पष्ट है की गाँवों के विकास की जिम्मेदारी उठाने वाले तथा निगरानी के लिए तैनात सरकारी नुमाइंदों के तालमेल की वजह से न तो सरकार की मंशा पूरी हो रही और ना ही गावों का विकास हो पा रहा है।

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