दलित हत्या में मिली सख्त सजा, दोषी महिला को उम्रकैद
गोली मारकर रेलवे स्टेशन परिसर में की गई थी दलित हत्या
जानकी शरण द्विवेदी
गोंडा। दलित हत्या के एक दर्दनाक मामले में 16 साल बाद न्याय मिला है। जिले की विशेष अदालत ने गुरुवार को एक महिला को आजीवन कारावास और अर्थदंड की सजा सुनाई। यह फैसला समाज में जातीय उत्पीड़न के खिलाफ न्यायपालिका की सख्त चेतावनी के रूप में देखा जा रहा है।
दलित हत्या मामले में 16 वर्षों बाद आया फैसला
गोंडा जिले के छपिया थाना क्षेत्र में वर्ष 2008 में घटित दलित हत्या के इस मामले में अब जाकर इंसाफ हुआ है। विशेष न्यायाधीश (एससी-एसटी एक्ट) सूर्य प्रकाश सिंह ने बभनान कस्बे की विमला मिश्रा को दोषी ठहराया और उन्हें उम्रकैद की सजा सुनाई। साथ ही अदालत ने 30 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया। जुर्माना न चुकाने पर दोषी महिला को अतिरिक्त नौ महीने का कारावास भुगतना होगा। यह फैसला दलित हत्या मामलों में न्यायिक प्रणाली की गंभीरता को रेखांकित करता है।
गोली मारकर की गई थी दलित युवक की हत्या
मृतक विजय कुमार अपने परिजनों के साथ बभनान रेलवे स्टेशन से ट्रेन पकड़ने पहुंचा था। स्टेशन परिसर में मौजूद एक पेड़ के नीचे खड़े विजय को आरोपी अमरेंद्र मिश्रा ने साइकिल से ठोकर मार दी। जब विजय ने आपत्ति जताई तो अमरेंद्र और उसकी मां विमला मिश्रा ने उसे जातिसूचक गालियां दीं। विरोध करने पर विमला मिश्रा ने अपने बेटे को पिस्टल थमा दी और कहा कि इसे जान से मार दो। इसके बाद अमरेंद्र ने विजय के सीने में सटाकर गोली मार दी, जिससे उसकी मौके पर ही मौत हो गई। यह दलित हत्या का क्रूरतम उदाहरण था।
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गवाही, साक्ष्य और कानून ने तय की सजा की दिशा
मृतक के भाई अजय कुमार ने छपिया थाने में एफआईआर दर्ज कराई। विवेचक ने साक्ष्य एकत्रित कर मां-बेटे के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की। बाद में साल 2011 में आरोपी अमरेंद्र फरार हो गया और उसकी पत्रावली अलग कर दी गई। सत्र परीक्षण में उपलब्ध साक्ष्यों, गवाहों और अधिवक्ताओं की दलीलों के आधार पर कोर्ट ने विमला मिश्रा को दोषी माना। दलित हत्या के इस मामले में कोर्ट के निर्णय से पीड़ित परिवार को लंबे समय बाद न्याय मिला है।
समाज को झकझोरने वाली रही दलित हत्या की यह घटना
ग्राम भटहा जंगल टोला (थाना गौर, जिला बस्ती) निवासी अजय कुमार ने जो तहरीर दी थी, उसमें दलित हत्या की पूरी बर्बरता सामने आई थी। अदालत में इसे गंभीरता से लिया गया। इस मामले ने यह साबित किया कि जातीय आधार पर की गई हिंसा को कोई भी बख्शा नहीं जाएगा।

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