बाल विवाह की भयावहताःबालिका बधू की अजब-गजब कहानी
जीजा से शादी, किंतु देवर से मोहब्बत, घर से भागने पर बना जान का खतरा
बाल विवाह के दंश से टूटी नेहा की जिंदगी, देवर से प्रेम की राह में मिली धमकियां और समाज की बेरुखी
राज्य डेस्क
जयपुर। बाल विवाह एक ऐसी कुप्रथा है, जो आज भी समाज में मासूमों का जीवन तबाह कर रही है। राजस्थान के चुरू जिले से आई यह चौंकाने वाली कहानी एक ऐसी बालिका की है, जिसकी जिंदगी 11 साल की उम्र में शादी के नाम पर अधूरी बना दी गई। नेहा (बदला हुआ नाम) को बचपन में ही विवाह के बंधन में बांध दिया गया-वह भी अपनी मृत बहन के पति के साथ। लेकिन अब, 12 साल बाद, नेहा समाज से एक ही गुहार कर रही है-’अब मुझे जीने दो, मैं देवर से प्यार करती हूं।’
बाल विवाह का दंश झेलने वाली नेहा की बड़ी बहन की मौत के बाद, जब वह मात्र 11 वर्ष की थी, तो परिवार ने निर्णय लिया कि बहन के ढाई साल के बच्चे की देखभाल के लिए उसकी शादी जीजा से कर दी जाए। यह फैसला बाल विवाह के क्रूर पक्ष को उजागर करता है। किसी ने यह नहीं सोचा कि एक बच्ची कैसे एक बच्चे की मां बन सकती है। लेकिन यही हुआ-नेहा की शादी उसके जीजा विमल (बदला हुआ नाम) से कर दी गई।

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बाल विवाह हो जाने के बाद नन्ही नेहा के कंधों पर एक बड़ा बोझ आ गया। वह बालिका वधु बन गई और पति के घर जा पहुंची, जहां उसकी उम्र से कहीं ज्यादा बड़ा पति, एक रूढ़िवादी ससुराल और हिंसा से भरी जिंदगी उसका इंतजार कर रही थी। पति शराबी था, हर रात उसे पीटता था, ताने देता था। ससुराल वालों का बर्ताव भी मानवीय नहीं था। दिनभर घर के काम, बच्चे की देखभाल और रात को अत्याचार। यही उसकी जिंदगी बन गई।
इस दर्द में भी नेहा ने चुप्पी साधे रखी, लेकिन एक ऐसा रिश्ता था जो धीरे-धीरे उसका सहारा बन गया-उसका देवर विनय (बदला हुआ नाम)। शुरुआत में देवर-भाभी का रिश्ता दोस्ती में बदला, और फिर वह प्यार में तब्दील हो गया। विनय उसकी तकलीफें समझता था, उसकी पीड़ा का भागी बनता गया।
13 फरवरी को, बाल विवाह पीड़िता नेहा ने एक साहसिक निर्णय लिया। वह अपने देवर के साथ घर से भाग गई। दोनों करीब ढाई महीने तक देश के अलग-अलग हिस्सों में रहे। कभी गुरुग्राम तो कभी मंदिरों में शरण लेते रहे। लेकिन अब, उनका यह प्रेम खतरे में है। नेहा को अपने पति विमल और सास से जान का खतरा है।
नेहा और विनय ने चूरू पुलिस अधीक्षक से मिलकर सुरक्षा की गुहार लगाई है। नेहा ने स्पष्ट कहा है कि उसकी शादी जबरन हुई थी, उसने कभी अपने पति को स्वीकार नहीं किया। अब वह अपनी मर्जी से, अपने प्रेमी विनय के साथ जीना चाहती है। लेकिन समाज, ससुराल और पति, तीनों उसे चैन से जीने नहीं दे रहे हैं।

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यह केवल एक प्रेम प्रसंग नहीं, बल्कि बाल विवाह की भयावहता का प्रतिबिंब है, जहां बचपन छीन लिया जाता है, इच्छाएं कुचली जाती हैं और जब कोई स्त्री अपने जीवन के निर्णय स्वयं लेना चाहती है, तो उसे जान से मारने की धमकियां मिलती हैं। नेहा की कहानी एक सामाजिक सवाल भी है। क्या आज भी बेटियों को इंसान की तरह देखा जाता है? क्या उनके निर्णयों को सम्मान दिया जाता है? क्या एक महिला को प्रेम करने और उसे स्वीकारने का अधिकार नहीं है?
राजस्थान के कुछ हिस्सों में आज भी बाल विवाह एक कड़वा सच है। सामाजिक दबाव, पारिवारिक मजबूरी और रूढ़िवादी सोच कृ इन तीनों के तले कई नेहाएं अपनी जिंदगी गवां रही हैं। यह मामला सिर्फ एक महिला की व्यक्तिगत लड़ाई नहीं, बल्कि पूरे समाज की सोच के खिलाफ बगावत है। पुलिस ने मामला दर्ज कर लिया है, लेकिन नेहा और विनय की सुरक्षा अब भी एक बड़ा सवाल है। उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा है कि अगर उन्हें पर्याप्त सुरक्षा नहीं मिली, तो वे कोर्ट की शरण लेंगे।
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बाल विवाह और उसके बाद उत्पन्न हुई स्थितियों को देखते हुए यह मामला बाल अधिकारों के उल्लंघन और महिला स्वाधीनता के संघर्ष का प्रतीक बन गया है। सरकार और प्रशासन के लिए यह एक अवसर है-बाल विवाह को जड़ से खत्म करने और ऐसे मामलों में पीड़ितों को न्याय दिलाने का। फिलहाल, नेहा अपने प्रेम की रक्षा के लिए संघर्ष कर रही है। वह चाहती है कि अब उसका जीवन उसकी मर्जी से चले- जहां वह सुरक्षित हो, सम्मानित हो और स्वतंत्र हो।

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