आरसीबी की जीत पर जश्न का फैसला किसने लिया-हाईकोर्ट
बेंगलुरु भगदड़ में चार जून को चली गई थी 11 लोगों की जान
राज्य डेस्क
बेंगलुरु। बेंगलुरु भगदड़ की त्रासदी पर कर्नाटक हाईकोर्ट ने कड़ा रुख अपनाते हुए राज्य सरकार से नौ गंभीर सवाल पूछे हैं। चार जून को चिन्नास्वामी स्टेडियम के बाहर आरसीबी की जीत के जश्न के दौरान मची भगदड़ में 11 लोगों की मौत और 56 से अधिक लोगों के घायल होने के बाद अदालत ने स्वतः संज्ञान लेते हुए यह कार्रवाई की है। हाईकोर्ट की खंडपीठ ने यह स्पष्ट कर दिया है कि बेंगलुरु भगदड़ की जिम्मेदारी से कोई भी प्रशासनिक या राजनीतिक अधिकारी बच नहीं सकता। पीठ ने तीखे शब्दों में पूछा कि इस आयोजन की अनुमति किसने, कब और किन परिस्थितियों में दी?
बेंगलुरु भगदड़ पर हाईकोर्ट का सख्त रुख, सरकार से मांगा जवाब
कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश वी. कामेश्वर राव और न्यायमूर्ति सी. एम. जोशी की खंडपीठ ने बृहस्पतिवार को राज्य सरकार से 10 जून तक विस्तृत उत्तर दाखिल करने का आदेश दिया है। अदालत ने जानना चाहा है कि क्या आयोजकों ने समारोह के लिए आधिकारिक अनुमति ली थी या नहीं। इसके साथ ही कोर्ट ने यह भी पूछा कि इतने बड़े आयोजन के लिए सरकार ने कोई मानक संचालन प्रक्रिया (SOP) बनाई थी या नहीं। अगर बनाई थी तो उसका पालन कैसे और किस हद तक हुआ?
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हाईकोर्ट ने सरकार से पूछे ये तीखे सवाल
अदालत ने सरकार से जो सवाल किए, वे न केवल सरकारी तंत्र की व्यवस्थागत असफलता को उजागर करते हैं, बल्कि यह भी संकेत देते हैं कि घटना को रोका जा सकता था।
विजयी जश्न का फैसला किसने, कब और कैसे लिया?
क्या समारोह के लिए कोई वैध अनुमति ली गई थी?
क्या भीड़ नियंत्रण के लिए SOP बनाई गई थी?
ट्रैफिक नियंत्रण के क्या उपाय किए गए थे?
भीड़ नियंत्रण के लिए किस स्तर की तैयारी थी?
क्या आयोजन स्थल पर चिकित्सा सुविधा उपलब्ध थी?
क्या अनुमान था कि कितने लोग पहुंच सकते हैं?
घायलों को तुरंत प्राथमिक इलाज मिला या नहीं?
उन्हें अस्पताल पहुंचाने में कितना समय लगा?
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सियासी दबाव में अफसर निलंबित, बेंगलुरु भगदड़ के बाद हुई उच्च स्तरीय बैठक
बेंगलुरु भगदड़ के बाद सरकार ने पांच वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को निलंबित कर दिया है। इनमें बेंगलुरु के पुलिस आयुक्त बी. दयानंद भी शामिल हैं। यह निर्णय मुख्यमंत्री सिद्धरमैया, उपमुख्यमंत्री, कानून मंत्री ए. एस. पोन्नना और महाधिवक्ता के. एम. शशिकिरण शेट्टी की मौजूदगी में हुई एक उच्च स्तरीय बैठक के बाद लिया गया। सूत्रों का कहना है कि हाईकोर्ट की सख्ती और संभावित न्यायिक जांच के दबाव में यह कार्रवाई की गई है। लेकिन यह भी सवाल उठता है कि क्या केवल पुलिस को दोषी ठहराना पर्याप्त है?
बेंगलुरु भगदड़ से उठे कई सवाल
कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि 50,000 से अधिक लोगों की भीड़ के आयोजन के लिए एसओपी का न होना गंभीर प्रशासनिक चूक है। अगर एसओपी थी भी, तो इसका पालन किस हद तक हुआ और किसके जिम्मे था? इस पर सरकार से विस्तृत स्पष्टीकरण मांगा गया है।

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जश्न का फैसला लिया किसने? हाईकोर्ट को जवाब देना जरूरी
चार जून को त्ब्ठ की जीत पर आयोजित समारोह में भारी भीड़ उमड़ी थी। स्थानीय प्रशासन और आयोजकों द्वारा सुरक्षा और नियंत्रण की पूर्व तैयारी न होने के आरोपों ने बेंगलुरु भगदड़ को और अधिक गंभीर बना दिया। अब अदालत के तीखे सवालों का सामना करते हुए सरकार के लिए जवाब देना मुश्किल हो गया है। खासतौर पर यह सवाल कि जश्न मनाने का फैसला किसने लिया और किस अनुमति के आधार पर?
घायलों को तुरंत मदद क्यों नहीं मिली?
पीठ ने पूछा कि घायलों को घटनास्थल पर प्राथमिक उपचार मिला या नहीं? अगर नहीं मिला तो क्यों? और अस्पताल पहुंचने में कितना समय लगा? ये सवाल इस ओर संकेत करते हैं कि हादसे के बाद आपात व्यवस्था पूरी तरह फेल रही। हाईकोर्ट की सख्ती और पूछे गए सवालों से यह साफ है कि बेंगलुरु भगदड़ केवल एक आकस्मिक हादसा नहीं था, बल्कि व्यवस्था की चूक का परिणाम था। यदि सरकार समय रहते सही कदम उठाए, एसओपी तैयार करे और जवाबदेही तय करे, तो ऐसी घटनाएं भविष्य में रोकी जा सकती हैं।
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