(हास्य-व्यंग्य) मोबाइली होली

रावेल पुष्प

सुबह-सुबह चाय का प्याला श्रीमती जी सामने रख गई थीं और साथ में ताजा फाइबर अखबार। मैंने अभी चाय का पहला ही सिप लिया था कि मुझे लगा चाय बिल्कुल फीकी है। दरअसल अब श्रीमती जी ने मेरे लिए चाय में चीनी डालनी बंद कर दी थी और कहती है कि तुम्हें तो शुगर है। मुझे ये सुनकर सचमुच, अब बड़ा अच्छा लगने लगा है कि मुझे भी शुगर है। आज के जमाने में जिसे शुगर नहीं, वो भी कोई आदमी हुआ। समाज में भला उसकी क्या इज्जत है? जहां दो-चार लोग बैठे हों, वहां चर्चा का विषय ही यही होता है कि किसे कितनी शुगर है? अगर किसी को शुगर नहीं,तो वो बेचारा ग्रुप में बिल्कुल अकेला पड़ जाता है । उसकी बातों को कोई भी तवज्जो नहीं देता। किसी ने कह दिया कि उसे शुगर 200 है, तभी झट से दूसरा नहले पर दहला मारता है- मुझे तो यार ढाई सौ है और मैं इंसुलिन ले रहा हूं। डॉक्टर ने बस एक बार लगाई थी सूई,अब तो अपने आप ही घोंप लेता हूं।

मुझे याद आने लगी अपने ऑफिस वाले बनर्जी बाबू की, उनसे जब इसी विषय पर बात हो रही थी तब उन्होंने अपनी नाक पर गिरता हुआ चश्मा उठाकर सिगरेट का एक लम्बा कश खींचा था और कहा था- आमार शूगार एखून 300! उन्होंने ऐसे जोश में कहा था जैसे धोनी ने क्रिकेट की पिच पर 300 रन बना लिये हों।

मैं अखबार के मुखपृष्ठ पर ताजे समाचारों के लिए नजर दौड़ाता हूं तो मुझे बड़ी हैरानी होती है कि पूरे पृष्ठ पर मात्र एक बड़ा सा विज्ञापन छपा था, जो किसी मशहूर ज्वेलरी कंपनी का था।

खैर, मैं उसे ही बुदबुदाते हुए पढ़ने लगा था- इस होली के मौके पर आभूषण बिल्कुल सस्ते!

चने-दाल का हार दस हजार रुपये,मसूर दाल के जड़ाऊ कंगन जोड़ा आठ हजार रुपए,मूंग दाल की नाक की लौंग सिर्फ इक्कीस हजार रुपए! मैं अभी विज्ञापन पढ़कर बुदबुदा ही रहा था कि रसोई घर में खड़ी श्रीमती जी के कान में पता नहीं कैसे ये आवाज पहुंच गई और वो सामने नमूदार हो गईं- क्यों जी, मेरा नाक की लौंग पहनने का कितना मन करता है और तुम हो कि बस टालते रहते हो।

अरे भई तुम्हारे पास तो हीरे के लौंग है, वही अभी तुमने उंगलियों पर गिन कर पहनी होगी- मैंने उसे समझाते हुए कहा ।बस इतना भर कहना था कि वो तो जैसे हत्थे से उखड़ गई – आपको आजकल के रिवाज का कुछ पता भी है। आजकल सोने और हीरे के गहने भला पहनता कौन है? ये सब तो आउट ऑफ फैशन हो गए हैं। अपने वो जब्बल वीर जी हैं न, उनकी वाइफ मिसेज रतिन्दर जब्बल उस दिन किट्टी पार्टी में मूंग की दाल की लौंग ही तो पहन कर आईं थीं सारी जनानियां बस गेम वगैरह छोड़कर उसकी नाक की लौग ही तो देख रहीं थीं। हाये कित्ती तो सुन्दर लग रही थीं वो और फिर वो पंजाबी गीत मेरी लौंग दा लशकारा पर कितना तो बन-बन कर ठुमक रहीं थीं।

अरी भागवान, मैं ठहरा नौकरी पेशा आदमी और थोड़ा बहुत लिखने-पढ़ने से पैसा आ जाता है,पर उनके पास तो कनाडा का पैसा है। वैसे आजकल मूंग की दाल की लौंग पहनना हर किसी के बस के बूते की बात नहीं। वो जमाना गया,जब हमारे दादा परदादा दाल खाया करते थे और कहते थे- खाइए दाल, जेहड़ी निब्भे नाल ! या फिर दाल रोटी खाओ, प्रभु के गुण गाओ!! अब तो जिसके पास दाल के दाने हैं,वो घर में रखने से भी डरता है। बैंकों के लाकर खोलो तो दाल के दाने ही निकलते हैं। पहले तो जो लोग अमीर होते थे वे लखपति, करोड़पति कहलाते थे,और अब तो दालपति कहलाने में फख्र महसूस करते हैं।

मैं अभी अखबार का अगला पृष्ठ पलटता तभी मेरे मोबाइल की घंटी बजी। मैंने मोबाइल कान से लगाया तो उधर से आवाज आई – मैं रवि प्रताप सिंह बोल रहा हूं, आपको होली बहुत मुबारक हो। इतना कहने के बाद ही उसकी लगभग चिल्लाती हुई आवाज आई- होली है, होली है …। और मैंने देखा कि मेरे मोबाइल स्क्रीन से रंगों की बौछार होने लगी और फिर कई तरह के फूलों की सुगंध हवा में बिखर गई। मैंने देखा तो मेरे मोबाइल के स्क्रीन पर पहले तरह-तरह के फूल और फिर एक-एक कर मिठाइयों के चित्र सामने आने लगे। कमरा मिठाइयों की गंध से भर गया और मैंने वो गंध अंदर तक भर ली। मुझे साफ एहसास हुआ कि मैंने वो मिठाइयां खा ली हैं।

मैं अभी सोच ही रहा था,तभी मेरे पास खड़े बेटे संदीप ने बताया कि ये एक मल्टी परपस वायस मेल था। आजकल कुछ सर्विस प्रोवाइडर कंपनियां ऐसी सर्विस दे रही हैं। आप अपने नम्बर पर जरूरत के अनुसार भरवा लें- सौ रसगुल्ले,पचास गुलाब जामुन,पचास गुझिया कुछ जलेबियां वगैरह…सबके अलग- अलग रेट हैं। फिर होली के मौके पर अपने दोस्तों, रिश्तेदारों को इसी तरह के वायस मेल से भेज दें। है न मजेदार,नो झंझट…। तो फिर देर किस बात की,आप भी अपने मोबाइल में भरवायें तरह तरह के रंग,और ढेर सी मनपसंद मिठाइयां…। फिर घर बैठे आराम से खेलें – मोबाइली होली!

(लेखक, वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

मधुप/मुकुंद

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