स्वतंत्रता सेनानी सेडूराम कृष्णियां का अभिवादन, नेताजी सुभाष चंद्र बोस से जुड़ी हैं यादेंं

झुंझुनू। राजस्थान में झुंझुनू जिले के बुडाना गांव के स्वतंत्रता सेनानी सेडूराम कृष्णियां 103 साल की उम्र में भी आज स्वस्थ नजर आते हैं। घुमने फिरने के अलावा बिना चश्मा के अखबार भी पढ़ लेते हैं। सेडूराम कृष्णियां भले ही 103 साल पार कर गए हैं लेकिन आज भी उन्हें उम्मीद है कि अभी तो उन्हे और जिंदगी जीनी है।
जब उम्र जवानी की हुई तो हाथों में राइफल थाम कर कूद पड़े थे आजादी की लड़ाई में। आजाद भारत के बाद आज उम्र भले ही 103 साल पार कर चुकी हैं लेकिन उनकी बूढ़ी आंखें आज भी सुबह छह बजे बिन चश्मे के अखबार को पढ़ लेती है। ऐसे आजादी के एक सिपाही को स्वतंत्रता दिवस पर हम जयहिंद कर सैल्यूट करते हैं। मात्र 21 वर्ष की उम्र में आजाद हिंद फौज के सिपाही बने सेडूराम कृष्णियां आजादी की लड़ाई में फ्रांस द्वारा कैद किए जाने के बाद 18 दिन तक भूखे रहे थे। पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने उन्हे ताम्र पत्र देकर सम्मानित किया था।
स्वतंत्रता सेनानी सेडूराम कृष्णियां चार सितंबर 1940 को 21 वर्ष की आयु में आजाद हिंद फौज की दी राजपूताना बटालियन में राइफल मैन के रूप में भर्ती हुये थे। सेडूराम बताते हैं कि भर्ती के कुछ दिन बाद ही उन्हे देश के बाहर भेज दिया गया। उन्हेे फ्रांस द्वारा लिबिया में पांच हजार सैनिकों के साथ तीन साल तक कैद कर यातनाएं दी गई। उन्होंने बताया कि 18 दिन तक तो खाना भी नहीं दिया 19 वें दिन डबल रोटी और चाय मिली। स्वतंत्रता सेनानी सेडूराम कृष्णियां बताते हैं कि नेताजी सुभाष चन्द्र बोस से उनकी पहली बार मुलाकात जर्मनी में हुई। उन्होंने एक नारा दिया कि तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा। नेताजी के इसी नारे के साथ आजाद हिंद फौज का गठन किया गया। सेडूराम ने बताया कि लिबिया में कैद सिपाहियों को नेताजी बोस ने ही छुड़वाया था। बहादुरगढ़ कैंप में रहने के बाद वही से सेडूराम सेवानिवृत होकर घर आ गए थे। सेडूराम कृष्णियां अविवाहित होने पर उनके भाई के पुत्र ओमप्रकाश कृष्णिया का परिवार देखभाल कर रहा है। 

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