व्यापार : रेहड़ी पटरी से उठकर सितारा होटलों तक पहुंचा सतुई लस्सी

– केवल आहार नहीं, औषधीय गुणों से युक्त है चना सत्तू

श्रीराम जायसवाल

गाजीपुर, 12 जून (हि.स.)। गर्मी के दिनों में लोगों के लिए ‘दिव्य पेय’ बन चुका सतुई लस्सी धीरे-धीरे सितारा होटलों और बड़े रेस्टोरेंटों तक अपनी पहुंच बना चुका है। गाजीपुुर समेत पूरे पूर्वांचल और बिहार वासियों के लिए सतुई लस्सी सबसे पसंदीदा पेय पदार्थों में शामिल है। केवल स्वाद के लिए ही नहीं, बल्कि अनेक रोगों के लिए भी सतुई लस्सी रामबाण की तरह है। 
यह ऐसा पेय पदार्थ है, जो पेट की कब्जियत से संबंधित अन्य बीमारियों को दूर करता है। वैसे तो सत्तू को लोग-बाग नमकीन, मीठा, तीखा, ठोस व तरल आहार के अलग-अलग रूपों में विविध स्वादों के साथ ग्राहण करते हैं, लेकिन गर्मी के दिनों में इसका तरल रूप विशेष आनन्द देता है। 
खास बात यह है कि यह केवल भूख ही नहीं मिटाता, बल्कि स्वास्थ्य विशेषज्ञों के अनुसार इसमें इतने गुण पाए जाते हैं जो विभिन्न प्रकार के रोग व अवसाद से भी दूर रखने का काम करते हैं। 
इस संबंध में पूर्वांचल के प्रख्यात होटल वैभव के मालिक जितेन्द्र सिंह व ​होटल अतिथि विनोद राय ने ​बताया कि अब अतिथियों व ग्राहकों द्वारा प्राय: सतुई लस्सी की मांग की जाती है, जिसके कारण होटल की रसोई में अब यह मीनू में भी शामिल हो गया है।
स्मरण रहे कि बिहार और उत्तर प्रदेश का देशी व्यंजन सत्तू न सिर्फ खाने में लजीज होता है, बल्कि आपके कई रोगों को ठीक करने के लिए औषधी का काम भी करता है। देशी वैद्य हरिनाथ सिंह की मानें तो सत्तू का सेवन करने से न सिर्फ मधुमेह, बल्कि अन्य रोग भी ठीक हो जाते हैं। मोटापे से भी निजात मिलती है। 
सत्तू भूने हुए जौ और चने को पीस कर बनाया जाता है। बिहार व उत्तर प्रदेश के सीमावर्ती जनपदों में इसे काफी पसंद किया जाता है। सामान्यतः सत्तू एक चूर्ण के रूप में रहता है, जिसे पानी में घोलकर पिया जाता है। 
ठेला, खोमचा, रेहड़ी की दुकान से सितारा होटल तक पहुंचा सतुई लस्सी जीरा, काला नमक, कच्चा आम, पुदीने की चटनी, बारीक कटी प्याज, लहसन, अदरक के साथ घोलकर इसे लस्सी के रूप में पीने वालों के सामने प्रस्तुत किया जाता है। यह सतुई लस्सी धीरे-धीरे सामान्य रेस्टोरेंट्स से सितारा होटल व रेस्टोरेंट्स तक अपनी पहुंच बना चुका है। इसकी उपलब्धता का आलम यह है कि जनपदों के कोर्ट, कचहरी, रेलवे स्टेशन, प्रमुख बाजार, बस स्टैंड, कार्यालयों इत्यादि के आस-पास ठेला खोमचा टीन सेट इत्यादि के दुकान में चमकीले व आकर्षक बोर्डों के साथ देखा जा सकता है। 

गर्मी के दिनों में यह एक प्रमुख आहार के रूप में स्थापित हो चुका है। यह केवल आहार ही नहीं, औषधीय गुणों से युक्त है चना सत्तू। सतुई लस्सी बनाने के लिए मुख्य पदार्थ भुना चना का पाउडर ‘चना सत्तू’ होता है। इसमें जौ भी मिलाया जाता है। 
आयुर्वेदिक चिकित्सक भारतेन्दु तथा आयुर्वेदाचार्य हरिद्वार राय की माने तो आधुनिक दिनचर्या में 90 प्रतिशत लोग गैस्ट्रोइंट्रोटाइटिस नामक रोग से पीड़ित रहते हैं। हर समय जल्दबाजी, तनाव और मिर्च-मसालों का अधिक सेवन करने से पेपटिक ग्रंथी से गैस्ट्रिक जूस का रिसाव होता है, जो सेहत के लिए हानिकारक होता है। सत्तू का सेवन करने से इस रिसाव को कम करने में काफी मदद मिलती है। 
इसके साथ ही जौ और चने से बना सत्तू कफ, पित्त, थकावट, भूख, प्यास और आंखों से जुड़ी बीमारी में बेहद लाभदायक होता है। डॉक्टरों ने तो इसे पेट के रोगों के लिए रामबाण इलाज माना है। 
छरहरी काया में सहायक होता है चना सत्तू डाइटीशियन अंकिता ठाकुर की माने तो चना सत्तू में सम्पूर्ण आहार के लिए जरूरी सभी तत्व पाए जाते हैं। सत्तू को खाने या पीने से लम्बे समय तक व्यक्ति को भूख नहीं लगती है। यह वजन कम करने में व्यक्ति की मदद करता है। चने के सत्तू में मिनरल्स, आयरन, मैग्नीशियम और फॉस्फोरस पाया जाता है जो आपके शरीर की थकान मिटाकर आपको इंस्टेंट एनर्जी देने का काम करता है। 

यात्रा का साथी है सत्तूग्रामीण परिवेश खासकर बिहार व पूर्वांचल में चना सत्तू का सेवन सदियों से प्रयोग में होता रहा है। बुजुर्गों की माने तो एक समय था जब गर्मी के दिनों में चना सत्तू ही मुख्य आहार हुआ करता था। तीज-त्यौहार से लेकर शादी, बारात, धार्मिक व सामान्य यात्रा तक में लोग चना सत्तू के साथ ही यात्रा करते थे। गाहे-बगाहे समय मिलते ही भोजन के रूप में कहीं सूखा तो कभी घोलकर प्रयोग में लाते थे। इसके पीछे भी एक मजबूत तर्क रहा है, जिसे आज चिकित्सक भी मान रहे हैं।  
चिकित्सकों ने माना दिव्य पेय व आहार है ‘सतुई लस्सी’आयुष चिकित्सक व नीमा के पूर्व अध्यक्ष डॉक्टर डी एन सिंह ने बताया कि चना सत्तू की तासीर ठंडी होने की वजह से गर्मियों में इसका सेवन अवश्य करना चाहिए। यह पेट को ठंडा रखने में भी मददगार है। इसके सेवन से व्यक्ति को लू नहीं लगती है। 
उन्होंने कहा कि सत्तू शरीर के तापमान को नियंत्रित तथा पेट संबंधी कई बीमारियों को दूर करता है। शरीर में खून की कमी होने पर एनीमिया से पीड़ित रोगी रोजाना पानी में सत्तू मिलाकर पीयें तो काफी लाभ मिलेगा। 

डॉ. सिंह ने आगे बताया कि सत्तू में मौजूद बीटा-ग्लूकेन शरीर में बढ़ते ग्लूकोस के अवशोषण को कम करके ब्लड में शुगर लेवल को नियंत्रित रखता है। सत्तू का रोजाना सेवन करने से मधुमेह रोगी डायबिटीज को काफी हद तक नियंत्रित कर सकता है। ध्यान रखें इस रोग से पीड़ित लोगों को चीनी वाले सत्तू का सेवन नहीं करना चाहिए। 
ये लोग न करें चना सत्तू का सेवनएक तरफ तो चना सत्तू में तमाम गुण मौजूद हैं, जो लाभदायक हैं, लेकिन पूर्वांचल के प्रख्यात जनरल फिजीशियन डॉ राहुल राय ने बताया कि विभिन्न रोगों से ग्रसित लोगों को इसके सेवन से बचना चाहिए। बताया कि चने के सत्तू का ज्यादा सेवन करने से पेट में गैस पैदा होती है। ध्यान रखें आहार में इसका ज्यादा सेवन न करें। मधुमेह के रोगियों के लिए सत्तू एक तरफ जहां वरदान है, वहीं पथरी के रोगियों के लिए घातक है। बारिश के मौसम में चने के सत्तू का सेवन करने से बचना चाहिए। 

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