वनवास काल में भगवान श्रीराम से मिलने चित्रकूट आये थे सूर्य देवक

– रथ के तपन से पिघल गई थी सुप्रसिद्ध तीर्थ “सूरजकुंड” की चट्टानें
– मन्दाकिनी तट पर स्थित इस पावन धाम में आज भी सुर्खलाल चट्टानों में मौजूद है सूर्य के रथ के पहियों के निशान 
– चित्रकूट के सूरजकुंड में 62 वर्षों से जारी है अखण्ड रामनाम संकीर्तन 
-मंदाकिनी तट पर स्थित इसी पावन स्थल पर ऋषि मुनियों से मिलने आते थे सूर्यदेव
चित्रकूट (हि.स.)।विश्व के आदितीर्थो में सुमार भगवान श्रीराम की तपोभूमि चित्रकूट तमाम पौराणिक गौरवगाथाओं को समेटे हुए है। ऋषि-मुनियों की इसी पावन धरा पर मंदाकिनी तट पर स्थित सूरजकुुंड भी प्रमुख तीर्थ स्थलोें में से एक है। प्राचीन मान्यता है कि इस प्राचीन स्थल पर तपक रने वाले ऋषि-मुनियों से मिलने स्वयं सर्य भगवान आते थे। जिसके प्रमाण आज भी यहां की चटटानों में मौजूद है। इसी वजह से यह स्थल सूरजकुंड के रूप में विख्यात है। यहां पिछले 62 वर्षों से अनवरत रामनाम संकीर्तन जारी है।जिसमें क्षेत्र के 40 गांव के 09 सौ से अधिक लोग संकीर्तन से जुड़े हैं। 
वनवास काल के दौरान भगवान श्रीराम की साढ़े 11 वर्षों से तपोभूमि रहीं चित्रकूट विश्व के प्रमुख तीर्थो में से एक है। प्रतिवर्ष देश भर से करोड़ों श्रद्धालु चित्रकूट पहुंच कर माता सती अनुसुईया के तपोबल से निकली जीवन दायनी मां मंदाकिनी में आस्था की डुबकी लगा कर मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए भगवान श्रीकामतानाथ के दर्शन-पूजन के बाद कामदगिरि पर्वत की पंचकोसीय परिक्रमा लगाते है। उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के बीच 84 कोस में फैला चित्रकूटधाम अनेक धार्मिक, पौराणिक और ऐतिहासिक महत्व से जुड़े स्थलों को अपने गर्भ में समेटे हुए है। इसी में से एक पावन धाम सूरज कुंड हैं। 
धर्म नगरी के प्रमुख संत एवं रामायणी कुटी के महंत रामहृदय दास एवं कामतानाथ प्राचीन द्वार मंदिर के पुजारी भरतशरण दास महाराज एवं सुप्रसिद्ध भागवताचार्य डा0 रामनारायण त्रिपाठी ने सूरजकुंड धाम की महिमा का बखान करते हुए बताते है कि वनवास काल के दौरान सूर्यवंशी प्रभु श्रीराम से मिलने के लिए सूर्यदेव भगवान का रथ मंदाकिनी नदी के तट पर स्थित इसी पावन धाम पर उतरा था। बताते हैं कि सूर्य देव के रथ का वेग इतना तेज था कि मंदाकिनी नदी में अथाह कुंड बन गया था और आसपास के पत्थर पिघल गए थे। आज भी सुर्ख लाल पत्थरों पर रथ के पहियों के बने निशान इस बात के गवाह हैं। सूर्यदेव के रथ से बने कुंड के कारण ही स्थान का नाम सूर्यकुंड पड़ा। इस दिव्य स्थान पर अनेकों ऋषि-मुनियों द्वारा मनवांछित सिद्धियों को हासिल करने के लिए तपास्या की जाती रहीं है। 
वहीं सुप्रसिद्ध भागवताचार्य चंदन दीक्षित सूरजकुंड की महिमा का बखान करते हुए बताते है कि एक समय की बात है। जब महर्षि भगुनंदन और जमदग्नि धनुष-बाण से खेल रहे थे। वे किसी खाली स्थान पर बार-बार बाण चला रहे थे। उनकी पत्नी रेणुका बार-बार बाण लाकर दे रही थीं। लेकिन जेठ माह के तपते सूर्य ने उन्हें परेशान कर दिया। इस वजह से उन्हें बाण लाने में देरी भी हो जाती। महर्षि ने उनसे इसकी वजह पूछी। उन्होंने जवाब दिया कि सूर्य की तेज रोशनी न केवल हमारे सिर को तपा रही है, बल्कि पैर भी जला रही है। इतना सुनते ही महर्षि क्रोधित हो गए और कहा देवी जिस सूर्य ने तुम्हें कष्ट पहुंचाया, उसे मैं अपने अग्निअस्त्र से गिरा दूंगा। जैसे ही उन्होंने धनुष पर बाण चढाया, भयभीत होकर भगवान सूर्य ने ब्राह्मण का वेश धारण कर लिया और उनके सामने प्रकट हो गए। 
उन्होंने उनसे विनती की कि मुझे अपनी गलती का अहसास हो गया है। साथ ही उन्होंने एक जोडी पादुका और एक छत्र महर्षि को उपहार स्वरूप प्रदान कर दिए। उन्होंने कहा कि यह छत्र सिर पर पडने वाली किरणों से आपका बचाव करेगा और पादुकाएं तपती जमीन पर पैर रखने में सहायता करेंगे। मान्यता है कि यह घटना चित्रकूट से दस किलोमीटर की दूरी पर सूरजकुंड में हुई थी। महाभारत में भी इस घटना का उल्लेख मिलता है। भक्त मानते हैं कि यह स्थान प्रकृति का अनमोल वरदान है। इसलिए यह कई ऋषि-मुनियों की तपोस्थली भी रहीं है। आज भी लोग साधना और ध्यान के लिए सूरजकुंड जाते हैं। मान्यता है कि वहां जाने के बाद न केवल हमारे सभी बुरे संस्कार समाप्त हो जाते हैं, बल्कि हमारा अंतस भी पवित्र हो जाता है। संभवतः यही संस्कार परमात्मा के नजदीक जाने के लिए आवश्यक कारक बनते हैं। 
इसके अलावा इस स्थल पर मकर संक्राति पर्व पर प्रतिवर्ष मेला लगता है। जिसमें देश भर से लाखों श्रद्धालुओं का जमावड़ा लगता है। इसके अलावा बुंदेलीसेना के जिलाध्यक्ष अजीत सिंह बताते है कि सूर्यकुंड पावन धाम में 03 मार्च 1958 से अखण्ड रामनाम संकीर्तन महायज्ञ की शुरुआत हुई थी, जो आज 62 वर्ष बाद भी जारी है। इस महायज्ञ में आसपास परिक्षेत्र के 40 गांव के 900 से अधिक लोग जुड़े हुए है। सभी की हर माह की 01 से 30-31 तारीख तक के लिए ड्यूटी तय है। ड्यूटी में यदि निर्धारित समय से 15 मिनट भी कोई लेट हो गया तो फाइन के रूप में 25 पैसा और परिक्रमा का दण्ड मिलता है। देरी के हिसाब से परिक्रमा का दंड भी बढ़ता जाता है। कीर्तन के दौरान इन लोगों के खानपान की व्यवस्था भी आश्रम में ही होती है। लिहाजा वर्ष में 09 किलो के हिसाब से प्रत्येक सदस्य अन्न का दान भी करता है। अखण्ड संकीर्तन में कई अन्य चिन्हित गांवों से वर्ष में एक बार दान लिया जाता है। 
साथ ही देश के कलकत्ता, मुम्बई, कानपुर, लखनऊ, प्रयागराज और बनारस समेत कई प्रमुख महानगरों के भक्त भी इस महायज्ञ से जुड़े हुए हैं। सूर्यकुंड में ही रामनाम बैंक भी खुला हुआ है। यहां से पहले लोग कापियां लेकर घर जाते हैं फिर उनमें रामनाम लिखकर कापियां जमा करते है। रामनाम लिखी लाखों कापियां यहां जमा हो चुकी है। अखण्ड रामनाम कीर्तन का दौर निरंतर जारी है। दीपावली पर्व के दौरान दर्जनों अघोरी संतों का भी साधना के लिए सूरजकुंड में जमावड़ा लगता है।

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