मानस-निर्वाण अंतहीन विषय, पार पाना मुश्किल-मोरारी बापू

-कुशीनगर में रामकथा का तीसरा दिन
कुशीनगर (हि. स.)। मानस निर्वाण गहन अंतहीन विषय है। इससे पार पाना मुश्किल है। मोक्ष, मुक्ति, निर्वाण, परमगति, परमपद सभी अलग है। इन सभी में बहुत अंतर है। इनकी अवस्था भिन्न भिन्न है। उक्त बात प्रसिद्ध कथावाचक मोरारी बापू ने कुशीनगर में रामकथा के तीसरे दिन सोमवार को कही।
उन्होंने कहा कि भारत देश में सात भूमि ऐसी है जहाँ रहने मात्र से मोक्ष मिल जाता है। अयोध्या, मथुरा, काशी, अवंतिका, पूरी, कांची, द्वारिका यह सातों मोक्षदात्री भूमि है। हरिद्वार, निर्वाण का प्रवेश द्वार है। यहां से हरि तक पहुंचने का मार्ग प्रशस्त हो जाता है। मुक्ति देने वाली कोई भूमि है तो वह काशी है। उज्जैन निर्वाण की साक्षात प्रतिमूर्त महादेव की भूमि है। कांची से ज्ञान की उत्पत्ति हुई है। ज्ञान की भूमिका ही निर्वाण की स्थिति है। जबकि निर्वाण भूमि विशेष नही है। निर्वाण साधक की भूमि है। निर्वाण कहीं भी हो सकता है। कबीर ने निर्वाण के लिए मगहर को चुना जबकि काशी में रहते मोक्ष प्राप्त हो सकता था। 
उन्होंने कहा कि निर्वाण प्रतीक्षा करता है। जहां कोई युद्ध नहीं, संघर्ष नहीं, निर्वैरता नहीं, वही निर्वाण है। संघर्ष मुक्त जीवन ही निर्वाण है। जो निर्वाण को प्राप्त हो जाए वहीं बुद्ध है, बुद्ध पुरुष को न कोई सुख दे सकता है न दुःख। जिस किसी के जीवन में सुख दुःख का भाव समाप्त हो जाए वही निर्वाण है, वही बुद्ध है। द्वंद्वों से मुक्ति ही निर्वाण है। पुण्य न पाप। मन, क्रम और वचन से शुद्धता ही पुण्य-पाप के भंवरजाल-द्वंद्व से मुक्ति देने वाली है। यही निर्वाण की स्थिति है। 
 Submitted By: Edited By: Deepak Yadav

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