महिलाओं के प्रति पुरुष में ऐसी कुंठा कहां से आती है?

निशिकांत ठाकुर

महिलाओं के प्रति हम भारतीयों के मन में इतनी कुंठा, इतना आक्रोश क्यों है? यह बात समझ में नहीं आती। अभी हम लोग कोरोना से जूझ रहे हैं। श्रद्धा-उल्लास के महापर्व छठ में अपनी सहभागिता सुनिश्चित कर रहे थे। समाज महापर्व छठ के गीतों से गुंजायमान था। दिल्ली से सांसद और अभिनेता से नेता बने मनोज तिवारी, जों पूर्वंचलियों के नेता अपने को मानते हैं। इतने बड़े और महान हो जाते हैं कि सोनिया गांधी के प्रति ग्वालियर में अपमानजनक बयान देकर अपनी ओर जनता को आकर्षित करना चाहते हैं। इसी प्रकार छठ महापर्व पर कोविड से बचाव के लिए जो कानून बनाया जाता है। उस पर टिप्पणी करते हुए कहते है कि दिल्ली सरकार और मुख्यमंत्री नमक हराम है। ऐसा कहकर पूर्वांचलियों को अपनी ओर आकर्षित करने और लोकप्रियता पाने के लिए असंसदीय भाषा का प्रयोग करते हैं। यह तो हुई नेताओं द्वारा नारियों के प्रति अपत्तिजनक बदजुबानी और टिप्पणी करने की बात। ऐसे कई और तथाकथित राजनीतिज्ञ हैं, जो मीडिया में प्रचार पाने का कोई न कोई बहाना ढूंढ़ते रहते हैं और उसमें सफल भी होते हैं। कभी मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री रहे कमलनाथ मूर्खतापूर्ण बयान देकर जनता के मन में आक्रोश और घृणा भरते हैं। विवाद के पात्र बनकर कांग्रेस की लुटिया डुबोने में अपना भरपूर सहयोग देते हैं, अपना उपहास उड़बाया करते हैं। दरअसल, कमलनाथ और मनोज तिवारी तो मात्र एक उदाहरण हैं। अभी पिछले दिनों मी टू का मुद्दा गरमाया था, लेकिन ऐसा लगता है कि महिलाओं के प्रति हुए इस नीच कार्य में लिप्त अपनी सिफारिश और पहुंच से इस गंभीर और निर्लज्जता पूर्ण कृत्य को दबा दिया। अब इसकी कोई चर्चा नहींं करता, इस पर कोई बात नहीं होती और कुछ तथाकथित राजनीतिज्ञ तो विधानसभा, राज्यसभा, लोकसभा जैसे सर्वोच्च सदन में पहुंचकर उसकी पवित्रता पर दाग लगा रहे हैं। काश ऐसे शातिर और निर्लज्ज व्यक्तियों को इसकी सजा मिल जाए और वह कुछ दिन के लिए ही सही जेल की हवा खा लें, तो इससे समाज में नारियों के प्रति सम्मान बढ़ेगा और ऐसे लोगों में भय का माहौल बनेगा। कई नेता और अभिनेता तो समाज में अपनी दबंगई से और प्रभाव से मामले को आगे नहीं बढ़ने देते है और अपराध करने के बाद भी अपने रसूख और धनबल, बाहुबल से बच निकलते है। अपने को बेदाग साबित करने के लिए ऐसे दबंग लोग कुछ भी कर सकते हैं।
हाथरस की घटना को अभी कोई कैसे भूल सकता है, जहां उत्पीड़न के बाद परिवार और समाज को विश्वास में लिए बिना रातों-रात शव का अंतिम संस्कार हिन्दू रीति रिवाज के खिलाफ कर दिया गया। नारी उत्पीड़न का इससे बड़ा अपमानजनक उदाहरण और क्या हो सकता है? हाथरस का तो हाल यह रहा कि परिवार से मिलने के लिए और उसकी रिपोर्टिंग करने वाले मीडिया कर्मियों को आसपास फटकने भी नहीं दिया और तरह-तरह के आरोप लगाकर आखिर में लड़की पक्ष को ही दोषी करार दिया जाता है। यदि कोई भी सुबह सुबह अपनी दिनचर्या शुरू करने के लिए समाचार पत्रों को पढ़ना शुरू करता है, तो उसके लगभग सभी पृष्ठों पर कोई न कोई ऐसी खबर आपको जरूर मिल जाएगी, जिससे मन विचलित हो जाएगा। अनूप शहर क्षेत्र में बीते दिन गैंग रेप पीड़िता की आत्म हत्या के बाद जहांगीराबाद क्षेत्र में एक रेप पीड़िता किशोरी के घर में घुसकर पेट्रोल डालकर जलाने के बाद जो माहौल बना और जिसके बाद पीड़िता ने दिल्ली के एक अस्पताल में दम तोड़ दिया। इस हृदय विदारक घटना से अपराधियों के दुर्दांत मानसिकता का पता चलता है कि वह अपने समाज या देश दुनिया में नारियों के प्रति कितना असंवेदनशील और कठोर है। ऐसे अपराधी भी पुलिस की पकड़ में आ जाते हैं, लेकिन लचीले कानून और पुलिस की ढिलाई से वह छूट भी जाते हैं और फिर वह एक तपे हुए अपराधी बनकर किसी भी तरह के अपराध को अंजाम देने में सक्षम हो जाते हैं। अब प्रश्न यह उठता है कि ऐसे बदजुबान नेताओं और शातिर अपराधियों को सही रास्ते पर कैसे लाया जाए।
नेताओं को जनता द्वारा तो काबू किया जा सकता है, क्योंकि ऐसे नेताओं को केवल पुरुष ही वोट देकर चुनाव नहीं जिताते बल्कि आधा समाज अर्थात महिलाओं ने भी उन्हें मत देकर चुनाव जिताया है। ऐसा करने के बावजूद यदि उनका अपमान वह करते है तो फिर किस मुंह को लेकर उस समाज के पास जाते है जिनका अपमान वह बार बार सार्वजनिक रूप से करते है। ऐसे ही नेता अपने ऊपर लगे मी टू के आरोपी अपने को बुद्धिजीवी वर्ग में गिनती कराते हैं। इसलिए वह किसी न किसी रूप से बच निकलते हैं। हमारे उच्च पदस्थ राजनेताओं को इस पर गंभीरता से विचार करने की जरूरत है। यदि ऐसे तथाकथित बुद्धिजीवियों पर हम काबू पा लेते है तो यह मान लीजिए, फिर शातिर अपराधियो के लिए तो सख्त कानून है ही। हमारे पास भले ही वह लचीला ही क्यों ना हो। अपराध तो कानून से छिपकर करना होता है क्योंकि अपराधियों को उसके मन में थोड़ा बहुत तो कानून का डर होता ही है। वैसे तो अपराध और अपराधियों का समूल नाश करना तो भारत अथवा विश्व के लिए कठिन है, लेकिन यदि प्रशासन दृढ़ संकल्प ले ले तो निश्चित रूप से उसे कम जरूर किया जा सकता है। यदि अपराध और अपराधियों का समूल नाश हो गया फिर तो यह मान लीजिए देश में राम राज्य आ जाएगा, लेकिन आज की स्थिति में यह संभव है क्या?
यदि नारी अपमान की बात करें, तो देवराज इन्द्र ने अहिल्या को अपमानित किया उन्हें अपवित्र किया, लेकिन देवराज इन्द्र को भी उसकी सजा भुगतनी पड़ी। सीता और पांचाली को अपमानित किया गया, लेकिन उनमें से कोई भी अपराधिक दंड से बच नहीं पाया। रावण को सीता के अपहरण और अत्याचार के कारण उसके बंश के नाश हुआ। द्रोपदी को भरी सभा में घसीटकर लाना और निर्वस्त्र करने के कारण धृतराष्ट्र को अपने सौ पुत्रों तथा लाखों सैनिकों के जान से हाथ धोना पड़ा। इन बातों के विषय में यदि आप किसी राजनीतिज्ञ से पूछेंगे तो वह इस पर विस्तारपूर्वक अपने ज्ञान से आह्लादित कर देंगे और आप को यह एहसास दिला देंगे कि वह कितने ज्ञानी है। अब ऐसे राजनीतिज्ञों या अपराधियो को कितना कठोर दंड देना चाहिए, क्योंकि जो अपराधी अपराध करने से पहले उसके दंड के प्रावधानों और उसकी सजा को जानता हो उसे कितना कठोर दंड दिया जाना चाहिए? यह निर्णय तो अदालत को ही करना है, लेकिन आधी आवादी को नेतागण और अपराधी सरेआम यदि इसी तरह अपमानित करते रहे तो इसे समाज अधिक दिनों तक बर्दाश्त नहीं करेगा। और हो सकता है कि जनता उग्र होकर विद्रोही हो जाएगी। तब इन्हीं नेताओं को इस आधी आबादी को संभालना मुश्किल हो जाएगा। इसलिए जो नारी का अपमान करके अपनी शान बढ़ाते है उन्हें सतर्क और सावधान हो जाने की जरूरत है। यदि ऐसे व्यक्ति फिर भी नहीं सुधरे, तो दुर्गा और काली कब अपना खड्ग धारण कर ले, यह कोई नहीं जानता।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक है।)

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