भाजपा क्यों बनी?

(स्थापना दिवस 6 अप्रैल पर विशेष)

राज खन्ना

जनसंघ घटक से जुड़े लोग जनता पार्टी से क्यों अलग हुए और भाजपा क्यों बनी? लालकृष्ण आडवाणी ने अपनी आत्मकथा में इसकी खुलकर चर्चा की है। आडवाणी जी के अनुसार 1980 में कांग्रेस की वापसी और जनता पार्टी की बुरी पराजय के बाद दोहरी सदस्यता का मुद्दा और गरमा गया। 25 फरवरी 1980 को बाबू जगजीवन राम ने पार्टी अध्यक्ष चंद्रशेखर को पत्र लिखकर इस मुद्दे पर चर्चा की मांग की। पत्र में जनता पार्टी की पराजय की जिम्मेदारी जनसंघ के लोगों पर डाली गई जो किसी कीमत पर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से संबंध तोड़ने को तैयार नही थे। पार्टी की एक बैठक में आडवाणी जी ने कहा, ’हमें पार्टी में हरिजनों (राजनीतिक अछूतों) की तरह दूर कर दिया गया। जनता पार्टी के पांच घटक थे-कांग्रेस (ओ), भारतीय लोकदल, सोशलिस्ट पार्टी, सी.एफ.डी. और जनसंघ। राजनीतिक दृष्टि से कहें तो इसमें पहले चार द्विज थे, जबकि जनसंघ की स्थिति ’हरिजन’ की थी। 1977 में उसे (जनसंघ) को स्वीकार करते समय हर्षोल्लास था पर समय बीतने के साथ परिवार में ’हरिजन’ की उपस्थिति से समस्याएं पैदा होने लगीं। परिवार के सदस्यों (अन्य घटकों से जुड़े तमाम लोगों ने) परिवार में ’हरिजन’ की उपस्थिति के कारण परिवार (जनता पार्टी) से नाता तोड़ लिया। हालांकि उनके पास ’हरिजन लड़के’ के विरुद्ध कोई शिकायत नही थी। वास्तव में वे अकसर उसकी प्रशंसा करते थे लेकिन उसकी जाति को नही भुला पाते थे। उसके माता पिता (संघ) ही उसकी बाधा थे।
चार अप्रैल 1980 को जनता पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में दोहरी सदस्यता के सवाल पर निर्णायक फैसला होना था। जनसंघ घटक को निर्णय का पूर्वाभास था और उसके नेताओं ने अगले ही दिन दिल्ली में राष्ट्रीय अधिवेशन के आयोजन का फैसला ले रखा था। इसके पहले के दो महीनों में सुंदर सिंह भंडारी और लाल कृष्ण आडवाणी ने देश के तमाम हिस्सों का दौरा करके अपने कार्यकर्ताओं का मन टटोलने की कोशिश की थी। कार्यकर्ताओं की आम शिकायत थी कि जनता पार्टी में उनके साथ दोयम दर्जे का व्यवहार हो रहा है। जनता पार्टी की चार अप्रैल की बैठक में मोरारजी भाई और चन्द्रशेखर आदि का समझौते की कोशिशों का प्रस्ताव 14 की तुलना में 17 वोटों से खारिज और जनसंघ के सदस्यों को जनता पार्टी से निष्कासित करने का प्रस्ताव पास हो गया। दिलचस्प है कि अगले ही दिन बाबू जगजीवन राम भी जनता पार्टी छोड़कर वाईबी चव्हाण की अगुवाई वाली कांग्रेस (यू) में शामिल हो गए। 5 और 6 अप्रैल को दिल्ली के फिरोजशाह कोटला मैदान में मौजूद साढ़े तीन हजार से ज्यादा प्रतिनिधियों के मन में सवाल था कि क्या जनसंघ को फिर पुनरुज्जीवित किया जाएगा? अध्यक्षीय भाषण में अटल जी ने इसे नकार दिया, ’हम जनता पार्टी के अपने अनुभवों का लाभ उठायेंगे। हमें उसके साथ रहे संबंधों पर गर्व है। हम किसी तरह अपने अतीत से अलग नहीं होना चाहेंगे। अपनी नई पार्टी का निर्माण करते हुए हम भविष्य की ओर देखते हैं, पीछे नहीं। हम अपनी मूल विचारधारा और सिद्धांतों के आधार पर आगे बढ़ेंगे।’ कुछ लोगों ने पार्टी को पुराना नाम भारतीय जनसंघ देने का सुझाव दिया, लेकिन अटल जी द्वारा प्रस्तावित नाम ’भारतीय जनता पार्टी’ को विपुल समर्थन मिला। यही स्थिति पुराने चुनाव चिन्ह ’दिये’ के साथ हुई और नया चिन्ह ’कमल’ चुना गया। इस अधिवेशन में मंच पर डॉक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी और पण्डित दीन दयाल उपाध्याय के साथ लोकनायक जयप्रकाश नारायण के चित्र को भी स्थान दिया गया था।

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