बुन्देलखंड में कोदो की फसल से किसानों को मिल रहा मुनाफा

– आयुर्वेद चिकित्सा में कोदो डायबिटीज रोगियों के लिए है रामबाण

हमीरपुर (हि.स.)। हमीरपुर समेत समूचे बुन्देलखंड में कोदो की फसल किसानों के लिए बड़ी ही फायदेमंद है। इसीलिए इस बार किसानों ने कोदो की फसल का रकबा बढ़ाने की तैयारी की है। आयुर्वेद चिकित्सा में कोदो डायबिटीज रोगियों के लिए रामबाण है। इसके सेवन से कुछ ही दिनों में यह बीमारी पूरी तरह से कन्ट्रोल हो जाती है।

बुन्देलखंड के हमीरपुर, महोबा, बांदा, चित्रकूट, जालौन, ललितपुर और झांसी समेत पड़ोसी एमपी के तमाम इलाकों में किसी जमाने में किसान कोदो की फसल बड़े स्तर पर करते थे। लेकिन उपज का सही मूल्य न मिलने के कारण परम्परागत खेती में दलहन, तिलहन और धान की खेती की तरफ किसानों को कदम बढ़ाने पड़े थे। इधर पिछले कई दशक से दैवीय आपदा के कारण किसानों को दलहन, तिलहन और खरीफ की फसलों में बड़ा झटका लगा है। पिछले साल ही मटर की फसलों की उपज के सारे रिकार्ड टूटने के बाद भी किसानों को इससे बड़ा नुकसान उठाना पड़ा है।

मटर की कीमतें बाजार में कम होने के कारण किसानों को लागत भी निकालने के लाले पड़ गए थे। किसान रघुवीर सिंह बताते है कि पिछले तीन दशक पहले कोदो और काकुन की फसलें किसान बड़े क्षेत्रफल में करते थे लेकिन नई प्रजाति के बीज बाजार में आने के कारण किसान अन्य फसलों की खेती करने लगे है। किसानों ने बताया कि पिछले कुछ सालों से परम्परागत खेती में भी किसानों को कोई खास फायदा नहीं मिला है इसीलिए अब बुन्देलखंड में किसान औषधीय खेती की तरफ रुख किया है।

खासकर कोदों की फसल का रकबा भी बढ़ाए जाने की तैयारी गांव के लोग कर रहे है। हमीरपुर के डेप्युटी डायरेक्टर कृषि हरिशंकर भार्गव ने बताया कि कोदो की खेती से किसान अपनी आमदनी तीन से चार गुनी कर सकते है क्योंकि इस फसल की उपज के लिए बहुत ही कम खर्च आता है। बताया कि जिले में राठ और गोहांड के गांवों में किसान इसकी खेती शुरू की है। बताते हैं कि इस समय बाजार में दस से चौदह हजार रुपये क्विंटल कोदो के भाव है।

गांवों में कोदो की फसलों का बढ़ेगा रकबा

हमीरपुर जिले के गोहांड और राठ क्षेत्र में किसानों ने इस बार कम क्षेत्रफल में कोदो की फसलें की है। गोहांड के चिल्ली गांव निवासी रघुुवीर सिंह ने बताया कि छह बीघा खेत में कोदों की फसलें की है। कई किसानों ने भी इसकी खेती की है जिससे लागत से कई गुना फायदा किसानों को मिल रहा है। बताया कि मानसून की पहली बारिश के बाद जुलाई तक कोदो की बुआई कराई जाती है फिर चार महीने के अंदर यह फसल तैयार हो जाती है। बताया कि कोदो की फसल तैयार होने के बाद इसके बीज गोहानी, मुस्करा, वहर, इकटौर, गिरवर सहित अन्य गांवों के बीस किसानों को उपलब्ध कराकर अबकी बार कोदो की फसल का रकबा बढ़ाया जाएगा। किसानों में भी इसकी खेती की तरफ दिलचस्पी बढ़ी है।

कोदो की फसल से मिलता है मोटा मुनाफा

कोदो की खेती करने वाले रघुवीर, राजेन्द्र समेत अन्य किसानों ने बताया कि एक बीघा भूमि पर चार से पांच क्विंटल कोदो का उत्पादन आसानी से हो जाता है। गांव स्तर पर भले ही बीस से तीस रुपये किलो कोदो मिलता हो लेकिन शहरों में इसकी डिमांड ज्यादा बढ़ने के कारण इस समय पांच से छह हजार रुपये क्विंटल कोदो बिक रहा है।

प्रगतिशील किसान रघुवीर सिंह ने बताया कि एक बीघा खेत में कोदो की फसल का उत्पादन करने में सात हजार रुपये के करीब खर्च आता है। और तीन महीने बाद चार से पांच क्विंटल कोदो की उपज आसानी से हो जाती है। स्थानीय स्तर पर पचास से अस्सी रुपये किलो में कोदो बिकता है लेकिन शहरों में इसे बेचने पर कई गुना फायदा मिलता है।

डायबिटीज मरीजों के लिए कोदो रामबाण

नियमित आहार में कोदो शामिल करने से पेट सम्बन्धी बीमारी से व्यक्ति महफूज रहता है। राजकीय हास्पिटल के सीएमएस डाॅ. केके गुप्ता ने बताया कि कोदो खाने से डायबिटीज रोगी कुछ ही दिनों में पूरी तरह से ठीक हो जाते है। आयुर्वेद चिकित्सा में एक्सपर्ट डाॅ. आत्म प्रकाश ने बताया कि कोदो में प्रोटीन, कार्बाेहाईड्रेड, आयरन, कैल्शियम, फाइबर व फास्फोरस प्रचुर मात्रा में होता है जिससे डायबिटीज कन्ट्रोल रहती है। जाने माने वैद्य लखन प्रजापति व डाॅ. दिलीप त्रिपाठी ने बताया कि लीवर, आमदोष व बात रोग में कोदो रामबाण है। हड्डियों में बुखार बस जाने पर कोदो का सेवन लगातार करने से रोगी ठीक हो जाता है। बताया कि लिकोरिया व पित्त सम्बन्धी बीमारी में कोदो फायदेमंद है।

पंकज

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