बिहार विधानसभा चुनाव : प्रवासियों के दर्द पर शुरू हुई चुनावी राजनीति

बेगूसराय (हि.स.)। बिहार विधानसभा चुनाव की घोषणा हो चुकी है। चुनाव की घोषणा के साथ ही पार्टी के घोषणापत्र से अलग स्थानीय मुद्दों को भी कागज पर उकेरा जा रहा है। इस बार के चुनाव में एक नया विषय बनाया गया है प्रवासी मजदूर। इस चुनाव में प्रवासी मजदूर एक बड़ा मुद्दा बन रहे हैं और प्रवासी मजदूर इस चुनाव में अहम भूमिका निभाकर किसी की भी कुर्सी खिसका और सौंप सकते हैं। तभी तो सभी राजनीतिक दलों को प्रवासी मजदूरों की चिंता सताने लगी है। सत्ताधारी दल के कार्यकर्ता वापस लौटने वाले प्रवासी मजदूरों को मिली बेहतर सुविधा और उन्हें गांव में काम दिलाने के लिए किए गए प्रयासों की चर्चा कर रहे हैं। वहीं, विपक्ष प्रवासी के दर्द को कुरेद कर उनका हमदर्द बनने का भरोसा दिलाने में जुटी हैं। बिहार में रोजगार नहीं मिलने के कारण देश के विभिन्न शहरों में रहने वाले लाखों-लाख मजदूर शुरू से ही राजनीति के शिकार होते रहे हैं। जिस शहरों को अपने श्रम शक्ति से विकास की राह पर दौड़ा दिया, वहां भी उनके साथ राजनीति हुई। 

दिल्ली, महाराष्ट्र, असम, राजस्थान और पश्चिम बंगाल समेत किसी भी राज्य की सरकार ने बयान देने के अलावा धरातल पर उनके लिए कुछ नहीं किया। किसी भी सरकार ने जाते हुए प्रवासियों को रोकने के लिए ठोस व्यवस्था नहीं किया। बड़ी संख्या में प्रवासी जब अपने गांव पहुंच गए तो फिर राजनीति के केंद्र में आ गए। सरकार बेहतर सुविधा और रोजगार मुहैया कराने में जुट गई तो विपक्ष घर लौटने में हुए दर्द को कुरेदने में जुटा है। सीधे तौर पर भले कोई कुछ नहीं बोले, लेकिन उन्हें पता है कि प्रवासी चुनाव में किसी का भी खेल बिगाड़ सकते हैं और बना भी सकते हैं। 
राजनीति के जानकारों का कहना है कि परदेस से बिहार तीन-चार करोड़ से अधिक प्रवासी लौटे हैं, जो किसी भी विधानसभा क्षेत्र में चुनावी गुणा-भाग को गड़बड़ा सकते हैं। जातीय समीकरण के हिसाब से इनमें सबसे अधिक संख्या दलित, महादलित, पिछड़ा एवं अतिपिछड़ा वर्ग की है। पक्ष और विपक्ष दोनों को इन्हें अपने पक्ष में लाने के लिए कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ेगा। क्योंकि परदेस में भले ही मजदूरी कर रहे थे, लेकिन जागरूक हो चुके हैं, सब के पास मोबाइल है और सब कुछ देख, सुन और समझ रहे हैं। 
सत्ताधारी दल ने इनके लिए काफी कुछ किया है और लगातार कर रही है। लेकिन विपक्ष इसे सरकार की विफलता समझाते हुए अपने लिए एक अवसर के रूप में देख रहा है। प्रवासियों के दर्द को महसूस करना सबके वश की बात नहीं है। ये बिहार में रोजी-रोटी का जुगाड़ नहीं हो पाने के कारण परदेस में अपना श्रम सस्ते में बेच रहे थे, परिवार का भरण-पोषण कर रहे थे। वहां जब कोई सहारा नहीं मिला तो पैदल, साइकिल, रिक्शा, ठेेेला से ही घर आ गए। 
भाजपा, जदयू और लोजपा नेताओं ने बातचीत के दौरान कहा कि सरकार का ध्यान कोरोना से निपटने, प्रवासियों को सुविधा देने, रोजगार के अवसर पैदा करने और लॉकडाउन के कारण बदहाल हुई अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने में है। प्रवासियों को सुविधा और रोजगार देना सरकार के काम का हिस्सा है, चुनाव का विषय नहीं। राजद, कांग्रेस, सीपीआई एवं जाप के नेताओं का कहना है कि विधानसभा चुनाव में प्रवासियों का दर्द बड़ा मुद्दा होगा। 
सरकार ने श्रमिकों को तड़पाया, सड़कों और रेलवे लाइन पर मरने के लिए छोड़ दिया, इससे बड़ी बात क्या होगी। इस चुनाव में प्रवासियों का वोट बहुत मायने रखेगा। फिलहाल लाखों वोटरों की नई फौज इस बार चुनाव के दौरान गांव में हैं। परदेस में रहने के कारण मतदान में हिस्सा नहीं ले पाने वाले प्रवासी अपने गांव में हैं तो वोट डालने की हरसंभव कोशिश करेंगें। 

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