बिल्ली में क्या ताकत कमजोरी दिल्ली में है!

वीर विक्रम बहादुर मिश्र

गणतंत्र दिवस पर दिल्ली में जो कुछ हुआ, उसने भारतीय संविधान की मर्यादाओं को तार-तार कर दिया। भारत का संविधान दुनिया का सर्वश्रेष्ठ संविधान है, जिसमें दुनिया के महत्वपूर्ण राष्ट्रों के संविधानों से उत्कृष्टतम बातें ली गयी हैं। परंतु भारत के संविधान निर्माताओं ने इस बात पर ध्यान नहीं दिया कि उत्कृष्टतम संविधान के अनुपालन का दायित्व भी उत्कृष्टतम सोच व समझ वाले लोगों के हाथों में हो। हालांकि संविधान सभा के अध्यक्ष डा राजेंद्र प्रसाद ने संविधान सभा के सदस्यों को अपने संबोधन में कहा था कि कोई संविधान कितना भी अच्छा क्यों न हो, पर उसका अनुपालन करने वाले यदि योग्य नहीं होंगे तो उसका अपेक्षित परिणाम भी नहीं निकलेगा। संविधान निर्माताओं ने नागरिकों की सोच और समझ में अपेक्षित सुधार करने और उन्हे देश के प्रति जागरूक बनाने पर विशेष ध्यान नहीं दिया, जिसका दुष्परिणाम सामने है। किसान आंदोलन की आड़ लेकर देशद्रोही तत्व लाल किले पर चढ़ गये और उन्होने तिरंगे की जगह पर दूसरा झंडा लहरा दिया। किसानों की आड़ लेकर घुसपैठियों द्वारा यह देशद्रोह का रिहर्सल जैसा लगता है। केंद्र द्वारा सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के क्रम में कृषि कानूनों को डेढ़ वर्ष तक स्थगित रखने के आश्वासन के बाद भी आंदोलन को जारी रखने और गणतंत्र दिवस पर समानांतर ट्रैक्टर रैली निकालने के किसानों के निर्णय ने संदेह की स्थिति पैदा कर दी है। कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने पहले ही आशंका व्यक्त करते हुए कहा था कि किसान अपनी रैली के लिए कोई और दिन चुन सकते थे। परंतु आशंका होते हुए भी सरकार का आंदोलनकारियों के प्रति नम्र रवैया बनाये रखना इसकी विफलता को उजागर करता हैं।
आश्चर्य की बात है कि भारत का संविधान समाज के सभी वर्गों के लोगों के मौलिक अधिकारों की तो रक्षा दृढ़तापूर्वक करता है। पर वह सभी को देश के प्रति कर्तव्यों की ओर उतनी दृढता से प्रेरित नहीं करता। न्यायालय आतंकवादियों अपराधियों तक के मौलिक अधिकारों के लिए जूझता है। पर वह शांतिप्रिय नागरिकों के हितों की सुरक्षा में नहीं कूदता। उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ सरकार ने लखनऊ में पिछले वर्ष हुए दंगे में चिन्हित दंगाइयों के चित्रों के पोस्टर जगह-जगह लगवा दिये, जिसे इलाहाबाद हाईकोर्ट ने स्वतः संज्ञान में लेकर उतरवा दिया। अब दिल्ली के लाल किला जैसी महत्वपूर्ण जगह पर दंगाई चढ़ गये और वहां तिरंगे की जगह दूसरा झंडा फहरा दिया। यही नहीं, 83 पुलिस कर्मियों पर हमला कर उन्हें घायल कर दिया। उन पर ट्रैक्टर चढ़ाने की कोशिश की। इस हमले की घटना सारे चैनलों ने प्रसारित की, पर न्यायालय ने अभी तक इसे संज्ञान में नहीं लिया। जबकि मुंबई के एक विधि छात्र ने सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को घटना से अवगत कराते हुए पत्र भी लिखा।
शाहीनबाग के मामले में दायर याचिका पर पिछले वर्ष सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट कहा था कि आंदोलनकारियों को दूसरों का मार्ग अवरुद्ध करने का अधिकार नहीं है। इसी आदेश का संदर्भ लेते हुए जब सड़क घेर आंदोलनरत किसानों को लेकर याचिका दायर की गयी तो सर्वोच्च न्यायालय ने कह दिया कि कानून व्यवस्था के मामले में पिछला उदाहरण नहीं दिया जा सकता। समस्या है कि संवैथानिक संस्थाओं की उदारता का लाभ उन्हें मिल रहा है, जो इसके पात्र नहीं हैं। किसानों को बहकावे में लेकर अपना उल्लू साधने के लिए वे ऊधम काट रहे हैं, जो किसान नहीं हैं। जो किसान अपनी समस्याओं से जूझते हुए आत्महत्या पर मजबूर होते रहे हों, वे इतना विलासिता पूर्ण आंदोलन नहीं कर सकते। भारत को आजादी देने से पूर्व ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ने जून 1947 में ब्रिटिश संसद में स्पष्ट कहा था कि भारत की जनता अभी आजादी को संभालने की स्थिति में नहीं है। इससे पहले उसे प्रशिक्षित और जागरूक बनाने की जरूरत है, ताकि वह अपनी आवश्यकताओं और जिम्मेदारियों को नये संदर्भ में समझ सके। ऐसा न हुआ तो भारत स्वार्थलोलुप नेताओं के संघर्ष का शिकार हो जायगा। आजादी मिले 75 वर्ष होने वाले हैं। भारतीय जनमानस स्वार्थी नेताओं के मकड़जाल से मुक्त नहीं हो पाया है। आज भी वह पैसा लेकर वोट बेचता है। स्वार्थी नेता अपनी झोली भर रहे हैं, जिन्होने लाकडाउन के दौरान तपती दोपहरी में पैदल भागते मजदूरो को एक गिलास पानी भी न दिया, वे दो महीने से किसान आंदोलनकारियों को बादाम का हलुआ खिला रहे हैं। भोलभाले लोग इसके पीछे के मंसूबे समझ नहीं पा रहे हैं। स्वार्थपरता की बढ़ती प्रतिस्पर्धा का परिणाम ही है कि आज देश में सर्वमान्य नेताओं का अभाव सा होता जा रहा है। किसी रचनाकर की कुछ पंक्तियां कुछ दिन पूर्व पढ़ने को मिली थीं, उन्हें उद्धृत कर रहा हूं :
’कोयल की डोली जब गिद्धों के घर आ जाती है।
तो बगुलों की टोली हंसों को खा जाती है।
जब जीवन में जयचंदों का अभिनंदन होने लगता है।
तो सांपों के बंधन में चंदन रोने लगता है।
फूलों को तितली जब हत्यारिन लगने लगती है।
तो मां की अर्थी भी बच्चों को भारी लगने लगती है।
जुगनू के घर जब सूरज के घोड़े सोने लगते हैं।
तो केवल चुल्लू भर पानी सागर होने लगते हैं।
सिंहों को म्याऊं कह दे क्या यह ताकत बिल्ली में है?
बिल्ली में क्या ताकत कमजोरी दिल्ली में है!’

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