पौराणिक और सांस्कृतिक धरोहर समेटे हुआ है गाजीपुर का ‘महाहर धाम’

-राजा दशरथ के शब्दभेदी वाण से हुई थी श्रवण कुमार की मौत

शास्त्रों के अनुसार राजा दशरथ ने यहां ब्रह्म हत्या के निवारण के लिए की थी पूजा अर्चना

-यहां छिपा है राजा दशरथ का खजाना, त्रेतायुग में यहां से भी चलता था राजपाट!

गाजीपुर (हि.स.)। जनपद का मरदह क्षेत्र अपने आप में पौराणिक और सांस्कृतिक धरोहर समेटे हुए है। इलाके का ‘महाहर धाम’ में विश्व प्रसिद्ध प्राचीन तेरह मुखी शिवलिंग जो जमीन के अंदर से उस वक्त निकला था, जब पुरातन काल में प्रचंड सूखे से निजात पाने के लिए कुएं का निर्माण कराने की कोशिश की गई थी।

महाहर धाम के बारे में प्रसिद्ध है कि यहां राजा दशरथ के शब्दभेदी वाण से भूलवश श्रवण कुमार की हत्या हुई थी और यही वो स्थान है जहां श्रवण कुमार के अंधे और बुढ़े मां बाप ने राजा दशरथ को श्राप दिया था और उन्होंने भी यहीं प्राण त्यागे थे।

ब्रह्महत्या से बचने के लिए राजा दशरथ ने इस स्थान पर शिव परिवार व भगवान ब्रह्मा की स्थापना की और लोगों की मानें तो राजा दशरथ यहां महल बनाकर अयोध्या से आते जाते रहते थे और आज भी लोगों का मानना है कि राजादशरथ की गढ़ी जो जमीन के नीचे दबी पड़ी है उसमें खजाना दबा हुआ है। जिसे कई बार निकालने की कोशिश हुई, लेकिन कोई कामयाब नहीं हुआ और आज भी वह रहस्य का विषय बना हुआ है।

-यहीं पर हुई थी श्रवण कुमार की मौत

गाजीपुर जिला मुख्यालय से एनएच 29 जो गोरखपुर होते हुए नेपाल को जाता है। इसी सड़क पर पूरब दिशा में तकरीबन 35 किलोमीटर दूर यही वो स्थान है जो मरदह के नाम से जाना जाता है। मरदह जो नाम से ही विदित है कि आदमी की हत्या उससे अगर हम प्रचलित किवदन्तियों को जोड़े तो बताया जाता है कि यही वो स्थान है जहां से श्रवण कुमार अपने अंधे मां बाप को कांवड़ में लेकर गुजर रहे थे और प्यास के चलते इसी 365 बीघे में फैले सरोवर में जल लेने के लिए मां बाप को सुरक्षित स्थान पर छोड़ कर जल ले ही रहे थे कि उस समय उनके कमंडल में पानी लेते वक्त जो ध्वनी हुई उस ध्वनी पर आखेट प्रेमी राजा दशरथ ने जानवर समझ कर शब्दभेदी बांण मारा था। जिससे श्रवण कुमार की मृत्यु हो गई थी और भूलवश हुई इस गलती के चलते राजा दशरथ को श्रवण कुमार के मां बाप ने श्राप भी दिया था कि पुत्र वियोग से जैसे हम मर रहे वैसे ही तुम्हारा भी अंत पुत्र वियोग में ही होगा।

राजा दशरथ ने की थी शिव परिवार और भगवान ब्रह्मा की स्थापना

बहुत कम लोगों को इस बात का पता होगा कि इस ब्रह्म हत्या से बचने के लिए राजा दशरथ ने यहां शिव परिवार के साथ भगवान ब्रह्मा की भी स्थापना इसी स्थान पर की है। जिसकी निरन्तर पूजा आज तक जारी है।

कुआं निर्माण के दौरान मिला था शिवलिंग

किवदन्तियों और शिव महापुराण के अनुसार जब इस स्थान ने धार्मिक रूप ले लिया तो यहां सुखे के चलते कुएं के निर्माण के दौरान जमीन में तकरीबन 8 से 10 फीट नीचे अलौकिक व विश्व प्रसिद्ध तेरह मुखी आप रूपी शिवलिंग प्रकट हुआ। जिसे देख कर लोगों को इस स्थान से विशेष आस्था हो गई और पूजारियों की मानें तो ये मक्केश्वर महादेव (जिनकी मक्का में होने की मान्यता मानी जाती है) का ही दूसरे रूप है और इतना अद्भुत शिवलिंग कही और नहीं है।

लोगों का मानना है कि महाहर धाम के इस शिवलिंग में इतना महात्म है कि अगर इस शिवलिंग की जिसने भी पूजा अर्चना की उसके सारे मनोरथ सफल होते है और अगर आप ने कुछ करने का वादा किया है और आप भूल जाते हैं तो आपके सारे मनोरथ व्यर्थ भी हो जाते है। और इसी डर से यहां पर कोई झुठ नहीं बोल पाता है।

श्रवण कुमार की इस प्रतिमा से यह सिद्ध होता है कि यहां श्रवण कुमार की हत्या हुई थी और ब्रह्मा जी का ये मंदिर भी इस बात को प्रमाणित करता है कि राजा दशरथ ने शास्त्रों के अनुसार यहां ब्रह्म हत्या के निवारण के लिए पूजा अर्चना की थी। गौरतलब हो कि भगवान ब्रह्मा का मंदिर भारत में बहुत जगह नहीं है एक ही प्राचीन मंदिर पुष्कर में है और दूसरा इन तथ्यों के अनुसार महाहर धाम में है।

प्राचीन काल में राजा गाधि के अधिपत्य में था पूरा इलाका

मंदिर के मुख्य गेट पर अगर आप ध्यान दें तो लिखा गया है कि महाहर धाम गाधिपूरी। जिसका तात्पर्य राजा गाधि से है जो विश्वामित्र के पिता थे। प्राचीन काल में यह पूरा क्षेत्र राजा गाधि के अधिपत्य में था जहां इस इलाके में गहन वन होने के प्रमाण मिलते है। अगर यहां से अयोध्या की दूरी देखी जाए तो तकरीबन 150 से 200 किलोमीटर होगी। किवदन्तियों के अनुसार यहां राजा दशरथ ने बकायदा अपनी गढ़ीमहल बना रखा था। और यह प्रमाणित भी होता है कि इस जगह से रथ अयोध्या आते और जाते थे। जिसके अनुसार इस जगह का नाम अभिलेखो में रथवटी दर्ज है।

जमीन के नीचे छुपा है खजाना

यहां की मान्यताओं के अनुसार इस जमीन के नीचे राजा दशरथ का महल दबा पड़ा है, जिसका ब्रिटिश काल में अंग्रेज अधिकारियों द्वारा खजाने के लिए खुदाई भी की गई। जिसमें महल के अवशेष मिले, लेकिन खजाना मिलने में सफलता नहीं मिली। इसी क्रम में आजादी के बाद 1948 में तत्कालीन जिलाधिकारी के द्वारा खजाना निकालने का एक बार फिर प्रयास किया गया। बताते है कि नीचे से संर्पों के फुंफकारने की आवाज ने खुदाई कर रहे लोगों का हौसला पस्त कर दिया। और लोग राजा दशरथ के दबे महल और खजाने के रहस्य से पर्दा उठाने में आज तक असफल रहे। यहां आम जन धारणा है कि इस जगह की अगर खुदाई हो तो खजाने के साथ सांस्कृतिक और पौराणिक धरोहरों के रहस्य से भी पर्दा उठेगा।

गंगा के किनारे बसा शहर गाजीपुर का इतिहास काफी पुराना है ये वो इलाका है जहां रामायण से जुड़े काफी अंश मिलते है। इस इलाके में ऋषि जम्दग्नी (परशुराम जी के पिता) राजा गाधि, (विश्वामित्र के पिता) के साथ-साथ महाभारत काल के काफी अवशेष मिलते है। मरदह क्षेत्र का महाहर धाम और यहां के तेरह मुंखी शिवलिंग की पूजा अर्चना यूं तो साल भर होती है लेकिन सावन के महिने में यहां का महात्म्य बहुत बढ़ जाता है। काफी दूर-दूर से भक्त यहां अपनी मन्नतें मांगने आते हैं और पूर्जा अर्चना कर हर-हर महाहर धाम का जयकारा लगाते हैं।

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