पेट्रोल और डीजल की कीमतों में वृद्धि?

डॉ. ऋषिकेश सिंह

पेट्रोल और डीजल की कीमत में गुरुवार को 35 पैसे प्रति लीटर की वृद्धि की गई जिसके साथ देशभर में इनकी कीमत रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गई । दिल्ली में पेट्रोल की कीमत 106.54 रूपये प्रति लीटर, मुंबई में 112.44 रूपये प्रति लीटर और गंगानगर में 118.59 रुपए प्रति लीटर तक पहुंच गई है। पेट्रोल और डीजल की मंहगाई का प्रभाव यह हुआ है कि इससे परिवहन मंहगा होता जा रहा है जिसका असर सभी उत्पादों की कीमत पर पड़ता जा रहा है। खाद्य तेल, सब्जियों के साथ-साथ रसोई गैस के दाम भी बढ़ते जा रहे हैं। ऐसा लगता है जैसे भारतीय राजनीतिक दलों में महंगाई के प्रति बिल्कुल उदासीनता आ गई है। सत्ताधारी पार्टी और उसके समर्थकों का कहना है कि पेट्रोल और डीजल की कीमतों को कम करना संभव नहीं है क्योंकि इससे राजस्व में भारी कटौती होगी और देश में गरीबों के कल्याण की तमाम योजनाओं तथा आधारभूत संरचना के निर्माण की तमाम योजनाओं को नुकसान पहुंचेगा। जबकि विरोधी राजनीतिक पार्टियों और उनके समर्थकों का कहना है कि पेट्रोल और डीजल को भी जीएसटी के दायरे में लाना चाहिए अन्यथा महंगाई पर नियंत्रण करना असंभव हो जाएगा। अभी हाल में केरल उच्च न्यायालय के निर्देश पर जी एस टी कौंसिल की लखनऊ में आयोजित 45 वीं बैठक में केंद्र व राज्यों ने पेट्रोल डीजल को जीएसटी के दायरे में लाने के निर्णय को सर्वसम्मति से खारिज कर दिया ।अभी पेट्रोल के आधार मूल्य पर 134.37 प्रतिशत तथा डीजल के आधार मूल्य पर 116.32 प्रतिशत कर व सेस वसूला जाता है। सत्ता समर्थकों का तर्क है कि यदि ऐसे में पेट्रोल और डीजल पर जीएसटी की अधिकतम दर 28 प्रतिशत लगाई जाती है तो लगभग 4.27 लाख करोड़ रुपए राजस्व का भारी नुकसान होगा। इसी तरह पेट्रोलियम पदार्थों पर वैट राज्यों की आय का प्रमुख स्रोत है। राज्यों को औसतन 18.55 रुपए प्रति लीटर पेट्रोल एवं 13.46 रुपए प्रति लीटर डीजल से राजस्व प्राप्त होता है इसलिए राज्यों के राजस्व आय में भी भारी कमी आएगी तो क्या सरकारें इतने बड़े राजस्व की क्षतिपूर्ति किसी अन्य माध्यम से कर पाएंगी। लेकिन प्रश्न यह भी खड़ा होता है कि आखिर पेट्रोल डीजल से हमारी सरकारों को कितना धन अर्जित करना चाहिए? साथ ही यह प्रश्न भी खड़ा होता है कि क्या पेट्रोलियम पदार्थ गुड्स नहीं है? एक तरफ हम पूरे देश में एक समान कर की बात करते हैं तो दूसरी तरफ पेट्रोलियम पदार्थों के मामले में घोर असमानता का परिचय देते हैं। लेकिन यहां यह भी उल्लेखनीय है कि भारत पर तेल के ऊंचे दाम की दोहरी मार पड़ती है क्योंकि हमें अपनी खपत का 85 फीसद तेल आयात करना पड़ता है ।इससे घरेलू मंहगाई के साथ-साथ हमारा रुपया कमजोर होता है और हमारी आर्थिक संप्रभुता भी प्रभावित होती है और सबसे बड़ी बात यह कि यदि कभी किसी परिस्थिति में तेल का आयात रुक जाए तो हमारी पूरी अर्थव्यवस्था ठप हो सकती है। इसलिए मैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के इस बात का समर्थन करता हूं कि हमें आयातित तेल पर निर्भरता को घटाकर 50 फीसद पर लाना होगा क्योंकि हमें तेल आयात करने के लिए डालर की आवश्यकता पड़ती है और डालर जुटाने के लिए हमें अपने लौह खनिज को औने पौने दाम पर बेचना पड़ता है। इसलिए हमें सौर और पवन उर्जा को बढ़ावा देना चाहिए तथा ऊर्जा के ऐसे संसाधनों पर ध्यान बढ़ाना चाहिए जिससे तेल की खपत कम हो। यद्यपि तेल की बढ़ती कीमत जनमानस को परेशान कर देती है। सत्ताधारी लोगों की बातों में सच्चाई भी हो, तो भी विरोधी दलों की बातें तेल की कीमतों पर जनता को ठीक समझ में आती हैं। तेल की बढ़ती कीमतों का समर्थन करने वाले जनता को मूर्ख की तरह दिखाई देते हैं। लेकिन मैं अभी बताना चाहूंगा कि हमें तेल के ऊंचे दाम का, महंगाई पर प्रभाव को ज्यादा तूल नहीं देना चाहिए क्योंकि पेट्रोल के दाम में 100 फीसद की वृद्धि होने पर देश में महंगाई एक फीसद बढ़ती है और डीजल के दाम में 100 फीसद वृद्धि होने पर महंगाई 2.3 फीसद बढ़ती है। दोनों का सम्मिलित प्रभाव हम 1.5 फीसद मान सकते हैं। लेकिन यह बात भी सही है कि उपभोक्ता महंगा तेल खरीदते समय विचलित हो जाता है। इसलिए इस मामले पर मेरी राय है कि भविष्य में जब कच्चे तेल की कीमत में कमी आ जाए और कारपोरेट कर, आयकर, जीएसटी आदि से राजस्व में बढ़ोतरी हो तो सरकार को पेट्रोलियम पदार्थों को जीएसटी के तहत लाने पर गंभीरतापूर्वक विचार करना चाहिए।
(डॉक्टर ऋषिकेश सिंह जाने-माने राजनीति शास्त्री और एलबीएस पीजी कालेज गोण्डा में राजनीति शास्त्र विभाग में एसोसिएट प्रोफेसर हैं।)

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