पितृ पक्ष दो से 17 सितंबर तक, अधिमास के बाद 17 अक्टूबर से शुरु होगा नवरात्र

-18 सितंबर से 16 अक्टूबर तक रहेगा अधिमास, नहीं होंगे मांगलिक कार्य

लखनऊ(एजेंसी)। पितरों को तर्पण देने और उन्हें स्मरण करने का पखवारा, पितृ पक्ष इस वर्ष दो से 17 सितंबर तक रहेगा। अमूमन पितृ पक्ष के बाद शारदीय नवरात्र शुरु हो जाता है, लेकिन इस बार 18 सितंबर से 16 अक्टूबर तक अधिमास रहेगा। ऐसे में शक्ति आराधना का पर्व एक माह विलंब से 17 अक्टूबर को प्रारम्भ होगा। 
सनातन धर्म में क्वार यानि आश्विन मास का कृष्ण पक्ष पितरों को समर्पित है। इस दौरान पितरों की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान व तर्पण किया जाता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार पितृ पक्ष में यदि पितरों की श्रद्धा पूर्वक पूजा न की जाए तो उनकी आत्मा भटकती रहती है। विधानतः पितृ पक्ष भाद्र मास शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा से ही प्रारम्भ हो जाता है और आश्विन मास की अमावस्या तक चलता है। अंतिम दिन पितृ विसर्जन पर पितरों को विधि विधान से विदा किया जाता है।
इस बार करीब एक माह देरी से शुरु होगा नवरात्र

 सामान्यतः पितृ विसर्जन के दूसरे दिन आश्विन शुक्ल प्रतिपदा से कलश स्थापना के साथ शक्ति आराधना का पर्व नवरात्र प्रारम्भ हो जाता है। लेकिन, इस बार ऐसा नहीं हो रहा है। कारण, पितृ विसर्जन के अगले दिन यानि 18 सितंबर को अधिमास लग रहा है, जो 16 अक्टूबर तक रहेगा। इस तरह नवरात्र का पर्व 17 अक्टूबर से शुरू होगा और समापन नवमी के व्रत अनुष्ठान के साथ 25 अक्टूबर को है। नवमी और दशमी एक दिन ही पड़ने के कारण इस बार विजय दशमी भी नौवें दिन यानि 25 अक्टूबर को ही मनायी जाएगी। पितृ विसर्जन के करीब एक माह बाद नवरात्र आने का यह संयोग 165 साल बाद बन रहा है। 
क्या है अधिमास ?
ज्योर्तिविद डॉ. ओमप्रकाशाचार्य बताते हैं कि अधिमास चंद्र वर्ष का अतिरिक्त भाग है। इसे मलमास अथवा पुरुषोत्तम मास भी कहा जाता है। यह 32 माह 16 दिन 8 घंटे के अंतराल पर यानि हर तीसरे वर्ष आता है। उन्होंने बताया कि ज्योतिष काल गणना के अनुसार सूर्य वर्ष 365 दिन 6 घंटे का होता है, जबकि चंद्र वर्ष 354 दिन का माना जाता है। इन दोनों वर्षो के बीच 11 दिन का अंतर होता है। इसी अंतर को दूर करने के लिए प्रत्येक तीसरे वर्ष एक अतिरिक्त चंद्रमास आता है। अतिरिक्त महीना होने के कारण इसे मलमास का नाम दिया गया है। 
डॉ. ओमप्रकाशाचार्य का कहना है कि पहले मलमास को बहुत अशुभ माना जाता था, लेकिन बाद में श्रीहरि भगवान विष्णु ने इसे अपना लिया। तभी से इसे पुरुषोत्तम मास कहा जाने लगा। इसीलिए इस मास में भगवान विष्णु की आराधना का विधान है। ज्योर्तिविद कहते हैं कि इस महीने में शादी विवाह जैसे मांगलिक कार्यों से बचना चाहिए। वैसे भी इस समय चतुर्मास चल रहा है, जिसके कारण मांगलिक कार्य पहले से ही प्रतिबंधित हैं। दरअसल चातुर्मास के दौरान श्रीहरि भगवान विष्णु योग निद्रा में चले जाते हैं और चार महीने बाद देवोत्थान एकादशी को जागृत होते हैं।
चातुर्मास का व्रत आषाढ़ शुक्ल एकादशी यानि देवशयनी एकादशी से शुरू होकर कार्तिक शुक्ल एकादशी (देवोत्थान एकादशी) तक रहता है।   अधिमास के कारण इस बार का चातुर्मास भी पांच माह का हो गया है। इस वर्ष देवशयनी एकादशी एक जुलाई को थी और देवोत्थान एकादशी 25 नवंबर को है। हालांकि संन्यास परंपरा के लोग गुरु पूर्णिमा से चार्तुमास का व्रत शुरू करते हैं। इस बार गुरु पूर्णिमा पांच जुलाई को थी। सनातन परंपरा के अनुसार चातुर्मास व्रत के दौरान साधु-संत एक ही स्थान पर प्रवास कर वही जप-तप आदि का अनुष्ठान करते हैं।  

अधिमास के कारण अन्य त्योहारों की तिथियों में भी अंतर
 इस वर्ष अधिमास के चलते नवरात्र ही नहीं बल्कि दीपावली सहित अन्य त्योहारों की तिथियों में भी अंतर आ रहा है। पिछले वर्ष दीपावली 22 अक्टूबर को थी, जबकि इस बार 14 नवंबर को पड़ रही है। इसी तरह वर्ष 2019 में अनंत चतुर्दशी 12 सितंबर को थी, इस बार यह तिथि पहली सितंबर को ही होगी। पिछले वर्ष पितृ पक्ष 14 सितंबर से 28 सितंबर तक था, जबकि इस बार दो से 17 सितंबर तक है। इसके अलावा वर्ष 2019 में नवरात्र की शुरुआत 29 सितंबर से और दशहरा आठ अक्टूबर को था, जबकि इस साल यह क्रमशः 17 और 25 अक्टूबर को पड़ रहा है। 

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