जनता को हल्के में न लें, इंदिरा और अटल भी हारे थे चुनाव

एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार ने साधा भाजपा पर निशाना

राज्य डेस्क

मुंबई। एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार ने भाजपा पर निशाना साधते हुए कहा कि राजनेताओं को देश मतदाताओं के प्रति गलतफहमी पाली, तो वह कभी सहन नहीं करता। यहां इंदिरा गांधी और अटल बिहारी वाजपेयी जैसे शक्तिशाली नेताओं को भी चुनाव में हार का सामना करना पड़ा था। महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के विधानसभा चुनावों के दौरान ’मी पुन्हा आई’ (मैं वापस आऊंगा) वाले बयान की आलोचना करते हुए पवार ने कहा कि मतदाताओं ने सोचा कि इस रुख से अहंकार की बू आती है और उन्हें लगा कि सबक सिखाया जाना चाहिए। पवार ने शिवसेना के मुखपत्र सामना को दिए इंटरव्यू में कहा कि वे जितने मार्गदर्शक हैं, उतने ही खलबली मचानेवाले भी हैं। उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र की ‘ठाकरे सरकार’ को बिल्कुल भी खतरा नहीं है। उन्होंने कहा कि उद्धव ठाकरे के मुख्यमंत्री बनने के पहले का दौर देखें हैं। इन पांच वर्षों में शिवसेना और भाजपा की सरकार थी लेकिन शिवसेना के विचारोंवाले जो मतदाता हैं और जो शिवसेना कार्यकर्ता हैं, उन सभी में उस सरकार के प्रति एक तरह की व्याकुलता साफ दिखाई दे रही थी।
सवालः पूर्व मुख्यमंत्री फडणवीस के मैं फिर आऊंगा वाले बयान पर क्या कहना चाहेंगे?
जवाब : किसी भी शासक, राजनीतिज्ञ को मैं ही आऊंगा, इस सोच के साथ जनता को जागीर नहीं समझना चाहिए। इस तरह की सोच में थोड़ा दंभ झलकता है। इसलिए लोगों में ऐसी भावना हो गई और इन्हें सबक सिखाना चाहिए। यह विचार लोगों में फैल गया।
सवालः पूर्व मुख्यमंत्री फडणवीस ने हाल ही में एक साक्षात्कार में कहा कि मेरी सरकार चली गई अथवा मैं मुख्यमंत्री पद पर नहीं हूं, यह पचाने में बड़ी परेशानी हुई। इसे स्वीकार करने में ही दो दिन लगे।
जवाब : देखो, किसी भी लोकतंत्र में नेता हम अमरत्व लेकर आए हैं, ऐसा नहीं सोच सकता है। इस देश के मतदाताओं के प्रति गलतफहमी पाली तो वह कभी सहन नहीं करता। इंदिरा गांधी जैसी जनमानस में प्रचंड समर्थन प्राप्त महिला को भी पराजय देखने को मिली। इसका अर्थ यह है कि इस देश का सामान्य इंसान लोकतांत्रिक अधिकारों के संदर्भ में हम राजनीतिज्ञों से ज्यादा सयाना है और हमारे कदम चौखट के बाहर निकल रहे हैं, ऐसा दिखा तो वह हमें भी सबक सिखाता है। इसलिए कोई भी भूमिका लेकर बैठे कि हम ही! हम ही आएंगे तो लोगों को यह पसंद नहीं आता है।
सवाल : इन तमाम परिस्थितियों में क्या कभी आपको बालासाहेब ठाकरे की याद आती है?
जवाब : आती है ना। कोरोना और लॉकडाउन के कारण पहले दो महीने इत्मीनान से घर में बैठा था। बालासाहेब के काम का तरीका मुझसे ज्यादा तुम जानते हो। वह क्या दिन भर घर के बाहर निकल कर कहीं जाते थे, ऐसा नहीं है। कई बार कई दिन वे घर में ही बिताते थे। परंतु घर में रहते हुए भी सहयोगियों को साथ लेकर उन्हें प्रोत्साहित करके सामने आई चुनौतियों का सामना करना बालासाहेब ने सिखाया था, ऐसा मुझे लगता है। मेरे जैसे को इन दो महीनों में बालासाहेब की याद इन्हीं वजहों से आती थी कि हमें घर से तो बाहर निकलना नहीं है लेकिन बाकी के काम, जिस दिशा में हमें जाना है, उस दिशा में जाने के लिए सफर की तैयारी हमें करनी चाहिए। ये जिस तरह से बालासाहेब करते थे उसकी याद मुझे इस दौरान आई।
सवाल : मूलतः भीड़ भारतीय राजनीति की आत्मा है। भीड़ नहीं होगी तो हमारी राजनीति इंच भर भी आगे नहीं बढ़ेगी। आपका संदेश आगे नहीं जाएगा। लाखों की भीड़ जो जमा करता है। वह बड़ा नेता है, यह अब तक हमारे देश की अवस्था थी।
जवाब : यह स्थिति एकदम से बदल जाएगी, ऐसा मुझे नहीं लगता। धीरे-धीरे हालात होते जाएंगे लेकिन हमारे लिए इस स्थिति को नजरअंदाज करना संभव नहीं है। अमेरिका में राष्ट्रपति पद का चुनाव देखते हैं। उन चुनावों में दृश्य एकदम अलग होते हैं। हमारे यहां दृश्य अलग होते हैं। हम हिंदुस्थान को देखते हैं। बालासाहेब की लाखों की सभा होती थी। अटल जी की लाखों की सभा होती थी। इंदिरा गांधी की होती थी, यशवंतराव चव्हाण की होती थी। यह दृश्य अमेरिका एवं पश्चिमी देशों में देखने को नहीं मिलता है लेकिन टेलीविजन और रेडियो के माध्यम से पूरे देश का ध्यान उस दिन चर्चा की ओर होता था। मान लो राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार और प्रतिस्पर्धी उम्मीदवार इन दोनों के बीच डिस्कशन, चर्चा, सवाल-जवाब होते थे। उसको लगा होता था। पूरा देश देखता रहता है। लेकिन यह देखने के लिए और व्यक्त करने के लिए माध्यम अलग होता है। हमारा माध्यम अलग है।
सवाल : आपका शिवसेना से कभी वैचारिक नाता था, ऐसा तो नहीं कहा जा सकता। लेकिन आज आप महाराष्ट्र में एक हैं..
जवाब : वैचारिक मतभेद थे। कुछ मामलों में रहे होंगे। लेकिन ऐसा नहीं था कि सुसंवाद नहीं था। बालासाहेब से सुसंवाद था। शिवसेना के वर्तमान नेतृत्व से ज्यादा सुसंवाद था। मिलना-जुलना, चर्चा, एक-दूसरे के यहां आना-जाना, ये सारी बातें थीं। ऐसा मैं कई बार घोषित तौर पर बोल चुका हूं। बालासाहेब ने अगर किसी व्यक्ति, परिवार या दल से संबंधित व्यक्तिगत सुसंवाद रखा या व्यक्तिगत ऋणानुबंध रखा, तो उन्होंने कभी किसी की फिक्र नहीं की। वे ओपनली सबकी मदद करते थे। इसलिए मैं अपने घर का घोषित तौर पर उदाहरण देता हूं कि सुप्रिया के समय सिर्फ बालासाहेब ही उसे निर्विरोध चुनकर लाए। यह सिर्फ बालासाहेब ही कर सकते थे।
सवालः आपने राज्य में महाविकास आघाड़ी का प्रयोग किया, आपने उसका नेतृत्व किया। उसे 6 महीने पूरे हो चुके हैं। यह प्रयोग कामयाब हो रहा है, ऐसा आपको लगता है क्या?
जवाब : बिल्कुल हो रहा है। यह प्रयोग, और भी कामयाब होगा, इस प्रयोग का फल महाराष्ट्र की जनता और महाराष्ट्र के विभिन्न विभागों को मिलेगा, ऐसी स्थिति हमें अवश्य देखने को मिलेगी। लेकिन अचानक कोरोना संकट आ गया। यह महाराष्ट्र का दुर्भाग्य है। गत कुछ महीनों से राज्य प्रशासन, सत्ताधीश तथा राज्य की पूरी यंत्रणा सिर्फ एक काम में ही जुटी हुई है, वह है कोरोना से लड़ाई। इसलिए बाकी मुद्दे एक तरफ रह गए हैं। एक और बात बताता हूं अगर फिलहाल का सेटअप ना होता तो तो कोरोना संकट से इतने प्रभावीपूर्ण ढंग से नहीं निपटा जा सकता था। ध्यान रहे, कोरोना जितना बड़ा संकट और तीन विचारों की पार्टी, लेकिन सब लोग एक विचार से मुख्यमंत्री ठाकरे के साथ खड़े हैं। उनकी नीतियों के साथ खड़े हैं और परिस्थिति का सामना कर रहे हैं। लोगों के साथ मजबूती से खड़े हैं। यह कामयाबी है, इसका मुझे पूरा विश्वास है। सब लोग एक साथ मिलकर काम कर रहे हैं इसलिए यह संभव हुआ है। तीनों दलों में जरा-सी भी नाराजगी नहीं है।
सवालः इस सरकार के आप हेडमास्टर हैं या रिमोट कंट्रोल?
जवाब : दोनों में से कोई नहीं। हेडमास्टर तो स्कूल में होना चाहिए। लोकतंत्र में सरकार या प्रशासन कभी रिमोट से नहीं चलता। रिमोट कहां चलता है? जहां लोकतंत्र नहीं है वहां। हमने रशिया का उदाहरण देखा है। पुतिन वहां 2036 तक अध्यक्ष रहेंगे। वो एकतरफा सत्ता है, लोकतंत्र आदि एक तरफ रख दिया है। इसलिए यह कहना कि हम जैसे कहेंगे वैसे सरकार चलेगी, यह एक प्रकार की जिद है। यहां लोकतंत्र की सरकार है और लोकतंत्र की सरकार रिमोट कंट्रोल से कभी नहीं चल सकती। मुझे यह स्वीकार नहीं। सरकार मुख्यमंत्री और उनके मंत्री चला रहे हैं।

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