गांधी और जिन्ना

राज खन्ना

गांधी जी ने कहा, “जब आप बताएंगे कि प्रस्ताव मेरा है, तो जिन्ना कहेंगे “धूर्त गांधी।“ माउंटबेटन की टिप्पणी थी, “और मैं समझता हूं जिन्ना सही होंगे।“ वायसराय की जिम्मेदारी संभालने के बाद माउंटबेटन ने भारतीय नेताओं से मुलाकात का सिलसिला शुरु किया। 1 और 2 अप्रेल 1947 को माउंटबेटन की गांधी जी से भेंट हुई। विभाजन को रोकने की गांधी जी की असफल कोशिश का यह प्रस्ताव भी एक हिस्सा था। गांधी जी ने माउंटबेटन के सामने प्रस्ताव किया,“ लीग को तुरन्त अंतरिम सरकार बनाने के लिए आमंत्रित करें। फिर लीग उन समस्त अधिकारों का उपयोग करे जो ऐसी सरकार को वायसराय के अधीन प्राप्त हैं।“ उस समय अंतरिम सरकार पंडित नेहरु के नेतृत्व में चल रही थी। माउंटबेटन ने गांधी जी का मजाक उड़ाया,“ कांग्रेस द्वारा चलायी जाने वाली सरकार मैं लीग को सौंप दूँ।“ गांधी जी ने कहा मैं प्रस्ताव को लेकर गम्भीर हूँ। माउंटबेटन की नजर में, “यह चालाकी भरा प्रस्ताव था।“ जिन्ना की विभाजन की जिद थी। कांग्रेस चाहती थी पहले आजादी। जिन्ना अंग्रेजों के रहते पाकिस्तान हासिल कर लेना चाहते थे। कांग्रेस अंग्रेजों को तीसरा पक्ष मानते हुए उन्हें मसले से दूर रखना चाहती थी। 5-6 अप्रेल को माउंटबेटन की जिन्ना से भेंट हुई। जिन्ना के बारे में उनका आकलन था,“ ठंडा,गुस्ताख़ और तिरस्कारपूर्ण।“ जिन्ना दो टूक थे, “मुसलमानों का मैं अकेला प्रवक्ता हूँ। जो मैं कहूंगा वे मानेंगे। मुस्लिम लीग मानेगी। जिस दिन लीग नही मानेगी, मैं इस्तीफा दे दूंगा और लीग उसी दिन खत्म हो जाएगी।“ दर्प के साथ जिन्ना ने कहा, “ये हैसियत कांग्रेस में किसी की नही। यहां तक कि गांधी की भी नही।“ कांग्रेस से ख़फ़ा जिन्ना ने कहा, “उन्हें जल्दी से जल्दी अंग्रेजों द्वारा इस्तेमाल की जा रही शक्तियां चाहिए। मुसलमानों को उनका हिस्सा न मिले, इसके लिए किसी सीमा तक गिर सकते हैं। यहां तक कि डोमिनियन दर्जा भी मंजूर होगा।“
राजाजी (सी. राजगोपालाचारी) भारत छोड़ो आंदोलन से दूर रहे, इसलिए जेल के बाहर थे। उनकी सोच थी, “लीग तब तक कांग्रेस के साथ नही आएगी जब तक उसे मुस्लिम बहुल राज्यों में स्वशासन का अधिकार नही होगा।“ उन्होंने तीन सूत्री फार्मूला पेश किया। गांधी जी ने इसे मंजूरी दी। जिन्ना ने उसे यह कहते हुए खारिज किया कि इससे पाकिस्तान की मांग पूरी नही होती। 4 अगस्त 1942 को मेकलयी के जरिये गांधी जी ने जिन्ना से समझौते की एक और कोशिश की। अप्रेल 1943 में लीग के खुले अधिवेशन में जिन्ना ने कहा, “यदि कांग्रेस लीग से समझौता करना चाहती है, तो मुझसे ज्यादा कौन खुश होगा! पर ऐसी कौन सी बात है, जो गांधी को मुझे सीधे पत्र लिखने से रोक रही है। (गांधी जी उस समय जेल में थे)“ यदि उनका ह््रदय परिवर्तित हो गया है तो उन्हें कुछ पंक्तियां ही तो लिखनी हैं। जिन्ना ने अपनी आदत से हटकर गांधी को महात्मा भी सम्बोधित किया। राजनीतिक युद्ध विराम की बात की। कहा, “जब हम मिलने जा रहे हैं, हमारी मदद कीजिये।इस समस्या के समाधान की ओर बढ़ें।“ गांधी जी ने उत्तर दिया, “मैं आपसे मिलना चाहता हूँ। पर आपके आमंत्रण में ’यदि’ लगा है। कृपया मैं जैसा हूँ, वैसा ही स्वीकार करें। ह््रदय परिवर्तन की जानकारी तो ईश्वर को ही हो सकती है।“ गांधी जी-जिन्ना की मुलाकात 9 सितम्बर 1944 को मुमकिन हुई। जिन्ना के बम्बई स्थित निवास 10 माउंट प्लेजमेंट रोड पर बातचीत का सिलसिला 27 सितम्बर तक चला। जिन्ना उनके गले मिले पर कांग्रेस में उनकी हैसियत पर सवाल उठाया। फिर माने। बातचीत आगे बढ़ी। साफ हुआ कि जिन्ना कुछ देने नही सिर्फ़ लेने की बात कर रहे हैं। पहले दिन वापसी में गांधी जी से सवाल हुआ, जिन्ना से क्या लेकर आये? जबाब था, “सिर्फ फूल।“ जिन्ना ने गांधी जी के सामने अपनी पुरानी राय दोहराई, “मुझे लगता है कि आप यहां हिन्दू के तौर पर और हिन्दू कांग्रेस के प्रतिनिधि के तौर पर आए हैं। मुसलमान पाकिस्तान चाहते हैं। लीग अकेले मुसलमानों की नुमाइंदगी करती है और वह बंटवारा चाहती है।“ गांधी जी का जबाब था, “मैं मानता हूं कि लीग मुसलमानों का सबसे ताकतवर संगठन है, लेकिन इसका मतलब यह नही कि सारे मुसलमान बंटवारा चाहते हैं। इस प्रस्ताव पर यहां के निवासियों के बीच मतदान करा लीजिए।“ जिन्ना ऐसे मतदान में गैर मुसलमानों को शामिल करने के खिलाफ थे। पाकिस्तान के सवाल पर किसी मतदान को यहां तक कि इसके प्रस्तावित इलाकों में भी, वह केवल और केवल मुसलमानों तक सीमित रखना चाहते थे।
जिन्ना ने कहा, “हम इस बात पर कायम हैं कि किसी भी नजरिये से मुसलमान और हिन्दू दो अलग राष्ट्र हैं। संस्कृति, सभ्यता, भाषा, साहित्य, कला, स्थापत्य, नाम और नामावली, मूल्यों और हिस्सेदारी की भावना, कानून,रहन-सहन, इतिहास और परम्परा से मुस्लिम एक अलग राष्ट्र हैं।“ गांधी जी ने सवाल किया,“ लीग की पाकिस्तान की मांग का आधार यदि धार्मिक है, तो क्या विश्व के सभी मुसलमानों का एक ही राष्ट्र हो, क्योंकि दुनिया के सभी मुसलमान मिलकर एक ही समुदाय तो बनाते हैं। यह भी पूछा कि आखिर धर्म के अलावा क्या है जो भारतीय मुसलमानों को अन्य भारतीयों से अलग करता है? क्या वे तुर्क और अरबियों से अलग नही हैं? मुझे इतिहास में ऐसा कोई उदाहरण नही मिलता, जहां धर्मान्तरित लोगों या उसके बाद जन्म लेने वाली पीढ़ियों ने अपने जन्म लेने वाले हिस्से से अलग राष्ट्र की मांग की हो।“ जिन्ना का सख्त जबाब था,“भारत की समस्या का यही एक मात्र हल है। और यह कीमत (बंटवारा) भारत को अपनी आजादी के लिए चुकानी होगी।“ 27 सितम्बर को गाँधीजी ने अपनी प्रार्थना सभा में वार्ता की विफलता की जानकारी दी। विनाशकारी विभाजन को रोकने के लिए जिन्ना से इस मुलाकात को रोकने की मौलाना आजाद ने कोशिश की थी। कहा था,“गांधी जी बड़ी भूल करने जा रहे हैं।“ कांग्रेस के भीतर-बाहर से भी इस मुलाकात के खिलाफ स्वर उठे थे। हालांकि गांधी जी प्रयास को धर्म मानते थे। ’’और कुछ न करना तो अधर्म होगा।“ नोआखाली में अमन के लिए भटकते गांधी जी ने पेंसिल के टुकड़े से कागज पर लिखा था, “मैं नाकामयाब होकर नही मरना चाहता लेकिन मुझे आशंका है कि मैं नाकामयाब हो सकता हूँ।“ 6 मई 1947 को गांधी और जिन्ना की एक और मुलाकात हुई। माना जाता है कि यह उनकी आखि़री मुलाकात थी। एक बार वे फिर असहमत अलग हुए। जिन्ना ने विज्ञप्ति जारी की, “हमने दो मामलों पर चर्चा की। एक था भारत का हिंदुस्तान और पाकिस्तान में विभाजन। गांधी जी को विभाजन का सिद्धांत मंजूर नहीं है। वे समझते हैं कि विभाजन अवश्यम्भावी नहीं है, जबकि मेरे मत में पाकिस्तान न सिर्फ अवश्यम्भावी है बल्कि भारत की राजनीतिक समस्या का व्यावहारिक हल है। चर्चा का दूसरा विषय शांति की सयुंक्त अपील का था , जिसके लिए हम पूरी कोशिश से प्रयास करेंगे।“ आने वाले दिन दोनो ही सवालों पर गांधी जी और भारत के हिस्से में दुःख और निराशा हाथ आयी। पाकिस्तान के निर्माण के बाद भी जिन्ना के लिए गांधी जी ’हिंदुओं के ही प्रतिनिधि’ रहे। विडम्बना देखिए कि हिन्दू-मुस्लिम एका की कोशिश में गांधी जी शहीद हो गए। … लेकिन उनकी शहादत के बाद भी श्रद्धांजलि की औपचारिकता में जिन्ना के दिल की बात उनकी जुबान पर थी, “मैं इस बात से सदमे में हूँ कि महात्मा गांधी पर हमला हुआ, जिसमें उनका निधन हो गया। हमारे बीच मतभेद थे लेकिन वह हिन्दू समुदाय के सबसे महान व्यक्ति थे। मेरी संवेदनाएं भारत के हिन्दू समुदाय और गांधी जी के परिवार के साथ हैं।“

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