उप्र में बीते वर्ष की तुलना में पराली जलाने के मामलों में कमी दर्ज

-इस वर्ष फसल 419 घटनाएं, वर्ष 2019-20 में इसी अवधि में 506 मामले हुए दर्ज

लखनऊ (हि.स.)। प्रदेश में बीते वर्ष 2019-20 की तुलना में इस वर्ष फसल अवशेष जलाए जाने की घटना में कमी आई है। प्रदेश में 20 अक्टूबर तक सेटेलाइट के माध्यम से प्राप्त इमेज के अनुसार इस वर्ष फसल अवशेष जलाए जाने की 419 घटनाएं प्रकाश में आई हैं, जबकि वर्ष 2019-20 में इसी अवधि में कुल 506 घटनाएं हुईं थी। 
अपर मुख्य सचिव कृषि डॉ. देवेश चतुर्वेदी ने बताया कि फसल अवशेष की घटनाओं को शून्य या न्यून किए जाने के लिए सभी जनपदों को आवश्यक निर्देश जारी कर दिए गए हैं।
उन्होंने बताया कि प्रदेश के 31 जनपदों में बायो डी कंपोजर पहुंचाया जा रहा है, जिसे किसानों के मध्य निशुल्क वितरित किया जाएगा। इससे किसान फसल अवशेष को खेत में ही सड़ाकर खाद बना सकेंगे। उन्होंने बताया कि फसल अवशेष जलाने से होने वाले दुष्प्रभावों के बारे में लोगों को अवगत कराने के लिए निर्देश दिए गए हैं कि गांव में बैठकें की जाएं तथा प्रचार-प्रसार वाहन के माध्यम से भी लोगों को उच्चतम न्यायालय के आदेश तथा दंड के प्रावधान के बारे में अवगत कराया जाए। इसके अतिरिक्त डुगडुगी पिटवा कर मुनादी भी कराई जाए।
गोशालाओं में पराली भेजने की धीमी प्रगति पर नाराजगी इसके साथ ही डॉ. चतुर्वेदी ने गोशालाओं में पराली भेजने की प्रगति पर असंतोष जताते हुए जिलाधिकारियों को निर्देश दिए हैं कि इस संबंध में विशेष ध्यान देकर पराली गोशालाओं में भिजवाना सुनिश्चित करें। उन्होंने बताया कि अभी तक अलीगढ़ में मात्र 9920 टन, मथुरा में 8000 टन, मेरठ में 800 टन, शाहजहांपुर में 395 टन, पीलीभीत में 137 टन, हापुड़ में 116 टन व श्रावस्ती में 110 पराली गोशालाओं को भेजी गई है।

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