उप्र: नेशनल मेडिकल कमीशन से दिखने लगे सुधार

लखनऊ(हि.स.)। मोदी सरकार में गठित हुए नेशनल मेडिकल कमीशन से चिकित्सा के क्षेत्र में व्यापक सुधार दिखने लगे हैं। इस व्यवस्था को लागू हुए दो वर्ष होने वाले हैं और अब पूर्ववर्ती मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया की व्यवस्था से असंतुष्ट लोगों को भी इस कमीशन में न्याय की उम्मीद दिख रही है।

भ्रष्टाचार के आरोपों के बाद मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया को भंग कर इसे बोर्ड ऑफ गवर्नर्स में बदल दिया गया था। बाद में 25 सितम्बर 2020 से नेशनल मेडिकल कमीशन ने इसकी जगह ले ली है। यह भारत में चिकित्सा और चिकित्सा शिक्षा से जुड़ी केंद्रीयकृत व्यवस्था है। चिकित्सा क्षेत्र से जुड़े सभी काम इस कमीशन के अंतर्गत आते हैं। कमीशन की कार्यशैली से पिछले 23 महीनों में सकारात्मक बदलाव देखने को मिले हैं। अभी तक यह कोविड के दंश से देश को उबारने, सतर्कता और निगरानी जैसे तमाम कार्य बखूबी कर रहा है। कमीशन की गाइड लाइन के तहत पांच साल में प्रत्येक चिकित्सक को पुनः पंजीकरण कराने और ऑनलाइन पढ़ाई का भी प्रावधान कर दिया गया है। जिससे डॉक्टरों की प्रैक्टिस हो या मेडिकल की पढ़ाई, दोनों में सकारात्मक परिवर्तन हुए हैं।

पुरानी व्यवस्था का था विवादों से नाता

इससे पहले 1933 से चली आ रही मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया की व्यवस्था का विवादों से गहरा नाता था। हद तो तब हो गई थी जब भ्रष्टाचार के आरोपों के बाद 22 अप्रैल 2010 को केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआइ) ने काउंसिल के अध्यक्ष केतन देसाई को गिरफ्तार कर लिया था। सीबीआइ ने देसाई के परिसरों से 1.5 किलोग्राम सोना और 80 किलो चांदी बरामद की थी। इसके अलावा अहमदाबाद में देसाई के बैंक लॉकरों से 35 लाख का सोना बरामद किया गया। आरोप था कि एक निजी कॉलेज को मान्यता देने के लिए 2 करोड़ की रिश्वत ली गई है। इस तरह के तमाम विवादों के बाद मेडिकल काउंसिल को भंग कर दिया गया था।

नेशनल मेडिकल कमीशन से पुरानी व्यवस्था के पीड़ितों में जगी उम्मीद

लखनऊ में करीब सात साल पहले दो बड़े निजी डॉक्टरों की कथित लापरवाही से एक मरीज की मौत हुई थी। मृतक के परिजनों ने यूपी मेडिकल काउंसिल में डॉक्टरों के खिलाफ शिकायत की थी। जांच में यूपीएमसी ने माना कि मरीज को वेंटिलेटर पर ले जाते वक्त डॉक्टर ने परिजनों से समुचित अनुमतियां नहीं लीं, पर यूपीएससी ने इन डॉक्टरों को महज ‘सख्त चेतावनी’ देकर छोड़ दिया। इससे नाराज परिजन तत्कालीन मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया तक गए। लंबी सुनवाई के बाद आश्चर्यजनक रूप से मेडिकल काउंसिल ने भी यूपीएमसी के निर्णय को ही बरकरार रखा, और इन ताकतवर डॉक्टरों को महज ‘सख्त चेतावनी’ देकर छोड़ दिया।

मेडिकल कमीशन से न्याय का भरोसा

इस मामले में अब मृतक के पुत्र अजय चतुर्वेदी ने एनएमसी को पत्र भेजकर मामले पर पुनर्विचार करने की मांग की है। उन्होंने प्रधानमंत्री, स्वास्थ्य मंत्री और मानवाधिकार आयोग को भी पत्र भेजा है। अजय कहते हैं ‘किसी की जिंदगी जाने के बदले आरोपी को महज ‘सख्त चेतावनी’ कैसे दी जा सकती है, तबसे ये डॉक्टर न जाने कितने मरीजों से खिलवाड़ कर चुके होंगे, मुझे अब नेशनल मेडिकल कमीशन पर पूरा भरोसा है।’

धनीष श्रीवास्तव

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