दो दिवसीय अखिल भारतीय राजभाषा सम्मेलन का समापन
गृह राज्यमंत्री ने कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद के गांव लमही जाकर श्रद्धासुमन अर्पित किया
प्रादेशिक डेस्क
वाराणसी। अखिल भारतीय राजभाषा सम्मेलन में केन्द्रीय गृह राज्य मंत्री अजय कुमार मिश्रा ने कहा कि कई ऐसे देश हैं जहां आज़ादी के बाद बलपूर्वक भाषा को लागू किया गया। किन्तु हमारे देश में ऐसी संस्कृति है कि हम सबसे यह अपेक्षा करते हैं कि स्व प्रेरणा से कार्य करें। बिना दबाव के जो काम किया जाता है वह स्थायी होता है। यह वह राष्ट्र है जो अध्यात्म पर आधारित है।
केन्द्रीय मंत्री बड़ापुर स्थित पं. दीनदयाल उपाध्याय हस्तकला संकुल में राजभाषा विभाग, गृह मंत्रालय द्वारा आयोजित दो दिवसीय सम्मेलन के समापन सत्र को संबोधित कर रहे थे। गृह राज्यमंत्री अजय मिश्र ने कहा कि यह हमारी संस्कृति है कि हम दबाव या घृणा की बात नहीं करते, सर्वे भवन्तु सुखिनः की बात करते हैं। संघ ने जो दायित्व दिया है उसमें ऐसे दायित्व हैं कि देश में कामकाज की भाषा क्या हो, संघ से प्रदेश के संचार की भाषा, प्रदेश से प्रदेश के संचार की भाषा क्या हो, और इसमें किसी प्रकार की कठिनाई न आये। उनका कहना था कि क्षेत्रीय भाषाओं के विकास के साथ ही हिंदी का विकास सम्भव है क्योंकि क्षेत्रीय भाषाएं हिंदी से जुड़ी हैं।
प्रधानमंत्री ने हिन्दी भाषा की पुनर्स्थापना की, गौरव की परंपरा को विश्व को दिखाया
सम्मेलन में केन्द्रीय गृह राज्य मंत्री अजय कुमार मिश्रा ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी न केवल राजभाषा की पुनर्स्थापना की, वरन देश की संस्कृति, गौरव परम्परा को विश्व में दिखाया है। प्रधानमंत्री पहली बार देश के बाहर गए तब उन्होंने नवरात्र व्रत के द्वारा अपनी संस्कृति का प्रसार किया। केन्द्रीय मंत्री ने कहा कि प्रधानमंत्री ने पूरी दुनिया में भारतीय संस्कृति का गौरव बढ़ाया है।
प्रतिभागियों को दी बधाई, हिन्दी भाषा के प्रति दिखाया सम्मान
केन्द्रीय मंत्री ने सम्मेलन की सफलता पर राजभाषा विभाग व सभी मंत्रालयों, कार्यालयों व उपक्रमों के प्रतिभागियों को बधाई दी। उन्होंने कहा कि हिंदी भाषा के प्रति समर्पण भाव से भारी संख्या में प्रतिभागिता हिंदी के प्रति प्रतिबद्धता को दर्शाती है व प्रेरणादायक है। एकात्मवाद के प्रणेता पंडित दीनदयाल उपाध्याय का उल्लेख कर कहा कि उन्होंने जो दर्शन दिया वह हमारे गर्व और गौरव का प्रतीक हैं।
कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद्र के पैतृक गांव जाकर श्रद्धासुमन अर्पित किया
केन्द्रीय गृहराज्य मंत्री अजय मिश्रा ने कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद के पैतृक गांव लमही जाकर उन्हें श्रद्धासुमन अर्पित किया। । लमही पहुंचे गृह राज्य मंत्री ने मुंशी जी के आवास और परिसर का भ्रमण किया। इसके बाद कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि मुंशी जी की कृतियां आज भी प्रेरक और पथ-प्रदर्शक हैं। उनकी रचनाएं आज भी प्रासंगिक लगती हैं। उन्होंने कहा कि मुंशी प्रेमचंद ने ऐसी कृतियों की रचना की, जिसने हर वर्ग का प्रतिनिधित्व किया। भविष्य में होने वाली घटनाओं की झलक ऐसे महान विभूतियों की कृतियों में साफ झलकती है।
सम्मलेन के उदघाटन सत्र को केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह और प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सम्बोधित किया था। दो दिन में कई सत्रों में राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार पर चर्चा हुई। एक सत्र में प्रयागराज सांसद डॉ रीता बहुगुणा जोशी ने कहा कि हमारे देश की शत-प्रतिशत जनता हिंदी भाषा लिख नहीं पाए तो क्या हुआ। उसके भाव को भली-भांति समझ लेती है। यही भारतीय जनता की विशेषता है।
सम्मेलन में राजभाषा के प्रति दिखा सम्मान, प्रचार प्रसार पर जोर, सुनाया अनुभव
अखिल भारतीय राजभाषा सम्मेलन में सांसदों, विशेषज्ञों ने भी विचार रखा और राजभाषा के प्रचार प्रचार, दैनिक जीवन और कार्यालयीय कामकाज में अधिकाधिक प्रयोग गर्व के साथ करने का आह्वान किया। एक सत्र के मुख्य अतिथि पूर्व सांसद विजय कुमार दरड़ा ने अपना अनुभव बताते हुए कहा जर्मनी में प्रिंटिंग मशीन लेने गया था। उस दौरान मैंने अपने भाई से हिंदी में कहा कि यह हमें मूर्ख बना रहा है। वह जर्मनी वासी मेरी भाषा समझ गया। उसने कहा नहीं मैं आपको मूर्ख नहीं बना रहा हूं, मैं आश्चर्य में पड़ गया कि इसे मेरी भाषा कैसे समझ में आई। तो उसने बताया कि मैंने 2 वर्ष तक बनारस में हिंदी भाषा लिखना पढ़ना सीखा है।साहित्य अकादमी, भोपाल के निदेशक प्रो.विकास दवे ने कहा कि हिंदी भाषा के साम्राज्य में सूरज नहीं डूबता है।
जननायक चंद्रशेखर विश्वविद्यालय, बलिया की कुलपति प्रोफेसर कल्पलता पाण्डेय ने कहा कि इस अमृत वर्ष में पूरे देश के लिए एक हिंदी भाषा होनी चाहिए, स्वभाषा अमर हो जाए ऐसी मैं आशा करती हूं। कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे प्रो. राम मोहन पाठक, पूर्व कुलपति दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा, चेन्नई ने कहा कि भावों की अभिव्यक्ति ही सात्विक भाषा की अभिव्यक्ति है। आज हमें भाषा में सात्विक सोच अपनाने की जरूरत है। मीडिया एक संवेदनशील कार्य है। उनका कहना था भाषा ही भाव है, न्यू और डिजिटल मीडिया ने हिंदी के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। हालांकि आज हिंदी पत्रकारिता में भाषायी चुनौतियां सामने आ रही हैं।
भारतीय जनसंचार संस्थान (आईआईएमसी) नई दिल्ली के महानिदेशक प्रो. संजय द्विवेदी ने कहा कि वही भाषा जीवित रहती है, जिसका प्रयोग जनता करती है। देश में आपसी संवाद का सबसे सरल माध्यम हिंदी है और भारतीय मीडिया के माध्यम से आम जनमानस तक पहुंच ने इसे धार देने का काम किया है। एक सत्र में बालेंदु शर्मा दाधीच, निदेशक, भारतीय भाषाएं, माइक्रोसॉफ्ट ने कहा कि देश में हिंदी अखबारों और समाचार चैनलों का सबसे बड़ा क्षेत्र है। अगर टॉप 20 अखबारों की बात करें तो इसमें ज्यादातर हिंदी के हैं, वहीं टॉप टेन न्यूज चैनलों में अधिकांश हिंदी के हैं। दक्षिण बिहार केंद्रीय विवि के सहायक प्रो. किंशुक पाठक ने मीडिया में हिन्दी भाषा के प्रयोग पर विस्तार से चर्चा करते हुए कहा कि भाषा में प्रयोग होने वाले कई महत्वपूर्ण शब्दों का लुप्त होना बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है। एक अन्य सत्र में जी सेल्वारजन, प्रधान सचिव, दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा चेन्नई ने तमिल भाषा के राष्ट्रकवि सुब्रमण्यम की कविता से अपनी बात को प्रारंभ किया। उनका कहना था कि ग्राम भाषा के बिना चिंतन संभव नहीं है। अपनी मातृभाषा और आसान लगने वाली भाषा में ही चिंतन करते हैं।
अध्ययन और विषय जब दोनों गम्भीर, तब अद्वितीय मेधा का परिचय मिलता है
सम्मेलन के एक सत्र में पूर्व राज्यपाल और भाजपा के वरिष्ठ नेता केशरी नाथ त्रिपाठी ने अध्यक्षता करते हुए कहा कि अध्ययन और विषय जब दोनों गम्भीर हो तो वह अद्वितीय मेधा का परिचय मिलता है। आज भारत का कोई ऐसा कोना नहीं है जहां हिंदी बोली या समझी ना जाती हो। प्रदेश विधान सभा के उप सभा पति हृदय नारायण दीक्षित ने कहा कि इस पृथ्वी के 57 देशों के उच्च न्यायालय में अपनी मातृभाषा में कार्रवाई होती है। इन देशों में फ्रांस, ब्राजील पुर्तगाल इत्यादि देश शामिल हैं। इन का अवलोकन करने पर ज्ञात होता है कि वहां की उच्च न्यायालय अपनी मातृभाषा को वह सम्मान देते हैं जो कि भारत में हिंदी को नहीं प्राप्त है।
सम्मेलन के प्रथम दिवस में हिंदी-चुनौतियों और संभावनाएं विषयक सत्र में अनिल शर्मा उपाध्यक्ष हिंदी केंद्रीय संस्थान आगरा,प्रो. रमेश कुमार पाण्डेय कुलपति लाल बहादुर संस्कृत विश्वविद्यालय दिल्ली, प्रो. उमापति दीक्षित, विभागाध्यक्ष केंद्रीय हिंदी संस्थान, आगरा ने भी सारगर्भित विचार रखा।