के. विक्रम राव
इस्लामी पाकिस्तान की जबरदस्त शिकस्त के मुख्य कारक भारतीय सेना से कहीं अधिक एक तमिलभाषी, गीतापाठी, रामभक्त, वीणावादक अब्दुल कलाम हैं। भारत के ग्यारहवें राष्ट्रपति (2002) के निर्वाचन में सत्तासीन भारतीय जनता पार्टी, विपक्ष की कांग्रेस, समाजवादी पार्टी तथा बहुजन समाज पार्टी ने आपसी वैमनस्य को दरकिनार कर सुदूर दक्षिण के गैर राजनैतिक विज्ञानशास्त्री डा. अबुल पाकिर जैनुलआबदीन अब्दुल कलाम को प्रत्याशी बनाया था।
गणतंत्रीय भारत के इस तीसरे मुसलमान राष्ट्रपति का दोनों कम्युनिस्ट पार्टियों ने जमकर विरोध किया था और कानपुरवासी नब्बे-वर्षीया कैप्टन लक्ष्मी सहगल को अपना उम्मींदवार बताया था। मतदान इकतरफा था मगर वामपंथियों ने द्वन्द्वात्मक शैली में कलाम के खिलाफ तर्क दिये थे। यूं तो वामपंथी हमेशा क्रांति के हरावल दस्ते में रहते हैं। मगर इस बार वे आत्मघातियों के रास्ते पर चले। इस मिसाइल मैन द्वारा बनाए प्रक्षेपास्त्रों ने पाकिस्तान का शायद ही कोई शहर छोड़ा हो या उस पर हमला न किया हो। अब्दुल कलाम को आज खासकर याद करेंगे।
पाकिस्तान को बड़ा घमंड था कि मिसाइल में वह भारत से ज्यादा मजबूत है इसीलिए नाम भी उसने भारत पर हमला करने वाले लुटेरों के नाम पर रखा। जैसे मोहम्मद गौरी, जहीरूद्दीन बाबर, मोहम्मद अब्दाली लेकिन इन सबके सामने इस दक्षिण भारतीय मुसलमान द्वारा निर्मित मिसाइल ज्यादा कारगर रहे। इसीलिए इस युद्ध में कौन जीता कौन हारा पर बहस हो सकती है। पर नेक अकीदतमंद सच्चे मुसलमान अब्दुल कलाम पर शक या संदेह नहीं हो सकता। अतः आश्चर्य होता है कि प्रधानमंत्री मोदी, रक्षामंत्री राजनाथ सिंह और किसी ने भी भारत की जीत के लिए अब्दुल कलाम का आभार व्यक्त नहीं किया।
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कम्युनिस्टों द्वारा अपने अभियान (2002) में यदि कलाम की युक्तिपूर्ण मुखालफत करनी थी तो वे मुल्लाओं को उकसा सकते थे कि अकीदतमन्दों को वे बताया जाय कि 77 वर्षीय अब्दुल कलाम मुसलमान नहीं हैं, क्योंकि उन्हें उर्दू नहीं आती। हालांकि बहुतेरे तमिल मुसलमानों ने कभी उर्दू सीखी ही नहीं। ये वामपंथी प्रचार कर सकते थे कि अब्दुल कलाम दही-चावल और अचार ही खातें है। मांसाहारी कदापि नहीं हैं। रक्षा मंत्रालय में अपनी पहली नौकरी सम्भालने के पूर्व उन्होंने ऋषिकेश में स्वामी शिवानन्द से आशीर्वाद लिया था।
अपने पिता जैनुल आबिदीन के परम सखा और रामेश्वरम शिव मंदिर के प्रधान पुजारी पंडित पक्षी लक्ष्मण शास्त्री से धर्म की गूढ़ता में तरूण अब्दुल ने रूचि ली थी। वे संत कवि त्यागराज के रामभक्त के सूत्र गनुगुनाते हैं।नमाज के साथ वे रुद्र वीणा भी बजाते सुब्बुलक्ष्मी के भजन को चाव से सुनते हैं, जबकि उनके मजहब में संगीत वर्जित होता है। कुल मिलाकर प्रचार का बिन्दु हो सकता था कि अब्दुल कलाम बिना जनेऊ वाले बाह्ममण है। उत्तर भारत के मुसलमानों को ये वामपंथी भड़का सकते थे यह कह कर अब्दुल कलाम के पुरखों ने इस्लाम स्वीकार किया शान्तिवादी प्रचारकों से जो अरब व्यापारियों के साथ दक्षिण सागर तट पर आये थे।
अतः वह उत्तर भारतीय मुसलमानों से जुदा है जिनसे गाजी मोहम्मदबिन कासिम की सेना ने बदलौते-शमशीर हिन्दू धर्म छुड़वाया था। कलमा पढ़वाया था। यह मिलती जुलती बात हो जाती जो किसान नेता मौलाना भाशानी ने ढाका में कही थी कि ”ये पश्चिम पाकिस्तानी मुसलमान हम पूर्वी पाकिस्तानी (बंगला देशी) मुसलमानों को इस्लामी मानते ही नहीं। तो क्या मुसलमान होने का सबूत देने के लिये हमें लुंगी उठानी पड़ेगी ?“
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अब्दुल कलाम के विरोधी इसी तरह हिन्दुओं को भी बहका सकते हैं कि अब्दुल कलाम की माँ ने शैशवास्था से उन्हें सिखाया था कि दिन में पांच बार नमाज अदा करो। मगरिब में मक्का की ओर सिर करो। अर्थात पूर्व में अपने देश की ओर मत देखो। उनके पिता जैनुल आबिदीन ने उन्हें सिखाया कि हर कार्य के बिस्मिल्ला पर अल्लाह की प्रार्थना करो। मगर सबसे मजबूत तर्क यह हो सकता था कि हिन्दू-बहुल भारत का राष्ट्रपति एक सुन्नी मुसलमान कैसे हो?
अमीर तथा नवधनाढ़य जन केवटपुत्र और अखबारी हॉकर रह चुके अब्दुल कलाम को राष्ट्र का प्रथम नागरिक बनने की राह में नापंसदगी पैदा कर सकते थे। वे यह कहते कि एक युवक जिसने पहली सरकारी नौकरी 250 सौ रुपये माहवार से शुरू की थी आज उसे 50,000 रूपये माहवार करमुक्त वेतन की राष्ट्रपतिवाली नौकरी क्यों मिले? सत्ता खुर्रांट दलाल अभियान चला सकते थे कि राजनीति की दुनिया अन्तरिक्ष विज्ञान के इस निष्णात के लिये समझ से परे है।
इस युद्ध में तय हो गया कि पाकिस्तानी प्रक्षेपास्त्र (महमूद) गज़नवी, (मुहम्मद) गौरी और (अहमदशाह) अब्दाली का मुकाबला करने में भारतीय प्रक्षेपास्त्रों (अग्नि, त्रिशूल, नाग) से भी अधिक यह मिसालइल मैन अब्दुल कलाम सर्वाधिक कारगर रहा। द्वितीय पोखरण विस्फोट के इस शिल्पी मतदात में तीसरा विस्फोट प्रभावी किया था राष्ट्रपति बन कर किया। हरिद्वार के स्वामी शिवानंद के इस शिष्य अब्दुल कलाम का भारत कृतज्ञ रहेगा, शरीफ के पाकिस्तान को शिकस्त देने में।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं आइएफडब्लूजे के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं।)
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