हनुमान जयंती आज, जानें शुभ मुहूर्त और अचूक पूजा विधि
हनुमान जयंती पर उपासना करने से सभी कष्टों को दूर करते हैं हनुमान
धर्म-कर्म डेस्क
वैसे तो हनुमान जयंती कार्तिक माह में चतुर्दशी को भी मनाई जाती है किंतु हिंदू पंचांग के अनुसार चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि के दिन अंजनि पुत्र मारुति का जन्म हुआ था। मान्यता है कि केसरीनंदन की विधिवत पूजा करने से सभी तरह के कष्टों से मुक्ति मिल जाती है। आइए जानते हैं आज हनुमान जयंती पर किस शुभ मुहूर्त और किस विधि से हनुमान जी की पूजा करें। धर्म ग्रंथों के अनुसार हनुमान जी ही एक ऐसे देव हैं जो आज भी पृथ्वी पर मौजूद हैं। इसलिए हनुमान जंयती के दिन बजरंगबली की पूजा- अर्चना करने से बल और बुद्धि की प्राप्ति होती है। साथ ही सभी मनोरथ पूर्ण होते हैं।
पूजा का शुभ मुहूर्त
इस बार हनुमान जयंती पर पूजा के लिए दो शुभ मुहूर्त बन रहे हैं। पहला मुहूर्त 12 अप्रैल को सुबह 7 बजकर 34 मिनट से सुबह 9 बजकर 12 मिनट तक है। इसके बाद दूसरा शुभ मुहूर्त शाम को 6 बजकर 46 मिनट से लेकर रात 08 इंरांत 08 मिनट तक रहेगा। वैदिक पंचांग के अनुसार चैत्र पूर्णिमा तिथि की शुरुआत 12 अप्रैल 2025 को प्रातः 03 बजकर 20 मिनट पर होगा। साथ ही अगले दिन 13 अप्रैल 2025 को सुबह 05 बजकर 52 मिनट पर इसका अंत होगा। इसलिए हनुमान जयंती 2025 में 12 अप्रैल को मनाया जाएगा।
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चैत्र शुक्ल पूर्णिमा को मनाई जाती है हनुमान जयंती
हनुमान जयंती का पवित्र पर्व विशेष रूप से भगवान राम के परम भक्त और भगवान शिव के अवतार, हनुमान जी की पूजा और आराधना का पर्व है। हनुमान जी की शक्ति, भक्ति और समर्पण को दर्शाने वाला यह पर्व हर वर्ष चैत्र माह की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को मनाया जाता है। आज के दिन विशेष पूजा और हनुमान चालीसा का पाठ करके भक्त अपने जीवन के कष्टों से मुक्ति प्राप्त करने का प्रयास करते हैं। हिंदू पंचांग के अनुसार चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि के दिन अंजनि पुत्र मारुति का जन्म हुआ था। मान्यता है कि केसरीनंदन की विधिवत पूजा करने से सभी तरह के कष्टों से मुक्ति मिल जाती है।

श्रीराम के अनन्य भक्त थे हनुमान
हम जानते हैं कि हनुमान जी श्रीराम के अनन्य भक्त थे और उन्हीं की भक्ति में लीन रहते थे। हनुमान जी की माता अंजना और पिता वानरराज केसरी थे इसलिए इन्हें अंजनी पुत्र और केसरीनंदन भी कहा जाता है। हनुमान जी को भगवान शिव का 11वां अंश भी कहा जाता है। हनुमान जयंती की कथा हनुमान जन्म को लेकर कई कथाएं प्रचलित हैं। पर प्रमुख रूप से दो कथाएं हैं जो हनुमान जी के जन्म को लेकर प्रचलित हैं। माता अंजना ने अपने बचपन में एक बंदर को पैरों पर खड़े होकर ध्यान लगाते देखा, तो उसने उस बंदर को फल फेंक कर मार दिया।
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माता अंजना को एक ऋषि ने दिया था शाप
हनुमान जयंती कथा के अनुसार वह बंदर एक ऋषि में बदल गया और उसकी तपस्या भंग होने पर वह क्रोधित हो गया। उसने अंजना को शाप दिया कि जिस दिन उसे किसी से प्रेम हो जाएगा, उसी क्षण वह बंदरिया बन जाएगी। कुछ समय बाद, अंजना जंगलों में रहने लगी। वहां उसकी भेंट केसरी से हुई, जिससे प्रेम होने पर वह बंदरिया बन गई और केसरी ने अपने बारे में बताते हुए अंजना को बताया कि वह बंदरों का राजा है। केसरी की ओर से प्रस्ताव रखने पर अंजना मान गई और दोनों का विवाह हो गया। अंजना ने घोर तपस्या कर भगवान शिव से उनके समान एक पुत्र मांगा।

पुत्रकामेष्ठि यज्ञ का प्रसाद मिला था अंजना को
वहीं दूसरी ओर, अयोध्या के राजा दशरथ ने पुत्र की प्राप्ति के लिए पुत्रकामेष्ठि यज्ञ आयोजित किया। अग्नि देव को प्रसन्न करने के बाद उन्होने दैवीय गुणों वाले पुत्रों की कामना की। अग्निदेवता ने प्रसन्न होकर दशरथ को एक पवित्र हलवा दिया, जिसे तीनों पत्नियों में बांटने को कहा। राजा ने बड़ी रानी तक हलवे को पंतग से पहुंचाया, वहीं बीच में कहीं माता अंजना प्रार्थना कर रही थीं, हवन की कटोरी में वह हलवा जा गिरा, माता अंजना ने उस हलवे को ग्रहण कर लिया। उसे खाने के बाद उन्हे लगा जैसे गर्भ में भगवान शिव का वास हो गया हो। इसके पश्चात उन्होने हनुमान जी को जन्म दिया। हनुमान जन्म से जुड़ी दूसरी कथा सूर्य के वर से सुवर्ण के बने हुए सुमेरु में केसरी का राज्य था।
पवनदेव ने दिया पुत्र होने का वरदान
हनुमान जयंती कथा के अनुसार उसकी अति सुंदरी अंजना नामक स्त्री थी। एक बार अंजना ने शुचिस्नान करके सुंदर वस्त्र और आभूषण धारण किए। उस समय पवन देव ने उसके कान के छिद्र में प्रवेश किया और आते समय आश्वासन दिया कि तेरे यहां सूर्य, अग्नि एवं सुवर्ण के समान तेजस्वी, वेद-वेदांगों का ज्ञाता, विश्व में सबसे महाबली पुत्र होगा और ऐसा ही हुआ। इसके बाद अंजना ने हनुमान जी जन्म दिया। कुछ समय बाद सूर्योदय होते ही बालक को भूख लगी। माता फल लाने गई ही थीं कि इधर लाल वर्ण के सूर्य को फल मानकर हनुमान जी उसको लेने के लिए आकाश में उछल गए।
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अनेक देवताओं का वरदान मिला था हनुमान को
उस दिन अमावस्या होने से सूर्य को ग्रसने के लिए राहु भी आया था, पर हनुमान जी को दूसरा राहु मान कर वह वहां से भाग गया। तब इंद्र ने हनुमान जी पर वज्र से प्रहार किया। इससे हनुमान जी मूर्छित हो गए। इंद्र की इस उद्दंडता का दंड देने के लिए पवन देव ने पृथ्विलोक की वायु का संचार रोक दिया। तब इंद्रदेव ने अपने किये की माफी मांगी और भगवान शिव ने हनुमान जी को ठीक किया। जिसके बाद पवनदेव मान गए और पृथ्वी पर वायु का संचार पुनः सुचारू रूप से संचालित किया। तब ब्रह्मादि सभी देवताओं ने हनुमान को वर दिए। इस प्रकार के वरों के प्रभाव से ही आगे जाकर हनुमान जी ने अमित पराक्रम के काम किए।
असंभव कार्य को संभव बना देते हैं हनुमान
हनुमान जयंती सिर्फ एक पर्व नहीं, बल्कि शक्ति, भक्ति और आत्मसमर्पण की प्रेरणा है। आज के दिन बजरंगबली की आराधना कर उनके चरित्र से प्रेरणा लेकर हम अपने जीवन में कठिनाइयों को पराजित कर सकते हैं। उनके जीवन की कथाएं हमें सिखाती हैं कि ईश्वर में अटूट श्रद्धा और निस्वार्थ सेवा से हर असंभव कार्य संभव बनाया जा सकता है।
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