Gonda News : अखिल भारतीय साहित्य परिषद की बैठक आयोजित

संवाददाता

गोण्डा। अखिल भारतीय साहित्य परिषद की जनपद स्तरीय प्रथम बैठक परिषद के संरक्षक साहित्य भूषण से सम्मानित डा. सूर्यपाल सिंह की अध्यक्षता में सम्पन्न हुई जिसमें परिषद के प्रान्तीय महामन्त्री द्वारिका प्रसाद रस्तोगी द्वारा मनोनीत जिले के नवनियुक्त अध्यक्ष उमाशंकर शुक्ल ’आलोक’, उपाध्यक्ष डा ऋषिकेश सिंह एवं सुरेन्द्र बहादुर सिंह ’झंझट’, महामंत्री विनय शुक्ल ’अक्षत’, मंत्री ज्योतिमा शुक्ला, वीपी सिंह ’वत्स’ व मनीष सिंह, कोषाध्यक्ष डा उमा सिंह, मीडिया प्रमुख आरजे शुक्ल व जानकी शरण द्विवेदी के संयोजकत्व में कवि गोष्ठी का आयोजन किया गया। गोष्ठी का संचालन परिषद के महामन्त्री विनय शुक्ल ’अक्षत’ द्वारा किया गया। साहित्य भूषण शिवाकान्त मिश्र ’विद्रोही’ की वाणी वन्दना एवं परिषद के सविस्तार परिचय के साथ कवि गोष्ठी का शुभारम्भ किया गया। बार एसोशियशन के अध्यक्ष व वरिष्ठ साहित्यकार रविचन्द्र त्रिपाठी की पंक्तियां ’गम की अंधेरी रात में, मन को न निराश कर, सुबह जरूर आयेगी, सुबह का इन्तजार कर’ श्रोताओं द्वारा खूब सराही गई। साहित्य भूषण शिवाकान्त मिश्र ’विद्रोही’ की रचना ’चोट नहीं पहुँचाता कभी, किसी को आगे बढाने वाला, सब का शुभ चिन्तक होता है, प्रगति सीढ़िया चढ़ने वाला’ सुनकर उपस्थित श्रोतागण झूम उठे। संरक्षक डा. सूर्यपाल सिंह की यह पंक्तियां सुधी श्रोताओं द्वारा खूब सराही गईं-’दांत पैने हो गये हैं और पंजे कस गये हैं, रहन चिरइन की कठिन है, पर अभी सम्भावना है।’ परिषद के अध्यक्ष उमाशंकर शुक्ल आलोक ने राष्ट्र के प्रति समर्पित यह रचना पढ़ी-’फर्ज अपना यूँ निभाना आ गया, राष्ट्र हित में सर कटाना आ गया।“ महामन्त्री विनय शुक्ल ’अक्षत’ की यह पंक्तियां सुनकर श्रोतागण भाव विभोर हो गये-’बेशक तुम प्रतिमान गढ़ो नित साहस के, बस आंखां का पानी जिन्दा रहने दो।’
इसी क्रम में शायर सूफी गोण्डवी ने पढ़ा-’अपने अस्तित्व के सवाल पर, नदी फूट कर रोई, एक बूंद पानी के लिए अश्क बहाती है जिन्दगी। कवि अमित ’निर्भय’ ने अपने उद्गार कुछ यूं व्यक्त किया-’हे मातु भारती आज्ञा दो, दुष्टों के दम्भ मिटाने को। मुझको भी मौका मिले एक, अरि बीच समर में जाने को।’ वरिष्ठ कवि यज्ञराम मिश्र ’यज्ञेश’ ने कहा- ’यज्ञेश’ उम्र भर पढ़ता रहा मानस, गलती से समझ बैठा मैं श्रीराम हो गया।’ कवि एवं कथाकार राजेश ओझा की इन पंक्तियों ने खूब वाहवाही लूटी-गुटखा खाकर, पीक चबाकर, केवल तू मनमानी कर, पैंसा गायब, सेहत गायब, केवल तू नादानी कर। प्रसिद्ध व्यंगकार सुरेश मोकलपुरी ने आज की व्यवस्था पर यह कहा-’लोकतन्त्र का नारा तो अब लगता बहुत उबाऊ है, नोट तन्त्र है भारी सब पर एक-एक वोट बिकाऊ है।’ कविवर डा. ऋषिकेश सिंह की यह पंक्तियां श्रोताओं द्वारा खूब सराही गई-’जिसे दरकार है उसे दर नहीं है, पुश्त दर पुश्त से ही घर नहीं है। नवोदित युवा कवि अमरजीत श्रीवास्तव ’हर्षित’ ने पढ़ा- ’हमें राह में आज तुम मिल गये, हमारी खुशी का ठिकाना नहीं है।’ युवा कवि हरीश ’सजल’ ने पढा-’केवल झण्डा नहीं समझना, मैं ही पूरा भारत हूँ।’ कवयित्री डा. उमा सिंह द्वारा दहेज प्रथा पर कुछ यूं उदगार व्यक्त किया गया-’बप्पा जो सपना सुख देखिन, लागे अब सपना होय जैहै, बीस लाख रुपया के चलते, लागे कि धेरिया कुँवारि रहि जइहैं।’
इस अवसर पर जनपद के उपरोक्त लब्धप्रतिष्ठ, वरिष्ठ व नवोदित साहित्यकारों के अलावा विजय यादव, प्रदीप शुक्ल, शिवकुमार शुक्ल, शिवान्दन यादव, विवेक सिंह आदि भी उपस्थित रहे जिनकी उपस्थिति से गोष्ठी के आयोजन की शोभा में वृद्धि हुई। अन्त में गोष्ठी की अध्यक्षता कर रहे डा. सूर्यपाल सिंह ने अखिल भारतीय साहित्य परिषद के उद्देश्यों पर विस्तार से चर्चा किया तथा उपस्थित साहित्यकारों को अपनी लेखनी के माध्यम से राष्ट्र के नवनिर्माण में निष्पक्ष सर्जना हेतु प्रेरित किया। अध्यक्ष उमाशंकर शुक्ल ’आलोक’ ने गोष्ठी के सफल आयोजन पर सभी का आभार व्यक्त किया तथा धन्यवाद ज्ञापित किया।

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