चौकीदार मानदेय और ग्रामीण सुरक्षा तंत्र की हकीकत

चौकीदार मानदेय पर सरकार की चुप्पी कष्टकारी

सरकार की प्राथमिकता में नहीं है चौकीदार मानदेय

संवाददाता

बस्ती। चौकीदार मानदेय बढ़ाने की मांग को लेकर आवाजें बुलंद हो रही हैं, लेकिन सरकार की तरफ से अब तक कोई ठोस पहल नहीं की गई है। पुलिस विभाग की रीढ़ माने जाने वाले चौकीदार आर्थिक तंगी के दलदल में फंसे हुए हैं। जिले के 17 थाना क्षेत्रों में तैनात कुल 3250 चौकीदारों की हालत एक जैसी है। वे न तो न्यूनतम वेतन पा रहे हैं, न ही चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी का दर्जा। गांवों की सुरक्षा, थानों की सूचनाएं और त्योहारों की ड्यूटी तक चौकीदार मानदेय के नाम पर उन्हें सिर्फ 2500 रुपये प्रतिमाह मिलते हैं। यह राशि न तो परिवार की जरूरतों को पूरा कर सकती है, न ही उनके कार्य के अनुरूप सम्मान प्रदान करती है।

चौकीदार मानदेय में वृद्धि न होना चिंता का विषय
चौकीदार मानदेय को लेकर ग्राम प्रहरी संघ के जिला कोषाध्यक्ष देवी प्रसाद यादव कहते हैं कि यह राशि केवल प्रतीकात्मक सहयोग बनकर रह गई है। गांवों की सुरक्षा, अपराध पर नजर, थानों की सूचनाएं, धार्मिक आयोजनों और सरकारी कार्यक्रमों की ड्यूटी, सब कुछ करने के बाद भी चौकीदार अपने परिवार का भरण-पोषण नहीं कर पा रहे। उनका कहना है कि चौकीदार मानदेय में सरकार को शीघ्र बढ़ोतरी करनी चाहिए और उन्हें अन्य श्रमिकों की तरह न्यूनतम मजदूरी अधिनियम के तहत वेतन मिलना चाहिए।

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अल्प वेतन और संसाधनों की कमी ने बढ़ाई मुश्किलें
चौकीदार मानदेय को लेकर संतोष कुमार, हरिशंकर और अर्जुन यादव मुखर हैं। वह बताते हैं कि न उन्हें पर्याप्त संसाधन मिलते हैं और न ही उनकी पीड़ा को कोई सुनता है। साइकिल, टॉर्च, वर्दी, जूता जैसी मूलभूत चीजें भी कभी समय से नहीं मिलतीं। उनका कहना है कि जब सरकार की ओर से चौकीदार मानदेय में ही गंभीरता नहीं है तो उपकरणों की गुणवत्ता की उम्मीद बेमानी है। थानों से दी जाने वाली टॉर्च और बैटरी अक्सर खराब होती है और उनकी मरम्मत के लिए भी उन्हें अपनी जेब से खर्च करना पड़ता है।

चौकीदार मानदेय बढ़ाने के वादे अधूरे
चौकीदार मानदेय में थोड़ी बढ़ोतरी पूर्व में सपा सरकार के दौरान हुई थी, लेकिन वर्तमान सरकार के चुनावी वादे अभी तक केवल भाषणों में ही सीमित हैं। चुनावों से पहले सूबे के मुखिया ने वादा किया था कि चौकीदारों का वेतन बढ़ाया जाएगा, लेकिन वर्षों बाद भी कोई स्पष्ट नीति नहीं बनी है। चौकीदार बलराम, वाहिद और शोभाराम कहते हैं कि उन्हें न तो ठंड-गर्मी से बचने के लिए थाना परिसर में कोई कक्ष मिलता है और न ही सम्मान। उनका कहना है कि सरकार केवल चुनावी मौसम में चौकीदारों को याद करती है।

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चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी का दर्जा व बीमा सुविधा हो लागू
चौकीदार मानदेय के साथ-साथ कार्य व्यवहार, बीमा सुविधा और अन्य अधिकार भी बहस का विषय बने हुए हैं। रामानंद, शांति देवी, सर्वेश्वर प्रसाद और मोहित कहते हैं कि बिहार की तरह उत्तर प्रदेश में भी चौकीदारों को चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी का दर्जा मिलना चाहिए। उन्होंने मांग की कि उन्हें बीमा की सुविधा दी जाए ताकि ड्यूटी के दौरान किसी भी दुर्घटना की स्थिति में उनके परिवारों को सुरक्षा मिल सके। साथ ही थानों में मनमाने ढंग से की जाने वाली वेतन कटौती पर रोक लगनी चाहिए।

चौकीदार मानदेय और जिम्मेदारियों में भयंकर असंतुलन
एक तरफ पुलिस प्रशासन गांवों में शांति व्यवस्था बनाए रखने के लिए चौकीदारों पर निर्भर है, वहीं दूसरी तरफ चौकीदार मानदेय इतना कम है कि यह उनकी सेवा भावना को कुचलने जैसा है। रियाजुल्लाह, राजाराम और रामबहाल कहते हैं कि सरकार को चौकीदारों के भविष्य को सुरक्षित करना होगा। उनका सुझाव है कि गांवों में सक्रिय भूमिका निभाने वाले चौकीदारों को आधुनिक साधन, वर्दी और न्यूनतम वेतन के अलावा सेवा-श्रेणी का सम्मान मिलना चाहिए।

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मानदेय बढ़ाने की मांग कर रहे चौकीदार।

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