मंगलाचरण

डॉ. वाटिका कंवल

श्रीराम सब सुख धाम, सुमिरन कर सदा मन बावरे
सर्वज्ञ सब गुन अज्ञ, अगुन अद्वैत सुंदर सांवरे।
रश्मिल बदन शोभा सदन लख कोटि काम लजाव रे
तात्विक अगुन सात्विक सगुन गौरव गुनाकर गाव रे
स्कंद शारंग अहिर्निश ब्रह्मांड विकीर्ण प्रभाव रे।
परमेश पूर्ण परेश पारस, परसि भाव कुभाव रे
भलांक मेटत अंक द्वय, रटि ’राम’ रंक ओ रावरे
शठ रीच-वानर-गीध-शबरी, मोक्ष अहिल्या पाव रे।
प्रज्वलित कल्कि-अलाव, प्रभु गोहराव अनगिन नाव रे
प्रभु पूर्ण मिद, प्रभु पूर्ण मिद कितना ही पूर्ण घटाव रे
सत चित, सरल आनंद सिंधु पर बिंदु-बिंदु अलगाव रे।

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