भारत बचाए अफगानी हिन्दुओं-सिखों को

आर.के. सिन्हा

अफगानिस्तान में हालात काबू से लगातार बाहर होते जा रहे हैं। वहां राक्षसी प्रवृति के तालिबानी लड़ाके निर्दोष अफगानी नागरिकों, महिलाओं, पुरुषों को कत्लेआम करते जा रहे हैं। समझ नहीं आता कि कितने और लोगों को मारकर इन हैवानों की प्यास बुझेगी। अफगानिस्तान में दशकों-सदियों से बसे हुए हिन्दुओं और सिखों की जान भी गंभीर खतरे में है। उन पर तो तब भी हमले हो रहे थे, जब वहां पर कहने को हालात सामान्य बने थे।

अफगानिस्तान में मौत के साए में रह रहे अल्पसंख्यकों की सुरक्षा को लेकर भारत सरकार की चिंता वाजिब ही है। आखिर भारत उन हिन्दुओं और सिखों की चिंता नहीं करेगा तो विश्व में और कौन राष्ट्र करेगा। भारत को अब वहां मौजूद हिंदू और सिख परिवारों को सुरक्षित निकालने में देरी नहीं करनी चाहिए। अभीतक वहां से भारतीय राजनयिकों और अन्य भारतीयों को तो लगभग निकाला ही जा चुका है।

भारत सरकार पहले भी सैकड़ों हिन्दू और सिख परिवारों को भारत लाने में ही मदद कर चुकी है। इसलिए साफ है कि अब भी अगर हिंदू और सिख समुदाय के लोग सुरक्षित निकलना चाहेंगे तो भारत उन्हें हरसंभव सहायता देगा ही । महत्वपूर्ण है कि अफगानिस्तान में अब भी सैकड़ों सिख और हिन्दू परिवार हैं।

आपको याद ही होगा कि अफगानिस्तान में मानवता के शत्रु तालिबानियों के चंगुल से आजाद होने के बाद हिन्दुओं-सिखों के जत्थे यदा-कदा दिल्ली पहुंचते रहे हैं। उन्हें भारत में नागरिकता संशोधन कानून के तहत नागरिकता भी दी जायेगी। अफगानिस्तान में हिन्दू और सिखों का रहना बहुत पहले से ही नाममुकिन हो गया था। इन पर तालिबानी गुंडे लगातार जुल्मों-सितम कर रहे थे। उनपर इस्लाम धर्म को स्वीकार का दबाव डाला जा रहा था।

जानवर से बदतर तालिबान ने ही बामियान की मशहूर बुद्ध प्रतिमा को विस्फोटक लगाकर ध्वस्त कर दिया था। बुद्ध की वह प्राचीन प्रतिमा विश्व भर में सबसे ऊंची बुद्ध की मूर्ति मानी जाती थी। जब बुद्ध प्रतिमा का अनादर हो रहा था तब ही संकेत मिल गया था कि आने वाले समय में अफगानिस्तान किस रास्ते पर चलेगा। उस बुद्ध प्रतिमा पर टैंक और भारी गोलियों से हमला किया गया था।

आज पूरा विश्व कोरोना वायरस की महामारी के खिलाफ लड़ रहा है, ऐसे कठिन समय में तालिबानी उन्मादी जिस प्रकार मानवता के खिलाफ षड्यंत्र रच रहे हैं, वह किसी भी इन्सान के विश्वास से परे है।

अफगानिस्तान में लगभग सारे हिन्दू मंदिर तबाह हो चुके हैं। यही हालात गुरुद्वारे के भी हैं। वह उदारवादी देश था। रेडियो काबुल से हिन्दी भजन भी अकसर सुनने को मिल जाते थे । उस वक़्त तक अफ़ग़ानिस्तान बहुत हद तक आधुनिक राष्ट्र हुआ करता था। आज जैसी भयानक मज़हबी कट्टरता वहां तब नहीं थी। काबुल में तब हिन्दू और सिख भी रहते थे, भले ही संख्या में कम थे। अफ़ग़ानिस्तान में बादशाह ज़हीर शाह के अपदस्थ होने के बाद कभी शान्ति आई ही नहीं। कहते हैं न कि कब अकबर के ख़ानदान में कोई औरंगज़ेब पैदा हो जाये कहा नहीं जा सकता। वक़्त पलटा और कट्टरता ने उदारवाद के परखच्चे उड़ा दिये। कभी औरंगज़ेब ने भारत में संगीत को बहुत गहरे में दफ़ना दिया था। तालिबानियों ने वही काम अफ़ग़ानिस्तान में किया।

अफगानिस्तान में जब 1992 में रूस के समर्थन वाली सरकार गिरी और देश में गृहयुद्ध छिड़ा तो सैकड़ों सिख दिल्ली और भारत के दूसरे शहरों में जान बचाकर आ गए थे। इन सिखों का एक काबुली गुरुद्वारा भी है। इन्हें तुरंत इनकी पठाननुमा वेशभूषा के चलते पहचाना जा सकता है। सबने सलवार-कमीज पहनी होती है। ये आपस में पश्तो में ही बातें कर रहे होते हैं। आपको राजधानी में गुरुद्वारा सीसगंज, गुरुद्वारा बंगला साहिब और अन्य प्रमुख गुरुद्वारों में अफगानी सिख मिल जाएंगे। इससे अच्छा कुछ नहीं हो सकता कि अफगानिस्तान के बचे हुए सारे हिन्दू-सिख भारत आ जाएं। यहां वे अपनी जिंदगी को नए सिरे से चालू करें।

बेशक,अंधकार युग में जीने वाले देश में गैर-मुसलमानों के लिए कोई जगह नहीं हो सकती। इसलिए उन्हें वहां से निकल ही जाना चाहिए। उनके लिए भारत के अलावा दूसरा कोई देश नहीं है।

भारत के लिए अफगानिस्तान के बदतर हो चुके हालात मानवीयता के साथ-साथ इसलिए भी गंभीर मोड़ ले चुके हैं क्योंकि वहां भारत के भारी निवेश का भविष्य खतरे में है। भारत ने अफगानिस्तान में अमेरिकी सैनिकों के प्रवेश के बाद बीते दो दशक में भारी निवेश किया है। भारत के वहां 400 से अधिक छोटे-बड़े प्रोजेक्ट हैं।

अफगानिस्तान में भारत के सबसे प्रमुख प्रोजेक्ट में काबुल में अफगानिस्तान की संसद है। इसके निर्माण में भारत ने लगभग 675 करोड़ रुपए खर्च किए हैं। इसका उद्घाटन भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने साल 2015 में किया था। इस संसद में एक ब्लॉक पूर्व भारतीय प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के नाम पर समर्पित भी है।

अफगानिस्तान में सलमा डैम हेरात प्रांत में 42 मेगावॉट का हाइड्रोपॉवर प्रोजेक्ट है। 2016 में इसका उद्घाटन हुआ था और इसे भारत-अफगान मैत्री प्रोजेक्ट के नाम से जाना जाता है। अभी हेरात प्रांत में अफगान सेना और तालिबान के बीच भारी जंग चल रही है। माना जा रहा है तालिबान का डैम के आसपास के इलाकों पर कब्जा हो चुका है।

भारत बॉर्डर रोड्स ऑर्गेनाइजेशन ने अफगानिस्तान में 218 किलोमीटर लंबा हाईवे भी बनाया है। ईरान के सीमा के पास जारांज से लेकर डेलारम तक जाने वाले इस हाईवे पर 15 करोड़ डॉलर खर्च हुए हैं। यह हाईवे इसलिए भी अहम है क्योंकि ये अफगानिस्तान में भारत को ईरान के रास्ते एक वैकल्पिक मार्ग देता है। इस हाईवे के निर्माण में प्रारंभ में ही भारत के 11 लोगों को अपनी जान भी गंवानी पड़ी थी। जारांज-डेलारम के अलावा भी कई सड़क निर्माण परियोजाओं में भारत ने निवेश कर रखा है। जारांज-डेलाराम प्रोजेक्ट भारत के सबसे महत्वपूर्ण निवेश में से एक है। पाकिस्तान अगर जमीन के रास्ते भारत को व्यापार से रोकता है तो उस स्थिति में यह सड़क बहुत महत्वपूर्ण हो जाती है। यदि इस हाईवे पर तालिबानी नियंत्रण होता है, तो यह तो भारत के लिए एक बड़ा झटका होगा।

पर, मोदी सरकार के लिए पहली प्राथमिकता तो अफगानिस्तान के हिन्दू-सिख परिवारों को सुरक्षित भारत लाना ही रहेगा। आप देख रहे होंगे कि अफगानिस्तान में हिन्दू-सिखों परिवारों की दुर्दशा को लेकर हमारे सेक्युलरवादी बिल्कुल भी चिंतित नहीं है। अब तो उनके मुंह में दही जम गया है। भारत सरकार को वहां भारतीय निवेश को लेकर भी पुनः विचार करना होगा। यह देखना होगा कि भारत का निवेश सुरक्षित रहे।

(लेखक वरिष्ठ संपादक, स्तंभकार और पूर्व सांसद हैं।)

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