जानें, दीपावली त्योहार मनाने के मूल रहस्य को!

लखनऊ(हि.स.)। इस वर्ष दीपोत्सव पर्व यानि दीपावली मंगलवार से शुरू हो रही है। दीपावली एक साथ 5 त्योहारों का ज्योतिपुंज है। इस पर्व में घरों में मुख्यतः दीपों की अवली की अवली सजाई जाती है। इस पर्व में मुख्यरूप से धन की अधिष्ठात्री देवी महालक्ष्मी और शुभत्व के देवता गणेश देव की पूजा की जाती है। देवी लक्ष्मी के आगमन को लेकर लोग खुशियां मनाते हैं और उनके स्वागत में घरों में दीप मालाएं भी सजाते हैं। रोशनी करते हैं। हिन्दी महीने के पंचाग के अनुसार कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को धनतेरस से इस त्योहार की शुरूआत हो जाती है, जो भाई दूज तक चलती है।

जीवन की 5 महत्वपूर्ण बातों के महत्व को ध्यान दिलाने वाला महापर्व दीपावली

दीपावली महोत्सव धनतेरस से शुरू होकर भाई दूज तक चलता है। इन 5 दिनों के त्योहारों में पहले दिन आयुर्वेद और औषधियों के देवता धनवंतरि की पूजा की जाती है। दूसरे दिन यानी चतुर्दशी तिथि पर धर्मराज यम की पूजा और दीपदान किया जाता है। इसके अगले दिन यानी कार्तिक माह की अमावस्या तिथि पर माता लक्ष्मीजी की पूजा के साथ दीपावली मनाई जाती है। दिवाली के दूसरे दिन यानी कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि पर गोवर्धन पूजा होती है। इसके अगले दिन यानी कार्तिक शुक्ल पक्ष की द्वितिया तिथि को भाई-दूज के त्योहार के साथ ही दीपावली महोत्सव पूर्ण हो जाता है। आइये अब त्योहार के महत्व के बारे जानते हैं।

दीपावली महोत्सव क्यों

5 दिनों तक चलने वाले दीपावली महोत्सव मनाने का कारण यह है कि हर व्यक्ति को जीवन की 5 महत्वपूर्ण बातें पता हो। इस महोत्सव का हर दिन जीवन की एक महत्वपूर्ण बात समझाता है। इस महोत्सव में सेहत, मृत्यु, धन, प्रकृति, प्रेम और सद्भाव का संदेश छुपा है। ये 5 जरूरी बातें जीवन को पूर्ण बनाती हैं। दीपावली पर्व पर लक्ष्मी पूजा सिर्फ धन और सोना-चांदी प्राप्ति की भावना से नहीं की जानी चाहिए।

लक्ष्मी का मतलब रुपया, पैसा, सोना-चांदी के भण्डार से होने लगा है, लेकिन वास्तविकता इससे अलग है। महालक्ष्मी से अभिप्राय होता है सुख, शांति और समृद्धि से। यदि किसी के पास बहुत सारा धन है लेकिन सुख एवं शांति न हो तो उसे धनलक्ष्मी से सम्पन्न नहीं कहा जा सकता। यही समझाने के लिए दीपावली को पांच भागों में विभक्त किया गया है।

धन्वन्तरि त्रयोदशी

दीपावली पूजन की शुरुआत धनतेरस यानी धन्वन्तरि त्रयोदशी से होती है। कार्तिक कृष्णपक्ष की त्रयोदशी को देवासुर संग्राम में हुए समुद्र मंथन में भगवान धन्वन्तरि अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे। भगवान धन्वन्तरि की पूजा के पीछे यह रहस्य है कि सुख, शांति एवं समृद्धि की अनुभूति के लिए सर्वप्रथम स्वस्थ रहना ज़रूरी है। इसलिए मुद्रा प्राप्ति, धन प्राप्ति से पहले आरोग्य के देवता की पूजा की जाती है ताकि हम निरोग एवं स्वस्थ रहें।

रूप चौदस

इस दिन गृहिणियां उबटन लगाकर स्नान करती हैं। लक्ष्मी पूजन से पूर्व गृहलक्ष्मी का शृंगार ज़रूरी है। जब घर में मेहमान आते हैं, तब भी स्वयं को ठीक से रखती हैं और जिस दिन साक्षात् लक्ष्मी जी आने वाली हों उससे पहले स्वरूप को निखारकर रखना आवश्यक है। इसलिए यह दिन रूप चौदस कहलाता है। इस दिन शाम को धर्मराज यम के लिए दीपदान किया जाता है। दीपदान के साथ मृत्यु और उसके देवता यमराज को याद किया जाता है। ऐसा करने के पीछे भावना होती है कि सुख, समृद्धि और ऐश्वर्य पृथ्वी पर ही रह जाता है। मृत्यु ही अंतिम गति है। ऐसा इसलिए किया जाता है कि हम लक्ष्मीजी से उतनी ही कामना करें जितना जीवन यापन के लिए जरूरी है। इससे मनुष्य मन में धन-संपदा और समृद्धि से मोह उत्पन्न नहीं होता है।

महालक्ष्मी पूजन

दीपावली की पूजा में लक्ष्मी जी के साथ श्रीगणेश और मां सरस्वती भी होती हैं। रहस्य यह है कि लक्ष्मीजी से अभिप्राय हम धन-दौलत से ही समझते हैं लेकिन धन दौलत कभी भी सुख, शांति सुकून एवं समृद्धि प्रदान नहीं कर सकती। यह ज़रूरी है कि हमारी बुद्धि सही रहे तथा अच्छे -बुरे का ज्ञान होता रहे। इसलिए लक्ष्मी पूजन से पूर्व बुद्धि के देवता गणेशजी एवं ज्ञान की देवी सरस्वती जी का पूजन करते हैं ताकि सद्बुद्धि के साथ ज्ञानपूर्वक धन का सदुपयोग कर सकें। लक्ष्मी पूजन में भी विष्णु के साथ बैठी कमलासना लक्ष्मी की ही पूजा करते हैं। दूसरी उलूकवाहिनी लक्ष्मी होती हैं जो सदैव अंधकार चाहती हैं। अतः उलूकवाहिनी लक्ष्मीजी की पूजा नहीं करनी चाहिए।

गोवर्धन पूजा

धनतेरस से स्वस्थ रहने की तथा रूप चौदस पर दरिद्रता बाहर करने की प्रेरणा लेकर महालक्ष्मी का पूजन किया जाता है। यह लक्ष्मी पृथ्वी ही है और इसके लिए प्रकृति की पूजा एवं रक्षा ज़रूरी है जिसके निमित्त इंद्रदेवता की पूजा के स्थान पर भगवान श्रीकृष्ण के निर्देश से गोवर्धन पर्वत को प्रतीक बनाकर प्रकृति एवं पर्यावरण का संरक्षण करने के मंतव्य के साथ यह पूजा की जाती है। इस दिन किसान बैल, गाय आदि की पूजा करते हैं। ये त्योहार प्रकृति का सम्मान करना सीखाता है।

यम द्वितीया

कार्तिक माह के शुक्लपक्ष की द्वितीया को यम द्वितीया और भैया दूज के नाम से जाना जाता है। पौराणिक कथानुसार इस दिन भगवान यम बहन यमुना के घर मिलने जाया करते हैं। यमलोक के राजा यमराज के प्रमुख सहायक चित्रगुप्त की पूजा भी इसी दिन की जाती है। चित्रगुप्त यमराज का सारा लेखा-जोखा रखते हैं, इसलिए सभी व्यापारी लोग दवात-कलम एवं बही खाते की पूजा इस दिन करते हैं। वर्ष-भर का हिसाब भी लिखकर रखा जाता है। इस तरह यह त्योहार प्रेम-सद्भाव और सहायता का भी प्रतिक माना गया है।

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