सरकारी रिकार्ड में इन्हें कब मिलेगा शहीद का दर्जा?
(23 मार्च शहीद दिवस पर विशेष)
युद्धवीर सिंह लांबा
‘शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले,
वतन पर मरने वालों का यही बाक़ी निशाँ होगा।
कभी वह दिन भी आएगा जब अपना राज देखेंगे,
जब अपनी ही ज़मीं होगी और अपना आसमाँ होगा’
1916 में मशहूर क्रांतिकारी कवि जगदंबा प्रसाद मिश्र ‘हितैषी’ जी द्वारा देशभक्ति की लिखी कविता की ये पंक्तियां देश की आजादी के लिए हंसते-हंसते अपना सर्वस्व न्यौछावर करने वाले भगत सिंह, सुखदेव थापर और शिवराम राजगुरु के लिए बेमानी साबित हो रही हैं क्योंकि आज भी क्रांतिकारी भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरू को शहीद का आधिकारिक दर्जा हासिल नहीं है। यह बडे़ दुख की बात है कि देश की आजादी को 75 साल से भी ज्यादा हो चुके हैं, लेकिन भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को सरकारी रिकॉर्ड में शहीद का आधिकारिक दर्जा नहीं मिल सका ।
हर साल 23 मार्च को भारत देश भर में ‘शहीद दिवस’ मनाया जाता है। गौरतलब है कि 94 साल पूर्व यानी 23 मार्च 1931 को देश की आजादी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले तीन क्रांतिकारियों सरदार भगत सिंह. सुखदेव एवं राजगुरु को ब्रिटिश हुकूमत ने फांसी पर लटका दिया था। देश की जनता भले ही महान क्रांतिकारी भगत सिंह, राजगुरु व सुखदेव को शहीद का दर्जा देती है। उन्हें शहीद कहती हो, लेकिन भारत की आजादी के 77 साल के बाद भी सरकारे उन्हें सरकारी दस्तावेजों में शहीद नहीं मानती है। 1947 में ब्रिटिश हुकूमत से मिली देश की आजादी से लेकर 2025 तक जितनी भी सरकारें आईं और सरकारे गई वो इन तीनों क्रांतिकारियों को सरकारी रिकॉर्ड में शहीद घोषित करने से बचती रहीं है।
भारत देश का दुर्भाग्य है कि भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को शहीद का दर्जा दिलाने के लिए उनके परिजनों को भूख हड़ताल करनीं पड़ रही है। शहीद का आधिकारिक दर्जा दिलवाने के लिए उनके परिजनों को सड़कों पर धक्के खाने पड़ रहे हैं। सितंबर 2016 में इसी मांग को लेकर भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु के वंशज जलियांवाला बाग से इंडिया गेट तक शहीद सम्मान जागृति यात्रा निकाल चुके हैं। भारत के लोकसभा और राज्यसभा दोनों ही सदनों में कई सांसदो द्वारा भी सरकारी रिकार्ड में भगत सिंह सुखदेव और राजगुरु को शहीद का आधिकारिक दर्जा देने का मामला उठ चुका हैं, लेकिन सरकार पर उसका कोई सकारात्मक असर नहीं पड़ा, सरकार का रवैया हमेंशा टालमटोल वाला रहा है जोकि अत्यंत शर्मनाक, दुखद और दुर्भाग्यपूर्ण है। शहीद-ए-आजम भगत सिंह के छोटे भाई कुलतार सिंह के बेटे किरणजीत सिंह संधू ने भी क्रांतिकारियों को शहीद का दर्जा देने की मांग की है। राजगुरु के भाई के पोते विलास राजगुरु कहते हैं कि शहीदों की शहादत को भुलाया नहीं जा सकता हैं तो वहीं महान शहीद सुखदेव के पोते अनुज थापर ने भी कहा है कि सरकार की तरफ से इन तीनों को शहीद का दर्जा दिया जाए।
शहीद भगत सिंह के प्रपौत्र यदवेंद्र सिंह के मुताबिक अप्रैल 2013 में आरटीआई के जरिए उन्होंने भारत के गृह मंत्रालय से पूछा था कि भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को कब शहीद का दर्जा दिया गया था। और अगर ऐसा अब तक नहीं हुआ, तो सरकार उन्हें यह दर्जा देने के लिए क्या कदम उठा रही है? मई, 2013 में भारत के गृह मंत्रालय के लोक सूचना अधिकारी श्यामलाल मोहन ने बहुत ही हैरानी वाला जवाब दिया कि मंत्रालय के पास यह बताने वाला कोई रिकॉर्ड नहीं कि इन तीनों क्रांतिकारियों को कब शहीद का दर्जा दिया गया। मेरा मानना है कि भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव की शहादत को कभी भी भुलाया नहीं जा सकता है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि आजादी मिलने के 75 वर्ष के बाद भी भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को भी शहीद घोषित करने से सरकारें परहेज कर रही हैं। ये समझ से परे है कि सरकारें भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को आधिकारिक शहीद घोषित करने से आखिर डरती क्यों हैं? आदरणीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी को अब चाहिए कि वह वतन पर अपनी जान न्योछावर करने वाले भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को अविलंब सरकारी रिकॉर्ड में शहीद का आधिकारिक दर्जा दे, ये वास्तव में उन तीनों स्वतंत्रता क्रांतिकारियों को एक सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
लिख रहा हूं मैं अंजाम आज,
जिसका कल आगाज आएगा,
मेरे लहू का हर एक कतरा इंकलाब लाएगा,
मैं रहूं या न रहूं मगर वादा है तुमसे ये मेरा,
मेरे बाद वतन पे मिटने वालों का सैलाब आएगा
(लेखक वीरों की देवभूमि धारौली, झज्जर-कोसली रोड, हरियाणा निवासी समाजसेवी हैं।)

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