योगेश कुमार गोयल
केरल में निपाह के बढ़ते खतरे को देखते हुए अन्य राज्यों को भी अलर्ट किया जा चुका है। इस वायरस के बारे में कहा जा रहा है कि इस संक्रमण के कारण मृत्यु दर बहुत ज्यादा है। राज्य में सामने आए छह निपाह मरीजों में से दो की मौत चुकी है और केरल की स्वास्थ्य मंत्री के मुताबिक फिलहाल संक्रमित व्यक्तियों की सम्पर्क सूची में सैंकड़ों स्वास्थ्यकर्मियों सहित एक हजार से भी अधिक लोग हैं, जिनमें सैंकड़ों उच्च जोखिम वाली श्रेणी में हैं। निपाह संक्रमण के बारे में आईसीएमआर का कहना है कि कोविड में जहां मृत्युदर महज दो-तीन प्रतिशत थी, वहीं निपाह में संक्रमित लोगों की मृत्यु दर 40-70 प्रतिशत है।
केरल में निपाह वायरस की जांच के लिए कुछ लोगों के सैंपल पुणे के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी (एनआईवी) भेजे गए हैं और एनआईवी के सीरो सर्वे में पता चला है कि वायरस दूसरे राज्यों तक पहुंच रहा है। एनआईवी के वैज्ञानिकों को निपाह वायरस को लेकर दूसरे सीरो सर्वे में केरल सहित गोवा, महाराष्ट्र, बिहार, पश्चिम बंगाल, असम, मेघालय, तमिलनाडु, कर्नाटक, पुडुचेरी इत्यादि के चमगादड़ों में वायरस के खिलाफ एंटीबॉडी मिली हैं। केरल, तमिलनाडु, कर्नाटक और पुडुचेरी में पहले भी एंटीबॉडी मिली थी। यही कारण है कि केरल सरकार के साथ-साथ केन्द्र सरकार भी निपाह के मामलों को लेकर सक्रिय है।
पहले जान लें कि निपाह आखिर है क्या और यह इतना खतरनाक क्यों माना जाता है? निपाह ऐसा वायरस है, जो चमगादड़, सुअर, कुत्तों, घोड़ों इत्यादि से फैलता है। ‘फ्रूट बैट्स’ अर्थात् फलाहारी चमगादड़ इस वायरस के वाहक होते हैं। यह बहुत तेजी से फैलने वाला खतरनाक संक्रमण है, जिसे तुरंत रोक पाना बहुत कठिन होता है। भारत में निपाह संक्रमण से औसत मृत्यु दर 75 फीसदी से भी अधिक रही है। इसके बावजूद स्वास्थ्य विभाग के पास निपाह संक्रमण को रोकने के लिए कोई खास पुख्ता इंतजाम नहीं हैं। ऐसे में सवाल यही है कि आखिर ऐसे क्या कारण हैं कि निपाह देश के पूर्ण साक्षर राज्य केरल में बार-बार दस्तक देने में सफल हो रहा है?
भारत के दक्षिणी राज्यों और विशेषकर केरल में तो यह ‘फलभक्षी चमगादड़’ बहुतायत में हैं, जो श्रीलंका तक फैले हैं। सबसे पहले निपाह वायरस का पता 1998 में मलेशिया में सुअर पालने वाले किसानों के बीच फैली महामारी के दौरान चला था। तब निपाह वायरस का पहला मामला मलेशिया के एक गांव कम्पुंग सुंगई निपाह में सामने आया था, जिसके बाद इसी गांव के नाम पर इस वायरस का नाम ‘निपाह’ रखा गया। उस समय इस बीमारी के वाहक सूअर बनते थे लेकिन उसके बाद जहां-जहां भी निपाह के मामले सामने आए, सुअरों के बजाय ‘फ्रूट बैट’ निपाह के सबसे बड़े वाहक बनकर सामने आए। पहली बार मलेशिया में इस बीमारी का पता चलने और सिंगापुर के भी इससे प्रभावित होने के दौरान पाया गया था कि निपाह वारयस से संक्रमित अधिकांश व्यक्ति बीमार सुअरों या उनके दूषित उत्तकों के सीधे सम्पर्क में आए थे लेकिन उसके बाद बांग्ला देश तथा भारत में निपाह के कारण महामारी फैलने का सबसे संभावित स्रोत चमगादड़ों के मूत्र व लार से संक्रमित फल अथवा इन संक्रमित फलों से निर्मित उत्पाद या ताड़ी का सेवन रहा।
अन्य वायरस संक्रमणों के मुकाबले निपाह ज्यादा खतरनाक इसलिए माना जाता है क्योंकि इससे निपटने के लिए अब तक कोई वैक्सीन बनाने में सफलता नहीं मिली है अर्थात् इसका कोई कारगर इलाज नहीं है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार निपाह इंसेफ्लाइटिस संक्रमण है, जो छूने मात्र से बड़ी तेजी से पूरे शरीर में फैलता है। इसकी चपेट में आने वाला व्यक्ति 24-48 घंटे के भीतर कोमा में जा सकता है और ऐसी स्थिति होने पर रोगी के बचने की संभावना लगभग खत्म हो जाती है। इंसेफ्लाइटिस यानी दिमागी बुखार में सिरदर्द, तेज बुखार, सांस लेने में दिक्कत, सुस्ती, उलझन, याददाश्त कमजोर होना, चक्कर आना, भ्रम होना, मिर्गी आना और दौरे पड़ने जैसी शिकायत सामने आती हैं। निपाह वायरस बच्चों को सबसे पहले और आसानी से अपनी गिरफ्त में लेता है। पशुजनित यह बीमारी चमगादड़ों या सुअरों के जरिये मनुष्यों में फैलती है और यह दूषित भोजन तथा मनुष्य से मनुष्य के सम्पर्क से भी फैल सकती है।
बचाव व रोकथाम ही निपाह संक्रमण का एकमात्र उपचार है। चूंकि अभी तक इस वायरस से बचने के लिए कोई वैक्सीन तैयार करने में सफलता नहीं मिली है, इसलिए निपाह संक्रमण को फैलने से रोकने का एकमात्र उपाय लोगों को इससे बचाव के उपायों की समुचित जानकारी देना और जागरूकता का व्यापक प्रचार-प्रसार ही है। निपाह को महामारी में परिवर्तित होने से रोकने के लिए सबसे जरूरी है कि लोगों को निपाह, इससे फैलने वाली बीमारी और बचाव के तरीकों के बारे में ज्यादा से ज्यादा जागरूक किया जाए।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)
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