Saturday, June 14, 2025
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मुंबई में अभिनेता मनोज कुमार को दी गई अंतिम विदाई

देश के लोकप्रिय अभिनेता मनोज कुमार को दी गई 21 तोपों की सलामी

फिल्मी सितारों और प्रशंसकों ने नम आंखों से अभिनेता मनोज कुमार को किया विदा

अभिनेता मनोज कुमार का मुम्बई में राजकीय सम्मान के साथ किया गया अंतिम संस्कार

मनोरंजन डेस्क

मुंबई। भारतीय सिनेमा का एक स्वर्णिम अध्याय शुक्रवार को उस वक्त समाप्त हो गया, जब ‘भारत कुमार’ के नाम से लोकप्रिय दिग्गज निर्देशक अभिनेता मनोज कुमार ने मुंबई में अंतिम सांस ली। वह 87 वर्ष के थे और पिछले कुछ सप्ताह से अस्वस्थ चल रहे थे। शनिवार को मुंबई के पवन हंस श्मशान घाट पर राजकीय सम्मान के साथ उनका अंतिम संस्कार किया गया। इस दौरान उन्हें 21 तोपों की सलामी दी गई, जो उनके राष्ट्रभक्ति से ओतप्रोत जीवन और योगदान को समर्पित एक ऐतिहासिक क्षण बन गया।
कोकिलाबेन अस्पताल में ली अंतिम सांस
अभिनेता मनोज कुमार को 21 फरवरी को तबीयत बिगड़ने के बाद कोकिलाबेन धीरूभाई अंबानी अस्पताल में भर्ती कराया गया था। अस्पताल में कई दिनों तक इलाज चलने के बाद शुक्रवार को उन्होंने अंतिम सांस ली। उनके निधन की खबर फैलते ही फिल्म इंडस्ट्री और उनके लाखों प्रशंसकों के बीच शोक की लहर दौड़ गई। सोशल मीडिया पर उनके चाहने वालों ने श्रद्धांजलि संदेशों की बाढ़ ला दी।

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अंतिम संस्कार में जुटे फिल्म जगत के सितारे
पवन हंस श्मशान घाट पर जब अभिनेता मनोज कुमार अंतिम संस्कार किया गया, तो वहां का माहौल बेहद भावुक था। पत्नी शशि गोस्वामी और बेटे कुणाल गोस्वामी अंतिम समय तक उनके साथ रहे। श्मशान घाट पर फिल्म इंडस्ट्री से जुड़े कई दिग्गजों की मौजूदगी उनके प्रति गहरे सम्मान को दर्शा रही थी। अमिताभ बच्चन और अभिषेक बच्चन, सलीम खान और अरबाज खान, राजपाल यादव, प्रेम चोपड़ा, बिंदू दारा सिंह, जायद खान, अनु मलिक सहित कई कलाकारों ने वहां पहुंचकर उन्हें अंतिम श्रद्धांजलि दी। उपस्थित लोगों की आंखें नम थीं, और हर चेहरा भावुकता से भरा हुआ था।
’भारत कुमार’ एक उपनाम, जो बन गया पहचान
अभिनेता मनोज कुमार को भारतीय सिनेमा में देशभक्ति को केंद्र में रखने वाली फिल्मों के लिए जाना जाता था। उनकी फिल्मों ने न सिर्फ लोगों का मनोरंजन किया बल्कि सामाजिक संदेश भी दिए। ’शहीद’, ’उपकार’, ’पूरब और पश्चिम’, और ’रोटी कपड़ा और मकान’ जैसी फिल्मों में उन्होंने ऐसे किरदार निभाए, जो आम आदमी की समस्याओं और देशभक्ति की भावना को दर्शाते थे। इन्हीं फिल्मों की बदौलत उन्हें लोगों ने ‘भारत कुमार’ कहना शुरू कर दिया और यह उपनाम ही उनकी पहचान बन गया। भारत सरकार ने भी उनके योगदान को स्वीकारते हुए उन्हें 1992 में पद्म श्री और 2015 में दादा साहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया।

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सितारों ने साझा कीं भावनाएं और यादें
राजपाल यादव ने कहा, “वे भारत के विश्व कला रत्न थे। उनकी फिल्मों ने समाज को दिशा दी। उनका जाना हमारे लिए अपूरणीय क्षति है।” प्रेम चोपड़ा, जो अभिनेता मनोज कुमार के साथ ’शहीद’ जैसी फिल्म में काम कर चुके हैं, बोले, “उन्होंने कभी समझौता नहीं किया। उनकी ईमानदारी और लगन उन्हें दूसरों से अलग बनाती थी।” संगीतकार अनु मलिक ने भावुक होते हुए कहा, “उनकी हर फिल्म समाज के हित में थी। वे एक सच्चे देशभक्त थे। उनकी कमी हमेशा महसूस होगी।” जायद खान ने उन्हें ‘मानवता का प्रतीक’ कहा और कहा, ‘मेरे पिता संजय खान और मनोज जी के बीच बहुत करीबी रिश्ता था। ऐसे सितारे सदी में एक बार आते हैं।’ बिंदू दारा सिंह ने कहा, ‘वो एक लीजेंड थे। उन्होंने प्यार, इज्जत, शोहरत और सफलता सब कुछ कमाया, और शांतिपूर्वक चले गए। सरकार ने जो सम्मान दिया, वह वे सच में डिजर्व करते थे।’
बेटे कुणाल गोस्वामी की आंखों में पिता की विरासत
अभिनेता मनोज कुमार के बेटे कुणाल गोस्वामी ने भावुक स्वर में बताया, ‘पिताजी पिछले तीन हफ्तों से बीमार थे। अस्पताल में उनका इलाज चल रहा था, लेकिन अंततः उन्होंने हमें अलविदा कह दिया। उनकी फिल्में आज भी प्रासंगिक हैं और आगे भी रहेंगी।’ उन्होंने कहा कि उनके पिता की फिल्मों का उद्देश्य केवल मनोरंजन नहीं, बल्कि समाज को शिक्षित करना था। ’उपकार’ में किसानों की समस्याएं, और ’रोटी कपड़ा और मकान’ में आम आदमी के मुद्दे जैसे विषयों को उन्होंने बड़े ही प्रभावशाली ढंग से उठाया।

अभिनेता मनोज कुमार को दी गई भावभीनी विदाई
अभिनेता मनोज कुमार को दी गई 21 तोपों की सलामी

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सिनेमा के साथ समाज के लिए भी थे प्रतिबद्ध
अभिनेता मनोज कुमार का सिनेमा एक ऐसे युग का प्रतिनिधित्व करता है, जहां फिल्में सिर्फ ग्लैमर नहीं, सामाजिक दायित्व भी निभाती थीं। उनकी फिल्में आम लोगों की ज़िंदगी से जुड़ी थीं। उन किसानों, मजदूरों, जवानों और बेरोजगार युवाओं से जो संघर्ष कर रहे थे। इसीलिए उनकी फिल्मों ने लोगों के दिलों में खास जगह बनाई। उनकी पटकथा लेखन, निर्देशन और अभिनय की त्रिवेणी ने भारतीय सिनेमा को कई कालजयी फिल्में दीं। उन्हें श्रद्धांजलि देना मात्र रस्म अदायगी नहीं, बल्कि एक विचार और मूल्य को याद करना है।
विरासत जीवित रहेगी
अभिनेता मनोज कुमार आज हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनकी फिल्में, उनके विचार, और उनका ’भारत कुमार’ अवतार हमेशा जीवित रहेगा। भारतीय सिनेमा के इस पुरोधा की यादें सिनेमा हॉल की स्क्रीन से निकलकर हमारे दिलों में बसी रहेंगी। उन्होंने हमें सिखाया कि सिनेमा सिर्फ मनोरंजन नहीं, बल्कि समाज का आईना और बदलाव का माध्यम भी हो सकता है। जब पवन हंस श्मशान घाट पर उनकी चिता को अग्नि दी गई, तो वहां उपस्थित हर व्यक्ति की आंखों में आंसू और हृदय में गर्व था। गर्व इस बात का कि उन्होंने एक ऐसे कलाकार को जिया, जिसने सिनेमा के माध्यम से देशभक्ति को जिया।

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