सोनिया और राहुल गुट में बंटी कांग्रेस, 1967 जैसी फूट की आशंका
नेशनल डेस्क
नई दिल्ली। कांग्रेस में एक बार फिर युवा तुर्क और अनुभवी नेताओं के बीच तलवारें खिंच गई हैं। राज्यसभा सांसदों की बैठक में कांग्रेस की कार्यकारी अध्यक्ष सोनिया गांधी की मौजूदगी में दोनों गुटों के बीच तीखी बहस हुई। वरिष्ठ नेताओं ने शुक्रवार को राहुल के खिलाफ हस्ताक्षर अभियान चलाते हुए सोनिया को पत्र भेजा है। इसमें स्थाई अध्यक्ष की नियुक्ति और केंद्रीय पदाधिकारियों के पारदर्शी चुनाव की मांग की गई है। दूसरी ओर राहुल समर्थक माने जाने वाले पार्टी के संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल, पीएल पुनिया, राजीव सातव, रिपुन बोरा और छाया वर्मा ने बैठक में राहुल को दोबारा अध्यक्ष बनाने की मांग की। उनका कहना था कि आज के राजनीतिक परिदृश्य में सिर्फ राहुल ही एक विश्वसनीय विपक्ष की भूमिका अदा कर रहे हैं। वह हर जरूरी विषय पर सरकार से तीखे सवाल कर उसे कठघरे में खड़ा कर रहे हैं।
इसके बाद पूर्व केंद्रीय मंत्रियों पी चिदंबरम, सिब्बल, आनंद शर्मा आदि ने राहुल की कार्यशैली पर प्रश्नचिन्ह खड़े कर दिए। शर्मा ने पूछा कि वेणुगोपाल और सातव को राज्यसभा में भेजने का फैसला राहुल ने किसकी सलाह पर किया और किस हैसियत से? सिब्बल ने राहुल द्वारा ट्विटर पर सरकार से सवाल पूछने की शैली की कड़ी आलोचना की। उन्होंने कहा कि हमें नहीं पता राहुल को यह सवाल पूछने की सलाह कौन देता है और उसे विदेश और रक्षा नीति का कितना ज्ञान है। लेकिन इतना अवश्य है कि इन सवालों से पार्टी की साख तेजी से घट रही है। उन्होंने सभी को आत्मनिरीक्षण की सलाह दी। चिदंबरम ने पार्टी के कमजोर होते संगठन पर चिंता व्यक्त की। एक अन्य सांसद ने कहा कि राहुल के सबसे करीबी रहे ज्योतिरादित्य सिंधिया और सचिन पायलट जैसे नेता ही पार्टी की पीठ में छुरा भोंक रहे हैं। ऐसे में राहुल यदि कांग्रेस अध्यक्ष बना दिए गए तो पार्टी कैसे चलाएंगे। बुजुर्ग नेताओं के इस तेवर से पलटवार से तिलमिलाए राहुल गुट के सांसदों ने पुराने नेताओं पर यूपीए-2 के दौरान खराब प्रशासन के चलते सरकार गंवाने का आरोप लगा दिया। उनका कहना था कि तब वरिष्ठ मंत्री रहे इन सांसदों की वजह से पार्टी को जो नुकसान हुआ उसका खामियाजा वह अभी तक भुगत रही है।
पार्टी नेताओं का मानना है कि कांग्रेस एक बार फिर 1967 जैसी परिस्थितियों का सामना कर रही है। तब के कामराज के नेतृत्व में बुजुर्ग नेताओं ने इंदिरा गांधी को पार्टी से निकाल दिया था और इंदिरा ने अलग पार्टी बना ली थी। हालांकि वह ज्यादा सफल नहीं हो पाईं और 1971 के पाकिस्तान युद्ध में जीत के बाद इंदिरा कांग्रेस ने धमाकेदार जीत दर्ज की थी। देखना है इस बार जीत युवा तुर्कों की होती है या बुजुर्गों की। बुजुर्ग नेताओं ने कई बार राहुल और प्रियंका पर मनमाने तरीकों से पार्टी चलाने का आरोप लगाया है। उनके सहायक पार्टी कार्यकर्ताओं को उनसे मिलने ही नहीं देते। उनका कहना है कि भाई-बहन अब सोनिया गांधी की भी नहीं सुनते हैं। बैठक में पूर्व प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह, पूर्व रक्षा मंत्री एके एंटनी, राज्यसभा में नेता विपक्ष गुलाम नबी आजाद और पार्टी के कोषाध्यक्ष अहमद पटेल भी मौजूद थे। लेकिन उन्होंने दोनों में से किसी भी पक्ष का साथ नहीं दिया और मौन साधे रहे। हालांकि यूपीए-2 पर उठे सवालों से मनमोहन सिंह असहज दिखे।
वरिष्ठ कांग्रेस नेता व पूर्व सांसद रंजीता रंजन ने शुक्रवार को कहा कि कांग्रेस को सख्त नेतृत्व की आवश्यकता है। बिहार के सुपौल से लोकसभा सांसद रह चुकीं रंजीता ने यह बयान बृहस्पतिवार को पार्टी के राज्य सभा सांसदों की बैठक के बाद चालू हो गई ‘बुजुर्ग बनाम युवा’ की बहस के चलते आया है। रंजीता ने कहा, पार्टी को ऐसे लोग चाहिए, जो संगठन में बदलाव कर जनता पर अपनी पकड़ भी रखते हों। उन्होंने कहा, मैं उस बैठक (राज्यसभा सांसदों की बैठक) में नहीं थी। मुझे नहीं पता वहां क्या हुआ है, लेकिन यह मामला बुजुर्ग बनाम युवा का नहीं है। झारखंड में कांग्रेस में चल रही अंदरूनी कलह उभरकर सामने आने लगी है। सूत्रों ने शुक्रवार को बताया, प्रदेश पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष इरफान शेख समेत तीन विधायकों ने सोमवार को दिल्ली में वरिष्ठ कांग्रेस नेता अहमद पटेल से मुलाकात की। इस दौरान उन्होंने पटेल को राज्य में कार्यकर्ताओं में बढ़ रहे असंतोष से अवगत कराया। उन्होंने बताया, सरकार में मौजूद उनके प्रतिनिधि समस्याओं को नहीं सुन रहे हैं। उन्होंने ‘एक नेता-एक पद’ का फॉर्मूला भी अपनाने का मुद्दा उठाया।