वर्तमान पर चीत्कार कर रहा है आजमगढ़
अम्बरीष राय
आजमगढ़ विद्रोह की ज़मीन है तो महबूब का आंगन भी. यहां की फ़िज़ाओं में कैफ़ी आज़मी के इश्क़ की खुश्बू बिखरी हुई है तो श्याम नारायण पांडेय की हल्दी घाटी जौहर की धमक से राष्ट्र और उसके वाद की मीमांसा भी. हिन्दी पट्टी की सियासत को यहीं से धार मिलती रही है. सप्त ऋषियों की तपोस्थली से लेकर समाजवादी मुगल अखिलेश यादव के सांसद होने तक तक समाज राजनीति शासन प्रशासन ने बहुत कुछ देखा है. भोगा है. जीया है. आजकल आज़मगढ़ आहत है. आज़मगढ़ की आत्मा ज़ख्मी है. उसके शरीर पर खरोचों के निशान साफ देखे जा सकते हैं. सूबे में सरकार भाजपा की है तो आज़मगढ़ से एमपी एमएलए हाथी और साइकिल के सफ़र पर हैं. कमल सूख चुका है तो कमलगट्टे कलफ़ लगे कुर्ते में सरकार होने के सपनों से दो चार. लेकिन ज़मीनी हक़ीक़त थोड़ी जुदा है. कभी सीओ सिटी राजेश तिवारी किसी भाजपा नेता के हाथ काट लेने की बात करता है तो कभी एसडीएम सदर गौरव कुमार अंग्रेजी जमाने के आताताइयों के सिर पर लात रख देता है. आज़मगढ़ शहर की कानाफूसियों में जुगुल जोड़ी और सहुआ महुआ के तौर पर पुकारे जाने वाले सीओ तिवारी और एसडीएम कुमार घूमते फिरते किसी की रोजी रोटी छीनने की बात करते सुने जाते हैं.
अक़्सर देखा गया है कि भाजपा राज पुलिस राज में तब्दील हो जाता है. लोकतंत्र के संस्करण में लोक हासिये पर हो जाता है और तंत्र केंद्र में. आज़मगढ़ में ख़ासकर नौकरशाही से नौकर नाम का शब्द गधे के सिर से सींग की तरह गायब ही रहता है. साहेब अपने वर्दीधारी सिपाहियों की संगीनों के दम पर ठसक बनाए रखता है. लाठी सच के हिस्से में अपना दम खम आजमाती है. चारण भाँड़ चाटुकारिता में गिरते हुए क़ामयाबी की कुछ मंज़िलों के मुख्तार हो जाते हैं तो कलम के हिस्से में टूटी हुई दीवारें और ढही छत का मलवा आर्तनाद करता है. आज़मगढ़ में अतिक्रमण हटाओ अभियान चल रहा है. रोज़गार दे पाने में नाकाम रही सरकार आदर्श का धुर्रा तोड़ रही है तो आज़मगढ़ में उसके अधिकारी आम जनता के इंतिज़ाम, अरमान और सपने तोड़ रहे हैं. जो लोग आज़मगढ़ को जानते हैं. लिखे को पढ़ना जानते हैं. देखने को देख पाते हैं तो वो एसके दत्ता को जानते होंगे. साम्यवादी सोच के आसपास सिमटी यह शख़्सियत ईमानदार पत्रकारिता की मिसाल के तौर पर देखी सुनी जाती है. प्रेस का कार्यालय मानिए या फिर दो वक़्त की ईमान की रोटी का इंतिज़ाम करने की जगह, ’छायांकन’ फोटो स्टूडियो एसडीएम गौरव कुमार की व्यक्तिगत जिद और घमंड के चलते गैरकानूनी ढ़ंग से ढहा दिया गया. और कोई सुनवाई नहीं. कोर्ट के पन्ने फड़फड़ा कर रह गए. एसडीएम गौरव कुमार के आईएएस होने की, हाकिम होने की सनक में आज़मगढ़ के रैदोपुर स्थित ’छायांकन’ जमींदोज़ कर दिया गया. योगी आदित्यनाथ के रामराजी सरकार का एक हासिल ये भी है.
एक और दिलचस्प हासिल की बात करूं तो पिछले छह अप्रैल को आज़मगढ़ की पूरी भाजपा और उनका मातृ संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ शहर कोतवाली में हाँफता नज़र आया. अपनी ही सरकार में संघ, विश्व हिंदू परिषद, भाजपा के लोग लठियाये गए. बेइज्जत किये गए. एसडीएम गौरव कुमार का अट्टहास चलता रहा. योगी सरकार सेल्फी वाली मुस्कुराहट में डूबी ही रही. दरअसल हुआ कुछ यूं कि साहिबे आलम गौरव कुमार शासन की मंशा के अनुसार कोरोना अभियान के तहत कोविड प्रोटोकॉल की स्थापना कर रहे थे. शहर के मुख्य बाजार में मास्क ना पहनने वालों को सरकार की हनक बताई जा रही थी. इसी बीच विश्व हिंदू परिषद के कोषाध्यक्ष आशीष गोयल मौके पर पहुँचे. उन्होंने प्रशासन के तौर तरीकों पर आपत्ति जताई. पहले भी किसी व्यापारिक मुद्दे को लेकर हाकिम का तेवर गोयल जी पर तल्ख़ रहा था. उन्होंने कहा कि तुम कौन? गोयल बोले, ’मैं विश्व हिंदू परिषद का कोषाध्यक्ष. इतना सुनते ही गोयल जी की माँ बहनों को याद करते हुए लाठियां अपने काम पर लग गईं. एसडीएम साहेब के इशारे को पढ़ लेने वाली लाठियों ने दुकान में घुस घुसकर अपने होने का एहसास कराया. नतीजा पूरा व्यापार मंडल आक्रोशित हो गया. कोषाध्यक्ष जी की हिमायत में शहर कोतवाली ठसाठस भर गई. कहाँ मास्क पहनाने का अभियान चल रहा था, वहीं शहर कोतवाली में कोविड प्रोटोकॉल की धज्जियां उड़ गईं. भाजपा के दोनों अध्यक्ष ध्रुव कुमार सिंह और ऋषिकांत राय अपनी ही सरकार में मिमियाते नज़र आये. संघ सरकार में कितना क्रियाशील और जागरूक हो गया है, इसकी बानगी भी देखने को मिली. जिला प्रचारक अम्बेश भी कोतवाली पहुँच गए. विपक्षी दल के नेता भी पहुंचे. पूर्व मंत्री और सदर विधायक दुर्गा प्रसाद यादव, कांग्रेस के जिलाध्यक्ष प्रवीण कुमार सिंह भी कोतवाली पहुंचे. ज़रा सोचिए संघ का प्रचारक कोतवाली में बैठता है. अधिकारियों को पैसे वाली पैरवियों के लिए फोन करता है. सालों साल सपा में रहा हुए व्यक्ति को विश्व हिन्दू परिषद का कार्याध्यक्ष बना दिया जाता है. तो फिर पुलिस, प्रशासनिक अधिकारी और ऊपर बैठी सरकार इनको क्या महत्व देंगे. हुआ भी वही. शहर कोतवाली में लाठियां बरसीं और खूब बरसीं. सरकारी पार्टी के कार्यकर्ता, नेता, समर्थक ढ़ंग से लाठियाये गए. ना तो प्रचारक अम्बेश का कोई मतलब रहा ना भाजपा अध्यक्ष का. बेइज्जत हुए लोगों ने एक अफवाह उड़ाकर अपनी इज्जत बचाने की कोशिश की कि एसडीएम गौरव कुमार का ट्रांसफर सदर से सगड़ी कर दिया गया है. लेकिन इतना भी नहीं हो सका.
हुआ बस इतना कि पुलिस एफआईआर में चार लोग नामज़द किए गए और डेढ़ सौ लोग अज्ञात में. पुलिसिया एफआईआर में ये कहानी रची गई कि विपक्षी दल के लोग सरकार के खिलाफ़ माहौल बना रहे थे, और उनके खिलाफ़ कार्रवाई हुई है. लेकिन सच ऐसा नहीं है. सच इतना है कि स्थानीय भगवा कुनबे की विश्वसनीयता छंटाक भर भी नही है. गौरव कुमार जैसे अधिकारी इनको कुछ भी नहीं समझते. हां इतना जरूर समझते हैं कि इनको जब चाहो लठिया दो. एक दिलचस्प बात के बात ख़त्म करता हूँ. आज़मगढ़ के एक चिकित्सक ने तफ़री लेने के मूड में कहा कि बीजेपी का फुल फार्म अब भाग जाओ पुलिस है. पुलिस राज अंग्रेजों की सत्ता का सच था. पुलिस राज योगी सरकार का पर्याय है. और इसमें भाजपा के कार्यकर्ता सिस्टम का स्नैक्स हैं. आज़मगढ़ अपने गौरशाली अतीत पर गर्व महसूस करता है तो वर्तमान पर चीत्कार कर रहा है….
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