मंज़िल
✍ मनीषा कुमारी
जिंदगी में कुछ बनने के लिए, बहुत कुछ करना पड़ता है।
जब दुनिया सो रही होती है, तब हमें रातों के नींद से लड़ना पड़ता है।
नीदों को समझाकर जागते आखों से सपने बुनना होता है।
ऐसे ही किसी को नहीं मिल जाती हैं मंजिलें!
राह-राह पे मुसीबतों से लड़ना पड़ता है।
चाहे हालात कैसे भी हों, डटकर सामना करना होता है।
लोगों के तरह-तरह के ताने भी सुनना पड़ता है।
आंखें भी भर आती हैं, आंसू भी छुपाना पड़ता है।
जब कोई साथ नहीं होता है, हमें साहस देने के लिए,
तो हमें खुद के लिए खड़ा भी होना पड़ता है।
हमें ज़िंदगी में सफ़ल होने के लिए,
हमें अपने लक्ष्य के प्रति जुनूनी बनना होता है।
हर एक काम को पूरा करने के लिए,
जी जान से मेहनत करना होता है।
रोकने वाले हज़ार मिलते हैं, फिर भी आगे बढ़ना होता है,
लोगों के रुढ़िवादी सोच को दूर कर,
छोटी-छोटी सफलता और असफलता से सीख लेकर,
स्वयं को मजबूत और लक्ष्य के प्रति दृढ़ निश्चय करना होता है,
काफी संघर्षों के बाद जिंदगी में ये सफ़लता के दिन आता है,
खून पसीने से सींचकर अपने सपने को सच कर पाता है।
तब जाकर एक मनुष्य सफल व्यक्ति कहलाता है।
(रचनाकार विरार, मुम्बई में एम एससी (गणित) प्रथम वर्ष की छात्रा है।)
कलमकारों से ..
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