पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम के निजीकरण के विरोध में सांसदों-विधायकों को ज्ञापन देंगे बिजली कर्मी
05 सितम्बर से 02 अक्टूबर तक चलेगा ज्ञापन अभियान
लखनऊ(हि.स.)। पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम के निजीकरण के प्रस्ताव के विरोध में विद्युत् कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति ने पंडित दीनदयाल उपाध्याय के जन्मदिन से महात्मा गांधी के जन्मदिन तक ज्ञापन दो अभियान चलाने का निर्णय किया है। 25 सितम्बर से प्रारम्भ हो रहे ज्ञापन दो अभियान के अंतर्गत बिजली कर्मी पूरे प्रदेश में लोकसभा और राज्यसभा के सभी सांसदों व विधान सभा तथा विधान परिषद के सदस्यों को निजीकरण के विरोध में ज्ञापन देंगे।
ज्ञापन दो अभियान 25 सितम्बर से प्रारम्भ होकर महात्मा गांधी की जयंती 02 अक्टूबर तक चलेगा। संघर्ष समिति के पदाधिकारियों ने ऊर्जा निगमों के शीर्ष प्रबंधन की विफलता की ओर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का ध्यानाकर्षण करते हुए उनसे अपील की है कि महामारी के दौरान कोरोना योद्धा की तरह निर्बाध बिजली आपूर्ति बनाए रखने वाले बिजली कर्मियों पर भरोसा रखा जाए और निजीकरण का प्रस्ताव निरस्त किया जाए।
संघर्ष समिति ने चेतावनी दी है कि यदि पूर्वांचल विद्युत् वितरण निगम के विघटन व निजीकरण की दिशा में एक भी और कदम उठाया गया तो बिना और कोई नोटिस दिए सभी ऊर्जा निगमों के तमाम बिजली कर्मी उसी क्षण अनिश्चितकालीन आंदोलन, जिसमें पूर्ण हड़ताल भी होगी, प्रारम्भ कर देंगे। संघर्ष समिति ने बिजली कर्मियों से अनिश्चितकालीन हड़ताल और सामूहिक जेल भरो आन्दोलन के लिए तैयार रहने का आह्वान किया है।
संघर्ष समिति के संयोजक शैलेन्द्र दुबे ने कहा कि ऊर्जा निगमों का शीर्ष प्रबंधन पूरी तरह से विफल हो गया है और अपनी विफलता छिपाने के लिए पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम का निजीकरण थोपा जा रहा है और ऊर्जा क्षेत्र में अनावश्यक टकराव पैदा किया जा रहा है।
सरकार के प्रस्ताव के अनुसार पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम का विघटन कर तीन छोटे निगम बनाए जाएंगे और उनका निजीकरण किया जाएगा। विघटन और निजीकरण दोनों की ही विफलता पर सवाल खड़ा करते हुए संघर्ष समिति का कहना है कि जब वर्ष 2000 में उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत परिषद का विघटन किया गया था तब सालाना घाटा मात्र 77 करोड़ रुपये था। विघटन के बाद कुप्रबंधन और सरकार की गलत नीतियों के चलते यह घाटा अब बढ़कर 95000 करोड़ रुपये से अधिक हो गया है।
इसी प्रकार ग्रेटर नोएडा में निजीकरण और आगरा में फ्रेंचाइजीकरण के प्रयोग भी पूरी तरह विफल साबित हुए हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि इन्हीं विफल प्रयोगों को एक बार फिर पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम पर क्यों थोपा जा रहा है।