गुड़ की चाय बेच कर बेटियों ने दी हौसलों को उड़ान
– मां-बाप का साया सिर से उठा तो जिंदगी बसर करने को उठाया कदम
बलिया(हि.स.)। बेटियां अंतरिक्ष पर जा रही हैं। बेटियां अपने हौसले से हर मुश्किल को आसान बना देती हैं। ऐसी ही दो बेटियां यहां जिला मुख्यालय पर गुड़ की चाय बेचकर अपने जीवन में आयी पहाड़ जैसी बाधाओं से पार पा रही हैं।
शहर से करीब आठ किलोमीटर दूर बांसडीह रोड इलाके के मनियारी जसांव गांव की पूजा सिंह ने बीए किया। पूजा अभी आगे की पढ़ाई की सोचती कि दो साल पहले उसके मां का बीमारी से निधन हो गया। पूजा की मां के जाने के गम को उसके पिता जागीर सिंह सह नहीं सके और वे भी चल बसे। माता-पिता के जाने के बाद घर में अकेली पूजा पर भतीजी स्वीटी के पढ़ाई और पालन-पोषण की जिम्मेदारी आ पड़ी।
स्वीटी के बचपन में ही उसके माता-पिता की मौत कार एक्सीडेंट में हो गई थी। घर में अकेली बुआ-भतीजी के सामने दो जून की रोटी का संकट आ खड़ा हुआ। करीब एक महीने पहले पच्चीस वर्षीया पूजा ने निर्णय लिया कि वह कोई रोजगार शुरू करेगी। तभी उसके दिमाग में आइडिया आया कि वह गुड़ की चाय बेचेगी, क्योंकि गुड़ की चाय अभी जिले में कहीं बिकती नहीं है, जबकि यह लोगों के स्वास्थ्य के लिहाज भी अच्छा है। फिर क्या था, पूजा ने अपने इस निर्णय से भतीजी स्वीटी को अवगत कराया। दोनों ने शहर के जगदीशपुर तिराहे के पास गुड़ की चाय की एक छोटी सी दुकान खोली। दोनों की दुकान रोजाना सुबह सात बजे खुल जाती है। चार घंटे तक दुकान चलाने के बाद ग्यारह बजे तक बंद कर दोनों गांव लौट जाती हैं।
पूजा सिंह ने बताया कि उसकी भतीजी स्वीटी बहुत छोटी थी तभी उसके माता-पिता कार एक्सीडेंट में खत्म हो गए थे। जबकि दो साल पहले मेरे माता-पिता का भी निधन हो गया था। तब अचानक हमारे जीवन में अंधेरा छा गया था। एक भाई है जो हमें अपने हाल पर छोड़कर चला गया। जिसके बाद हमने निर्णय लिया कि किसी के आगे हाथ फैलाने से बेहतर है कि कुछ किया जाए। उसी दरम्यान यह विचार आया कि बलिया में कहीं गुड़ की चाय नहीं बिकती है। इसे चलाने में लागत भी कम है। एक महीने बाद अब हर दिन सात लीटर दूध की खपत हो रही है। मिट्टी के पुरवे में दस और बीस की चाय बेचती हूं।
पूजा ने बताया कि वह ग्यारह बजे के बाद ट्यूशन पढ़ाती है, जबकि स्वीटी कम्प्यूटर सीखती है। उन्होंने कहा कि लड़कियों को अपने पैरों पर खड़ा होना चाहिए। लाज शर्म करेंगे तो कौन खाना देगा? मुझे यह संदेश देना है कि अन्य लड़कियां भी अपने पैरों पर खड़ी हों। शर्म त्यागें।
एन पंकज/सियाराम