काठमांडू में हिंसा के बाद कर्फ्यू, सेना तैनात
राजशाही समर्थकों का प्रदर्शन, सरकार को अल्टीमेटम
इंटरनेशनल डेस्क
काठमांडू। नेपाल में राजशाही की बहाली की मांग को लेकर शुक्रवार को हिंसक प्रदर्शन हुआ। प्रदर्शनकारियों ने काठमांडू के तिनकुने इलाके में एक इमारत में तोड़फोड़ कर आग लगा दी। उन्होंने पुलिस पर पथराव भी किया, जिसके जवाब में सुरक्षाकर्मियों को आंसू गैस के गोले छोड़ने पड़े। इस हिंसा में एक युवक की मौत हो गई। हालात को काबू में करने के लिए प्रशासन ने कर्फ्यू लगा दिया और सेना को तैनात कर दिया। इस आंदोलन में 40 से अधिक नेपाली संगठनों की भागीदारी रही। प्रदर्शनकारियों ने “राजा आओ, देश बचाओ“, “भ्रष्ट सरकार मुर्दाबाद“ और “हमें राजशाही वापस चाहिए“ जैसे नारे लगाए। उन्होंने सरकार को एक सप्ताह का अल्टीमेटम देते हुए चेतावनी दी कि यदि उनकी मांगों पर कार्रवाई नहीं हुई तो विरोध प्रदर्शन और उग्र हो जाएगा। पूर्व राजा ज्ञानेंद्र ने 19 फरवरी को प्रजातंत्र दिवस के अवसर पर जनता से समर्थन मांगा था। इसके बाद से ही नेपाल में “राजा लाओ, देश बचाओ“ आंदोलन की तैयारियां जोरों पर थीं।
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ज्ञानेंद्र शाह पर शाही परिवार की हत्या के आरोप
नेपाल के पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह पर 1 जून 2001 को हुए नारायणहिति हत्याकांड में शामिल होने के आरोप लगे हैं। इस घटना में तत्कालीन राजा वीरेंद्र, रानी ऐश्वर्या सहित शाही परिवार के नौ लोगों की हत्या हुई थी। आधिकारिक रूप से युवराज दीपेंद्र को इस हत्याकांड के लिए जिम्मेदार ठहराया गया, लेकिन कई लोग मानते हैं कि ज्ञानेंद्र ने सत्ता हथियाने के लिए साजिश रची थी। संदेह इसलिए भी गहरा है क्योंकि हत्याकांड के समय वे महल में मौजूद नहीं थे और उनके परिवार को कोई नुकसान नहीं हुआ था। इस रहस्यमयी घटना की सच्चाई आज भी विवादों में घिरी हुई है। ज्ञानेंद्र शाह 9 मार्च को पोखरा में दो महीने के प्रवास के बाद काठमांडू लौटे थे, जहां हजारों समर्थकों ने उनका स्वागत किया। इस आंदोलन का नेतृत्व नवराज सुवेदी कर रहे हैं, जो राज संस्था पुनर्स्थापना आंदोलन से जुड़े हुए हैं। इस आंदोलन का उद्देश्य नेपाल में राजशाही को बहाल करना है।
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नेपाल में राजशाही से लोकतंत्र तक का सफर
नेपाल में 2006 में राजशाही के खिलाफ व्यापक विद्रोह हुआ था। कई हफ्तों तक चले विरोध प्रदर्शनों के बाद तत्कालीन राजा ज्ञानेंद्र को सत्ता छोड़नी पड़ी और सभी अधिकार संसद को सौंपने पड़े। लेकिन अब नेपाल की जनता भ्रष्टाचार, बेरोजगारी और बार-बार सरकार बदलने से परेशान हो गई है। नवराज सुवेदी तब सुर्खियों में आए जब पूर्व राजा ज्ञानेंद्र ने उन्हें इस आंदोलन का नेतृत्व सौंपा। हालांकि, उनके नेतृत्व को लेकर नेपाल के प्रमुख राजतंत्र समर्थक दल राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी (राप्रपा) और राप्रपा नेपाल के भीतर असंतोष देखने को मिला है। सुवेदी ने कहा, “हम अपनी मांगें शांतिपूर्ण तरीके से रख रहे हैं, लेकिन यदि हमें सकारात्मक जवाब नहीं मिला तो हमें प्रदर्शन तेज करने के लिए मजबूर होना पड़ेगा। हमारा आंदोलन तब तक जारी रहेगा जब तक हमारा लक्ष्य पूरा नहीं हो जाता।“
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