इलाहाबाद हाईकोर्ट के इस फैसले पर भड़कीं केंद्रीय मंत्री
कहा-ऐसे फैसलों के लिए समाज में जगह नहीं, सुप्रीम कोर्ट इसका संज्ञान ले
नेशनल डेस्क
नई दिल्ली। इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक हालिया फैसले पर विवाद शुरू हो गया है। कोर्ट ने कहा था कि किसी महिला का प्राइवेट पार्ट पकड़ना और उसकी पजामे की डोरी खींचना रेप नहीं है। अब केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री अन्नपूर्णा देवी ने हाईकोर्ट के इस फैसले को पूरी तरह गलत बताया है। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट को इस पर गंभीरता से विचार करना चाहिए। सभ्य समाज में इस तरह के फैसले के लिए कोई जगह नहीं है। कहीं न कहीं इसका समाज पर गलत असर पड़ेगा। टीएमसी सांसद जून मालिया ने भी इस फैसले की आलोचना करते हुए कहा, “यह बहुत शर्मनाक और महिलाओं के प्रति असंवेदनशीलता का उदाहरण है। हमें ऐसी मानसिकता से बाहर आना होगा।“ वहीं, आम आदमी पार्टी की सांसद स्वाति मालीवाल ने भी नाराजगी जाहिर करते हुए कहा, “मैं यह समझ ही नहीं पा रही कि आखिर इस फैसले के पीछे क्या तर्क दिया गया? सुप्रीम कोर्ट को तुरंत हस्तक्षेप करना चाहिए।“ ट्रायल कोर्ट ने आरोपियों पर आईपीसी की धारा 376 (बलात्कार) सहित अन्य धाराओं में मुकदमा चलाने के आदेश दिए थे। लेकिन आरोपियों ने हाईकोर्ट में इसे चुनौती दी। ट्रायल कोर्ट के फैसले को खारिज कर दिया। लेकिन इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस राम मनोहर नारायण मिश्रा की टिप्पणी पर विवाद हो गया।
जस्टिस मिश्रा ने क्या कहा था…
आरोपियों ने महिला का प्राइवेट पार्ट पकड़ा और उसके कपड़े उतारने की कोशिश की, लेकिन यह बलात्कार की कोशिश नहीं मानी जा सकती। बलात्कार की कोशिश साबित करने के लिए स्पष्ट इरादा दिखना चाहिए। तथ्यों के आधार पर यह सिर्फ वस्त्र उतारने के इरादे से हमले (आईपीसी की धारा 354) का मामला बनता है, बलात्कार का नहीं। अदालत ने आरोपी आकाश और पवन पर भादवि की धारा 376 (बलात्कार) और पाक्सो अधिनियम की धारा 18 के तहत लगे आरोपों को घटा दिया। अब उन पर धारा 354 (इ) (निर्वस्त्र करने के इरादे से हमला या आपराधिक बल का प्रयोग) और पाक्सो अधिनियम की धारा 9/10 (गंभीर यौन हमला) के तहत मुकदमा चलेगा। निचली अदालत को नए सिरे से समन जारी करने का निर्देश दिया।
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लिफ्ट देने के बहाने किया यौन उत्पीड़न
कासगंज की एक महिला ने 12 जनवरी, 2022 को कोर्ट में एक शिकायत दर्ज कराई। आरोप लगाया कि 10 नवंबर, 2021 को वह अपनी 14 साल की बेटी के साथ कासगंज के पटियाली में देवरानी के घर गई थीं। उसी दिन शाम को अपने घर लौट रही थीं। रास्ते में गांव के रहने वाले पवन, आकाश और अशोक मिल गए। पवन ने बेटी को अपनी बाइक पर बैठाकर घर छोड़ने की बात कही। मां ने उस पर भरोसा करते हुए बाइक पर बैठा दिया। लेकिन रास्ते में पवन और आकाश ने लड़की के प्राइवेट पार्ट को पकड़ लिया। आकाश ने उसे पुलिया के नीचे खींचने का प्रयास करते हुए उसके पायजामे की डोरी तोड़ दी। लड़की की चीख-पुकार सुनकर ट्रैक्टर से गुजर रहे सतीश और भूरे मौके पर पहुंचे। आरोपियों ने देशी तमंचा दिखाकर दोनों को धमकाया और फरार हो गए। इसके बाद, जब पीड़ित की मां आरोपी पवन के पिता अशोक के घर गईं, तो उन्होंने गाली-गलौज और धमकी दी। जब पुलिस ने एफआइआर दर्ज नहीं की, तो उन्होंने कोर्ट में अपील की। जस्टिस राम मनोहर मिश्र ने 17 मार्च को दिए अपने आदेश में कहा था कि रेप के प्रयास का आरोप लगाने के लिए अभियोजन पक्ष को साबित करना होगा कि मामला केवल तैयारी से आगे बढ़ चुका था। तैयारी और वास्तविक प्रयास के बीच अंदर दृढ़ संकल्प की अधिकता में है। इस मामले में अभियुक्त आकाश पर आरोप है कि उसने पीड़िता को पुलिया के नीचे खींचने की कोशिश की और उसका नाड़ा तोड़ दिया। लेकिन गवाहों ने यह नहीं कहा कि इसके कारण पीड़िता के कपड़े उतर गए। न ही यह आरोप है कि अभियुक्त ने पीड़िता से पेनेट्रेटिव सेक्स की कोशिश की।
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सुप्रीम कोर्ट ने पलट दिया था बॉम्बे हाईकोर्ट का ऐसा ही फैसला 19 नवंबर, 2021 को सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर बेंच का फैसला पलट दिया था। कहा था कि किसी बच्चे के यौन अंगों को छूना या यौन इरादे से शारीरिक संपर्क से जुड़ा कोई भी कृत्य पॉक्सो एक्ट की धारा 7 के तहत यौन हमला माना जाएगा। इसमें महत्वपूर्ण इरादा है, न कि त्वचा से त्वचा का संपर्क। बॉम्बे हाईकोर्ट की एडिशनल जज पुष्पा गनेडीवाला ने जनवरी, 2021 में यौन उत्पीड़न के एक आरोपी को यह कहते हुए बरी कर दिया था कि किसी नाबालिग पीड़िता के निजी अंगों को स्किन टू स्किन संपर्क के बिना टटोलना पॉक्सो में अपराध नहीं मान सकते। हालांकि बाद में इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट ने पलट दिया।
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