UP News : कोरोना काल में ‘अपनापन’ के डोज के साथ मरीज ठीक कर रहे डॉक्टर की दास्तान
पंकज राय
बलिया (हि.स.)। सड़क किनारे दर्जनों टेम्पो, जीप, ई-रिक्सा व लग्जरी गाड़ियां। वाहन अलग-अलग पर एक ही प्रकार के मरीज। आजकल कोरोना के कहर से चाहे सरकारी हों या प्राइवेट अस्पताल, हर जगह यही दृश्य दिखता है। हालांकि, ऐसे मरीजों का इलाज हर जगह ठीक से हो रहा हो, ऐसा नहीं है। लेकिन शहर के शारदा हॉस्पिटल के संचालक डॉ. जेपी शुक्ल ने अपने अनोखे अंदाज में कोरोना के लक्षण वाले मरीजों का इलाज कर खासी सुर्खियां बटोरी हैं।
कोरोना महामारी के दौरान खांसी, बुखार, सांस फूलने और गिरते ऑक्सीजन लेवल वाले मरीजों के उपचार में दवाओं के साथ मरीज के साथ करीबी प्रदर्शित कर ठीक कर रहे जेपी शुक्ल ने शनिवार कि मैंने अपने हॉस्पिटल में मरीजों की लम्बी कतारें तो देखी थी पर गाड़ी में मरीजों की लाइनों का पहला अनुभव है। बताते हैं कि मरीज के पास जब पहुंचता हूं, वाहन में ही टेस्ट सैंपल लिया जाता है। एक घण्टे में रिपोर्ट मिलती है। रिपोर्ट के साथ फिर सड़क पर जाकर मरीज को देख कर कुछ दवाओं और सुइयों के साथ घर भेजता हूं। मरीज को लगता है अब वह ठीक हो जाएगा, क्योंकि शायद पहली बार इतने नजदीक से कोई प्राइवेट डॉक्टर उन्हें देख रहा है और सन्तोष दे रहा है।
उन्होंने कहा कि कभी-कभार मेडिकल स्टोर पर कुछ लोग दवा वापस करने भी आते हैं लेकिन पूछने की हिम्मत नहीं होती कि वे दवा क्यों लौटाने आये हैं? बीस साल के प्रैक्टिस ने इतना तो आत्मविश्वास दे ही दिया था कि ईश्वर की कृपा से अपनी मेहनत और भाग्य के बल पर वह मरीज भी मैंने बचाए थे जो आम तौर पर कहीं और नहीं बचते।
मरीजों से दिल से जुड़कर करता हूं इलाजडॉ. जेपी शुक्ला ने कहा कि मैं मरीजों से दिल से जुड़ता हूं। लेकिन कोरोना काल में मुझे काफी दुख हो रहा है। कहा कि एक मरीज जब आता है और मैं जब उनके सर पर हाथ रखता हूं तो वह सोचता है कि मेरे हाथ में अमृत है। पर आजकल पता नहीं किसने वह अमृत छीन लिया है? कहा कि मैं यह नहीं कहता कि कुछ मरीज ठीक नहीं हुए हैं। बहुत सारे मरीजों को हॉस्पिटल में प्रवेश कराये बिना उनके वाहनों में ही देख कर और उपचार करके मैंने ठीक किया है। इसके लिये मैंने अपने आप से और सरकर से लड़ाई लड़ी है।
उन्होंने बताया कि शुरुआत में हम प्राइवेट डॉक्टर्स को कोरोना मरीज के इलाज की अनुमती नहीं थी। कोरोना कन्फर्म होने में कम से कम चार-पांच दिन का समय लग जाता था, पर तब भी हमने अपने मरीजों को समय पर नहीं छोड़ा। आज भी नहीं छोड़ते हैं। पर सरकार के गाइडलाइंस के खिलाफ जाकर इलाज करने में डर तो लगता ही है। मुझे दुख इस बात का है कि कुछ लोगों को बचा नहीं पाया। हालांकि, खुशी इस बात की भी है कि लगभग छह हजार लोग जो ऑक्सीजन और वेंटिलेटर के लिये मारे फिर रहे थे। वे शायद इस चक्कर में सड़क पर ही मर जाते। उनको घर पर ही अच्छा इलाज देकर मैंने बचाया या बचाने का प्रयास किया।