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UP : 44 साल बाद 24 निर्दोषों के तीन हत्यारों को फांसी

प्रादेशिक डेस्क

लखनऊ। उत्तर प्रदेश के मैनपुरी जिले की स्पेशल डकैती कोर्ट की एडीजे इंद्रा सिंह ने मंगलवार को 24 दलितों की सामूहिक हत्या में तीन डकैतों कप्तान सिंह, रामसेवक और रामपाल को फांसी की सजा सुनाई। सभी पर 50-50 हजार रुपए का जुर्माना भी लगाया गया है। 11 मार्च को स्पेशल जज ने तीनों को दोषी ठहराया था। इस मामले में 17 लोगों को आरोपी बनाया गया था, जिनमें 13 की मौत हो चुकी है। एक आरोपी भगोड़ा घोषित है।
विवरण के अनुसार, 18 नवंबर 1981 की शाम करीब छह बजे डकैत राधेश्याम उर्फ राधे और संतोष उर्फ संतोषा के गिरोह ने एक मुकदमे में गवाही के विरोध में दिहुली गांव में धावा बोला। दोनों ने अपने 22 अन्य साथियों के साथ गांव में ऐसा तांडव मचाया कि गांव की जमीन लाल हो गई। 24 दलितों की गोली मारकर हत्या कर दी, जिसमें महिलाएं, पुरुष और बच्चे भी शामिल थे। डकैतों ने हत्या करने के बाद लूटपाट भी की थी। दिहुली के लायक सिंह ने 19 नवंबर, 1981 को थाना जसराना में रिपोर्ट दर्ज कराई थी। राधेश्याम उर्फ राधे, संतोष सिंह उर्फ संतोषा के अलावा 17 लोग नामजद किए गए। यह हत्याकांड पूरे देश में गूंजा था। मैनपुरी से लेकर इलाहाबाद तक यह मामला कोर्ट में चला। इसके बाद 19 अक्तूबर, 2024 को बहस के लिए मुकदमा फिर से मैनपुरी सेशन कोर्ट में ट्रांसफर किया गया। जिला जज के आदेश पर विशेष डकैती कोर्ट में इसकी सुनवाई हुई।

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तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी, गृहमंत्री बीपी सिंह, मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी और विपक्षी नेता अटल बिहारी वाजपेई भी पीडितों का दर्द बांटने दिहुली गांव पहुंचे थे। जिस वक्त ये नरसंहार हुआ, उस समय दिहुली गांव फिरोजाबाद के थाना जसराना क्षेत्र में आता था। मैनपुरी जिला बनने के बाद फिरोजाबाद से केस मैनपुरी ट्रांसफर कर दिया गया। मंगलवार को कड़ी सुरक्षा में डकैत कप्तान सिंह, रामसेवक और रामपाल को अदालत लाया गया। अदालत ने साक्ष्यों और गवाही के आधार पर कप्तान सिंह, रामसेवक और रामपाल को फांसी की सजा सुनाई। वकील रोहित शुक्ला ने बताया कि सामूहिक हत्याकांड के पीछे मुखबिरी और गवाही का मामला मुख्य रूप से सामने आया था। नाराज डकैतों ने बदले की भावना से गांव में पहुंचकर हमला किया था। 1983 में चार्जशीट दाखिल की हुई थी। दोषियों को अपने किए पर पछतावा है। फैसला आया, तो वे रो पड़े। वहीं, आरोपी कप्तान सिंह ने बताया कि हमको झूठा फंसाया गया है। मैंने कुछ नहीं किया है।

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इन 24 लोगों की हुई थी मौत

रामदुलारी, श्रृंगारवती, शांति, राजेंद्री, राजेश, रामसेवक, ज्वाला प्रसाद, रामप्रसाद, शिवदयाल, मुनेश, भरत सिंह, दाताराम, लीलाधर, मानिकचंद्र, भूरे, शीला, मुकेश, धनदेवी, गंगा सिंह, गजाधर, प्रीतम सिंह, आशा देवी, लालाराम, गीतम की हत्या हुई थी। इस नरसंहार को अंजाम देने का आरोप जिस संतोष उर्फ संतोषा और राधे के गिरोह पर था, उसके 17 सदस्यों को इस वारदात में आरोपी बनाया गया। आरोपियों में से गिरोह सरगना संतोष उर्फ संतोषा और राधे सहित गैंग के सदस्य कमरुद्दीन, श्यामवीर, प्रमोद राना, मलखान, कुंवरपाल, राजे उर्फ राजेंद्र, भूरा, सिंह, रविंद्र सिंह, युधिष्ठिर पुत्र दुर्गपाल सिंह, युधिष्ठिर पुत्र मुंशी सिंह और पंचम पुत्र मुंशी सिंह की मौत हो चुकी है।

पांच गवाहों के सहारे चला मुकदमा

कोर्ट में लायक सिंह, वेदराम, हरिनरायण, कुमर प्रसाद, बनवारी लाल की गवाही हुई। इनकी गवाही के सहारे ही पूरा केस कोर्ट में टिका रहा। कुमर प्रसाद की गवाही सबसे अहम रही। उन्होंने बतौर चश्मदीद कोर्ट में अपनी गवाही दी थी। कुमर प्रसाद की गवाही में नरसंहार और वेदराम की गवाही में हत्याओं के साथ ही लूट की भी बात कही गई। एडीजे (डकैती) इंद्रा सिंह की कोर्ट से मंगलवार को फैसला आ गया है। मगर, इस नरसंहार की फाइल अभी अदालत में पूर्ण रूप से बंद नहीं होगी। दरअसल, एक आरोपी ज्ञानचंद्र उर्फ गिन्ना अभी भी फरार है। अदालत ने 15 जुलाई 2023 को उसे भगोड़ा घोषित करार देते हुए उसके खिलाफ स्थायी वारंट जारी कर रखे हैं। जब तक ज्ञानचंद्र की गिरफ्तारी नहीं हो जाती या फिर वह खुद ही कोर्ट में सरेंडर नहीं कर देता, उसकी फाइल जिंदा रहेगी।

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