आवास विकास कालोनी में चल रही श्रीराम कथा में रमेश भाई शुक्ल ने सुनाई अरण्यकांड की कथा
अतुल भारद्वाज
गोंडा। शूर्पणखा इंद्र के दरबार में नयनतारा नामक अप्सरा थी। इंद्र के निर्देश पर वज्रा नामक संत की तपस्या भंग करने के उपरांत उन्हीं के श्राप से वह शूर्पणखा बनी। लंका में राक्षण समेत सभी राक्षसों के विनाश के बाद वह तपस्या करने के लिए पुष्कर आ गई। द्वापर युग में उसने कुब्जा के रूप में जन्म लिया और भगवान कृष्ण का दर्शन करके परमधाम को प्राप्त हुई। यह बात अखिल भारतीय श्रीराम नाम जागरण मंच के तत्वावधान में आयोजित 11 दिवसीय श्रीराम कथा में बृहस्पतिवार को कथावाचक रमेश भाई शुक्ल ने अरण्यकांड की कथा सुनाते हुए कही।
लक्ष्मण द्वारा उसका नाक-कान काटने को सर्वथा उचित ठहराते हुए कथावाचक ने कहा कि मनुस्मृति में अपने रूपजाल का प्रयोग करके किसी को पथभ्रष्ट करने की कोशिश करने वाली स्त्री को कुरूप बना देने की स्पष्ट शब्दों में लिखी है। इस प्रकार राम के इशारे पर लक्ष्मण ने शास्त्रसम्मत कार्रवाई की थी। इसमें कुछ भी अनुचित नहीं था। उन्होंने कहा कि विधवा होने के बावजूद शूर्पणखा सोलहों श्रृंगार करके राम की कुटिया में प्रणय निवेदन करने पहुंची थी। इसलिए उसका अहित होना ही था क्योंकि शास्त्रों में विधवा स्त्री, कुआंरी कन्या और साधु-संन्यासी का अतिशय श्रृंगार वर्जित है। यदि ये तीनों इसके प्रतिकूल आचरण करेंगे, तो समस्या पैदा होगी।
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रावण ने किया था नकली सीता का हरण
उन्होंने ‘तुम पावक मंह करहु निवासा, जब तक करंउ निशाचर नाशा’ की व्याख्या करते हुए कहा कि सीता का अपहरण एक नाटक था। राम ने 10 माह के लिए असली सीता को अग्नि में प्रवेश करवा दिया था। रावण ने नकली सीता का हरण किया था। उन्होंने कहा कि यह बात राम और सीता के अलावा किसी को भी पता नहीं थी। गोस्वामी जी ‘लक्ष्मणहू यह मरम न जाना’ के माध्यम से यह बात स्पष्ट की है। उन्होंने कहा कि लक्ष्मण गुरु के अवतार हैं। उन्होंने राम को मृग बने मारीच के पीछे दौड़कर जाने तथा सीता को लक्ष्मण रेखा से बाहर आने के लिए मना किया था, किंतु दोनों ने उनकी बात नहीं माना। नतीजतन उन दोनों को रोना पड़ा था। इसलिए गुरु की बात का कभी अनादर नहीं करना चाहिए। उन्होंने अध्यात्म रामायण के हवाले से कहा कि सीता का हरण करते समय भी रावण ने उन्हें छुआ नहीं था। वह धरती से उस चबूतरे को ही उठा लिया था, जिस पर खड़ी थीं। यहां तक कि अशोक वाटिका में भी वह उसी चबूतरे पर रहती थीं। लंका में रहकर भी उन्होंने वहां की धरती पर पैर नहीं रखा।

सीता की गलतियां दुहराएंगे तो संकट आना तय
कथावाचक ने कहा कि पंचवटी प्रवास के दौरान सीता द्वारा तीन गलती किए जाने के कारण साधु वेशधारी रावण द्वारा उनका अपहरण किया गया। आज कलियुग में भी यदि हम वे तीनों गलतियां दुहराएंगे तो जीवन में संकट आना तय है। उन्होंने कहा कि सोने का मृग बने मारीच का वध करने के लिए सीता ने ज्ञान के प्रतीक राम को अपने से दूर कर दिया। बाद में वैराग्य के प्रतीक लक्ष्मण को भी कुटिया से बाहर भेज दिया और अंत में स्वयं भी रावण को भिक्षा देने के लिए लक्ष्मण रेखा (मर्यादा) का उल्लंघन कर बैठीं। इसका परिणाम हुआ कि रावण उनका अपहरण करने में सफल हो गया। व्यास पीठ ने कहा कि इसी प्रकार जब भी हम अपने जीवन से ज्ञान (उचित-अनुचित), वैराग्य और मर्यादा को दूर कर देते हैं तो हमें मुसीबत से कोई बचा नहीं सकता।

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पांच चीजों के होने से शबरी की कुटिया में आए थे राम
शुक्ल ने कहा कि शबरी के पास पांच चीजें होने के कारण भगवान राम उनकी कुटिया को गए थे। एक झाड़ू था, जो स्वच्छता का प्रतीक है। एक तुलसी की माला थी, जिससे राम नाम का जाप होता था। दो फूटे हुए मिट्टी के घड़े थे, जिनसे जल का रिसाव होता रहता था। फलों की एक टोकरी थी तथा गुरु मतंग के वचनों पर विश्वास था कि एक दिन भगवान राम तेरी कुटिया पर अवश्य आएंगे। इसी प्रकार यदि हम अपना तन-मन और घर स्वच्छ रखें, तुलसी की माला से राम नाम का जाप करें, दोनों नयनों को गीला करके प्रभु को याद करें, अपने सद्कर्मों के फलों की टोकरी उनके चरणों में अर्पित करें और गुरु पर अटूट विश्वास करें तो प्रभु की कृपा की प्राप्ति अवश्य होगी। उन्होंने शबरी को नवधा भक्ति का उपदेश देकर उसे अपने चरणों में स्थान देने की बात कहकर आठवें दिन की कथा को विश्राम दिया। इस मौके पर राजीव रस्तोगी, सभाजीत तिवारी, हरिओम पांडेय, डॉ प्रभा शंकर द्विवेदी, ईश्वर शरण मिश्र, एसएन मिश्र, बृजेश द्विवेदी, आनंद ओझा, संजय मिश्रा, अनिल त्रिपाठी, घनश्याम तिवारी, रणविजय सिंह आदि मौजूद रहे।

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