श्रीराम नाम जागरण मंच के तत्वावधान में आयोजित 11 दिवसीय कार्यक्रम में प्रवाचक ने सुनाई श्रीराम जन्म कथा
अतुल भारद्वाज
गोंडा। अयोध्या में भगवान श्रीराम के अवतार से पूर्व उनकी सेवा के लिए ब्रम्हा, शंकर आदि देवता पृथ्वी पर भालू बंदर बनकर अवतार ले चुके थे। ब्रम्हा जामवंत बने तथा शंकर ने हनुमान के रूप में वानर रूप धरा। इसी प्रकार से सभी देवता कोई न कोई रूप धारण करके प्रभु श्रीराम की सेवा के लिए तत्पर हो गए। यह बात नगर के आवास विकास कालोनी में अखिल भारतीय श्रीराम-नाम जागरण मंच के तत्वावधान में आयोजित श्रीराम कथा में शनिवार को अंतर्राष्ट्रीय कथावाचक रमेश भाई शुक्ल ने कही।
भगवान श्रीराम के जन्म की कथा सुनाते हुए उन्होंने कहा कि श्रीराम के पिता राजा दशरथ के जन्म से भी काफी समय पूर्व रावण का जन्म हो चुका था। उसने अपने तप से तीनो लोकों पर प्रभाव जमा लिया। यद्यपि अयोध्या को वह जीत नहीं सका था, किंतु इसके बावजूद वह अपने को तीनो लोकों का स्वामी कहता था। उसके पाप से धरती त्रस्त थी। सभी देवता मिलकर ब्रम्हा जी के पास पहुंचे और इसका कुछ उपाय करने को कहा। ब्रम्हा जी ने कहा कि रावण के 10 सिर हैं। मेरे केवल चार हैं। मैं उसे काबू में नहीं कर सकता। एक हजार नाम वाले भगवान विष्णु ही हमारी मदद कर सकते हैं। हम सभी को मिलकर उन्हीं से प्रार्थना करनी चाहिए। इस प्रकार सभी देवताओं ने मिलकर ‘जय-जय सुरनायक, जन सुखदायक’ का गान दिया। सामूहिक स्तुति से प्रसन्न होकर विष्णु ने अयोध्या में राजा दशरथ के यहां जल्द ही जन्म लेने की बात कही। यह सुनकर देवता खुश हो उठे और पृथ्वी पर विविध रूपों में जन्म लेने लगे। बाद में 14 वर्ष के वनवास काल में प्रभु श्रीराम के साथ मिलकर उन्होंने रावण, कुंभकर्ण, मेघनाद आदि प्रतापी राक्षसों का वध किया।

कथा व्यास के अनुसार, रावण को पहले से ही पता चल गया था कि उसकी मौत अयोध्या के राजा दशरथ के पुत्र के हाथों होगी। इसलिए दोनों के विवाह के पूर्व ही उन्हें मार डालने की योजना बनाई। दरअसल, कुशल प्रदेश (वर्तमान छत्तीसगढ़) के राजा सुकौशल और रानी अमृतप्रभा की पुत्री कौशल्या का विवाह अयोध्या नरेश दशरथ से तय कर दिया। विवाह की तैयारियां जोरों पर थीं। महाराज दशरथ सरयू में नौका विहार कर रहे थे। इसी बीच उन्हें मार डालने के उद्देश्य से रावण ने आकाश से नाव पर घातक अस्त्र का प्रहार किया। इससे नौका क्षतिग्रस्त हो गई और वे नदी में डूब गए। बाद में एक लकड़ी के सहारे नदी में बहते हुए राजा दशरथ गंगासागर पहुंच गए। दूसरी तरफ रावण ने राजभवन से राजकुमारी कौशल्या का अपहरण कर उन्हें एक पेटिका में बंद करके समुद्र में रहने वाली अपनी एक परिचित मछली को सुरक्षित रखने के लिए दे दिया। मछली उस पेटिका को सदैव अपने मुख में रखती थी।

एक दिन दूसरी मछली द्वारा उस पर आक्रमण कर दिए जाने के कारण उससे लड़ने के लिए उस मछली ने वह पेटिका गंगासागर के किनारे एक टीले पर रख दी। संयोग से नदी में बहते हुए वहीं पहुंच चुके दशरथ ने वह पेटिका खोली तो उसमें एक सुंदर कन्या निकली। परस्पर परिचय के बाद वह भी उसी पेटिका में बैठ गए। वहीं पर दोनों का विवाह हुआ। विवाह की जानकारी मिलते ही रावण बौखला गया। वह उन्हें मारने के लिए उद्यत हो गया, किंतु ब्रम्हा के समझाने पर वह मान गया। वे दोनों अयोध्या वापस लौट आए और सुखपूर्वक रहने लगे। कालांतर में अपने वचन के अनुरूप उनके घर स्वयं नारायण ने बालक के रूप में जन्म लिया। इस मौके पर संयोजक मंच के राष्ट्रीय अध्यक्ष निर्मल शास्त्री, राजीव रस्तोगी, अनिल मित्तल, प्रभाशंकर द्विवेदी, अमित, मनीष अग्रवाल, नितेश अग्रवाल रोमी, सभाजीत तिवारी, हरिओम पांडेय, ईश्वर शरण मिश्र, एसएन मिश्र एडवोकेट आदि उपस्थित रहे।

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