कथावाचक रमेश भाई शुक्ल ने Ram Katha में किया विषयी, साधक और सिद्ध श्रोताओं का विवेचन
अतुल भारद्वाज
गोंडा। Ram Katha के दिव्य रस से सराबोर आवास विकास कॉलोनी में सोमवार की शाम भावनाओं का अद्भुत उभार देखने को मिला, जब अखिल भारतीय श्रीराम नाम जागरण मंच के तत्वावधान में आयोजित श्रीराम कथा में प्रवाचक रमेश भाई शुक्ल ने श्रोताओं को कथा के आध्यात्मिक रहस्यों से अवगत कराया। उन्होंने बताया कि Ram Katha का अमृत रस तीन प्रकार के श्रोता ग्रहण करते हैं—विषयी, साधक और सिद्ध। उनके अनुसार विषयी श्रोता निम्न कोटि के, साधक मध्यम कोटि के और सिद्ध उच्च कोटि के माने जाते हैं।
उन्होंने कहा कि जो व्यक्ति क्रोध, लोभ, मोह और कामना की आग में जलता रहता है, उसके सामने शांति, धर्म या हरिकथा की बात करना उसी प्रकार निष्फल हो जाता है, जैसे ऊसर भूमि में बोया गया बीज फल नहीं देता। उन्होंने जोर देकर कहा कि Ram Katha का सार वही समझ पाता है जिसकी चित्तवृत्ति निर्मल हो।
प्रवचन के दौरान महर्षि दधीचि के त्यागमय जीवन का विस्तार से वर्णन किया गया। प्रवाचक ने बताया कि इंद्र के लिए वज्र निर्माण हेतु जब दधीचि ने अपनी अस्थियों का दान दिया, तब उनकी इन्हीं अस्थियों से तीन दिव्य धनुष भी बने। शारंग भगवान विष्णु को, पिनाक भगवान शंकर को और गांडीव अर्जुन को प्राप्त हुआ। उन्होंने कहा कि पिनाक धनुष से ही भगवान शिव ने त्रिपुरासुर का संहार किया था।
इसके बाद प्रवाचक ने सीता स्वयंवर का विस्तृत प्रसंग सुनाते हुए बताया कि राजा जनक ने पिनाक धनुष की प्रत्यंचा चढ़ाने की शर्त रखी थी। भगवान श्रीराम ने गुरु विश्वामित्र, गुरु वशिष्ठ और भगवान शिव का स्मरण कर जब धनुष उठाया, तो प्रयास करते ही महानाद के साथ धनुष भंग हो गया। इस असाधारण घटना ने पूरी सभा को स्तब्ध कर दिया और इसी मंगल प्रसंग के बाद राम–सीता विवाह संपन्न हुआ। Ram Katha के इस भावपूर्ण प्रसंग पर श्रोता स्वयं को रोक न सके और वातावरण भक्ति में डूब गया।
कथा स्थल पर पंडित हरिओम पांडेय, ईश्वर शरण मिश्र, एसएन मिश्र एडवोकेट, राकेश सिंह सहित सैकड़ों श्रद्धालु मौजूद रहे। सभी ने Ram Katha के दिव्य प्रसंगों का रसामृत ग्रहण कर आध्यात्मिक आनन्द का अनुभव किया।
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