Friday, December 12, 2025
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चित्रकूट पहुंचने पर भरत के पैरों में ‘झलक’ रहे थे ‘झलके’!

श्रीराम कथा में रमेशभाई शुक्ल ने सुनाई श्रीराम और भरत के मिलाप की करुण कथा

अतुल भारद्वाज

गोंडा। अखिल भारतीय श्रीराम नाम जागरण मंच के तत्वावधान में आयोजित 11 दिवसीय श्रीराम कथा में बुधवार को प्रवाचक रमेश भाई शुक्ल ने चित्रकूट में श्रीराम और भरत के करुण मिलन की कथा सुनाई। श्रीरामचरित मानस की चौपाई ‘झलका झलकत पायन्ह कैसे, पंकज कोस ओस कन जैसे’ की मार्मिक व्याख्या करते हुए प्रवाचक ने कहा कि प्रभु श्रीराम अयोध्या से चलकर चित्रकूट तक पहुंच गए, किंतु उनके पैरों में झलके (छाले) नहीं पड़े। इसके विपरीत भरत के पांवों में झलके ऐसे झलक रहे थे, जैसे कमल की कलियों पर ओस की बूंदें चमक रही हों। उन्होंने स्पष्ट किया कि जंगल जाते समय वसंत ऋतु थी और श्रीराम, लक्ष्मण व सीता श्रृंगवेरपुर तक रथ से गए थे, जबकि भरत उसके करीब एक माह बाद पैदल चलकर चित्रकूट पहुंचे थे। तब तक मौसम बदल चुका था। गर्मी की ऋतु प्रारंभ हो चुकी थी।

चित्रकूट पहुंचने पर भरत के पैरों में 'झलक' रहे थे 'झलके'!
आवास विकास कालोनी में आयोजित श्रीराम कथा का आनंद लेते श्रोता।

उन्होंने कहा कि श्रीराम की कुटिया देखते ही भरत विलखते हुए जमीन पर गिर पड़े। प्रभु श्रीराम ने उन्हें दौड़कर उठाया और गले से लगा लिया। भरत और श्रीराम का मिलाप इतना भावुक और मार्मिक था कि पर्णकुटी के आसपास मौजूद पशु-पक्षीकृयहां तक कि पत्थर और चट्टानें भी रो पड़ीं। उन्होंने कहा कि दोनों भाइयों का यह मिलन भक्ति, कर्तव्य और त्याग के मूल्यों को दर्शाता है। इसे हिंदू पौराणिक कथाओं में भ्रातृ प्रेम के सबसे मार्मिक क्षणों में से एक माना जाता है। वनवास पूरा होने तक अयोध्या का राज चलाने के लिए भरत द्वारा कोई चिन्ह मांगने पर श्रीराम ने उन्हें अपनी चरण-पादुकाएं दीं, जिन्हें भरत ने सिंहासन पर रखकर राजकाज संभाला। आज भी चित्रकूट में कामदगिरि पर्वत के परिक्रमा पथ पर वह पवित्र स्थल है, जहां यह मिलाप हुआ था। यहां राम, सीता, लक्ष्मण और भरत के सुंदर विग्रह स्थापित हैं। प्रवाचक ने श्रीरामचरित मानस की चौपाई ‘प्रगट करउं रिस पाछिल आजू’ की बड़ी ही गूढ़ व्याख्या करते हुए बताया कि वे कौन से कारण थे, जिनसे भरत से लक्ष्मण मन ही मन नाराज रहा करते थे। इस क्रम में उन्होंने क्षीरसागर में निवास करते हुए नारायण द्वारा शेषनाग रूपी लक्ष्मण के मना करने के बावजूद भरत के कहने पर शंखासुर वध समेत कई प्रसंग सुनाए।

चित्रकूट पहुंचने पर भरत के पैरों में 'झलक' रहे थे 'झलके'!
आवास विकास कालोनी में आयोजित श्रीराम कथा का आनंद लेते श्रोता।

जहां सुख की अति होगी, धर्म वहां से दूर चला जायेगा : रमेश भाई

इससे पूर्व मंगलवार को अयोध्या कांड की कथा सुनाते हुए उन्होंने कहा कि श्रीराम विवाह के बाद सीता के साथ अयोध्या लौटते हैं और राजा दशरथ अपने सफेद बाल देखकर वानप्रस्थ की ओर बढ़ने की बात कहते हैं। प्रवाचक ने कहा कि सफेद बाल संकेत हैं कि अब मनुष्य को भक्ति की ओर उन्मुख होना चाहिए। वाल्मीकि रामायण का उदाहरण देते हुए रमेश भाई शुक्ल ने कहा कि कौशल्या ज्ञान, कैकेई कर्म और सुमित्रा भक्ति की प्रतीक हैं। इसी कारण राम वनगमन के समय सुमित्रा से नहीं मिले, क्योंकि ज्ञान और कर्म को छोड़ा जा सकता है, परंतु भक्ति को नहीं। उन्होंने कहा कि वनगमन में राम आगे, लक्ष्मण पीछे और सबसे पीछे सीता चलती हैं। यह दर्शाता है कि जीवन में धर्म (राम) को सदैव आगे रखना चाहिए। उसके बाद गुरु (लक्ष्मण) और अंत में शास्त्र-विरुद्ध कर्म का भय (सीता) होना चाहिए। राम वन गमन की कथा सुनाते हुए कथावाचक ने कहा कि भगवान राम धर्म के प्रतीक हैं। प्रभु कृपा से जहां सुख-समृद्धि की अति हो जाती है, धर्म वहां से दूर चला जाता है, जैसे राम विवाह के बाद अयोध्या में अति सुख होने पर युवराज को वन गमन करना पड़ा।

चित्रकूट पहुंचने पर भरत के पैरों में 'झलक' रहे थे 'झलके'!
आवास विकास कालोनी में आयोजित श्रीराम कथा का आनंद लेते श्रोता।

उन्होंने कहा कि राम विवाह के बाद अयोध्या में अति सुख आ गया था। राम के वनवास में अनेक कारणों के साथ एक कारण यह भी था। जब भी हम अति सुखी होंगे, राम (धर्म) हमसे दूर हो जाएगा। सफेद बाद देखकर राजा दशरथ तुरंत सजग हो गए और उन्होंने गद्दी छोड़कर (जिम्मेदारियां सौंपकर) भगवत भजन में लग जाने का निर्णय लिया। उन्होंने इस कार्य के लिए गुरु वशिष्ठ से शुभ मुहूर्त के बारे में पूछा तो गुरु जी ने यथाशीघ्र (बेगि) यह कार्य करने को कहा। राजा दशरथ ने राजतिलक का कार्य अगले दिन करने का निर्णय करके तैयारी करने का निर्देश दिया, किन्तु रात भर में ही सब कुछ उलट-पुलट गया। इसलिए हमें किसी भी प्रकार के शुभ कार्य को टालना नहीं चाहिए। शुक्ल ने कहा कि बीता हुआ और आने वाला कल पर हमारा कोई बस नहीं है। इसलिए जो भी करें आज करें। कथावाचक ने कहा कि भगवान राम धर्म, सीता शांति, लक्ष्मण वैराग्य, राजा दशरथ काम, कैकेयी क्रोध और मंथरा लोभ की प्रतीक हैं। काम, क्रोध और लोभ जब एकत्रित हो जाएंगे, तो धर्म, शांति और वैराग्य का निष्कासन तय है। भगवान राम ने 14 वर्ष की वनवास की अवधि में राम राज्य की स्थापना की व्यवस्था की थी। समाज के सबसे दबे, कुचले और कमजोर वर्ग के लोगों को अपना मित्र बनाया। समाज में ऊंच-नीच का भेदभाव खत्म करने का प्रयास किया। इस मौके पर कथा के आयोजक निर्मल शास्त्री, डॉ प्रभा शंकर द्विवेदी, राजीव रस्तोगी, सभाजीत तिवारी, हरिओम पांडेय, अर्जुन सोनी, विवेक लोहिया, केएम शुक्ल, ईश्वर शरण मिश्र, एसएन मिश्र, केके पांडेय, नितेश अग्रवाल, नंद किशोर आदि उपस्थित रहे।

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आवास विकास कालोनी में आयोजित श्रीराम कथा का आनंद लेते श्रोता।

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