सावन आता है तो धरती जैसे सजीव हो उठती है। पेड़ हरे हो जाते हैं, आकाश मेघों से घिर जाता है और हवा में मिट्टी की सौंधी महक घुल जाती है। यह केवल एक महीना नहीं होता बल्कि यह भावों का मौसम होता है और जब सावन की पहली सोमवारी आती है, तो मानो पूरा ब्रह्मांड ही शिवमय हो जाता है।
शिव: मौन में समाहित, प्रलय में सृजन
शिव को समझना किसी शब्दकोश से परे है। वे संहार के देव हैं, पर वे ही सृष्टि का आरंभ भी हैं। वे योगी हैं, पर साथ ही गृहस्थ भी हैं। वे भस्म रमाए हैं, पर करुणा की गंगा भी उन्हीं से बहती है। सावन की सोमवारी में श्रद्धालु धार्मिक आस्था, प्रेम और समर्पण के भाव से भगवान शिव की आराधना करते हैं।
मां पार्वती की साधना
शास्त्रों के अनुसार, सावन यही वह कालखंड है जब देवी पार्वती ने कठोर व्रत कर महादेव को पति रूप में प्राप्त किया। सावन मास की सोमवारी का व्रत उनके तप, धैर्य और श्रद्धा का प्रतीक है। विशेषकर सावन की पहली सोमवारी, एक ऐसा शुभारंभ है जहाँ व्रत करने वाली स्त्रियाँ देवी पार्वती की ऊर्जा और शिव की शांति से स्वयं को जोड़ती हैं।
प्रकृति: शिव और शक्ति की जड़ी-बूटी
बारिश, मेघ, हरियाली, नदी, झरना; ये सब केवल पर्यावरणीय घटक नहीं, ये शिव और शक्ति की सांकेतिक उपस्थिति हैं। मेघ शिव के जटाओं से गिरे जल हैं और हरियाली शक्ति का जीवन रस। जब ये मिलते हैं, तो धरती पर चैतन्य वर्षा ऋतु का आरंभ होता है।
जहाँ शिव जल हैं, वहाँ शक्ति वायु हैं। जहाँ शिव मौन हैं, वहाँ शक्ति गीत हैं। जहाँ शिव ध्यान हैं, वहाँ शक्ति जीवन है। इसलिए सावन की पहली सोमवारी हमें यह याद दिलाती है कि स्त्री और पुरुष, ध्यान और क्रिया, मौन और संवेग; ये सब विरोध नहीं बल्कि एक दूसरे के पूरक हैं।
व्रत: कर्म से भाव की यात्रा
व्रत केवल शरीर का नहीं होता, यह एक आत्मिक अनुशासन होता है। इस दिन शिव भक्त बिना अन्न-जल के रहते हैं, जलाभिषेक करते हैं, बेलपत्र, धतूरा, भांग चढ़ाते हैं और ‘ॐ नमः शिवाय’ का जप करते हैं। इन तमाम क्रियाओं के पीछे कोई दिखावे का भाव नहीं होता, बल्कि यह स्वयं में झांकने की प्रक्रिया होती है।
कांवड़ यात्रा: श्रद्धा के पथ की परीक्षा
सावन की पहली सोमवारी के पहले से ही देशभर में लाखों कांवड़िए गंगा से जल भरकर, मन में शिव का नाम लेकर शिवालयों की ओर पैदल यात्रा पर निकल जाते हैं। यह यात्रा कोई धार्मिक पर्यटन नहीं, यह व्रत की चरम परीक्षा है, जहाँ शरीर तो थकता है, पर आत्मा जीवंत हो उठती है। “बोल बम!” का उद्घोष उस ऊर्जा का स्वरूप है, जो श्रद्धा से उत्पन्न होता है।

स्त्रियाँ और सावन: सौंदर्य में समर्पण
सावन की पहली सोमवारी गाँव की चौपालों से लेकर शहर के मंदिरों तक स्त्रियों के श्रृंगार, गीतों और मंगलभावों से सजी होती है। वे हरे वस्त्र पहनती हैं, झूले डालती हैं, मेहंदी रचाती हैं और शिव से केवल अपने सुहाग की नहीं, बल्कि मन की शांति और स्थायित्व की याचना करती हैं।
इस समय सिर्फ मंदिर ही नहीं गूंजते, प्रकृति स्वयं शिव की आरती करती है। बादलों की गर्जना, हवाओं का संगीत, और झरते जल का नाद सब मिलकर शिव का स्मरण करते हैं। यह वह दिन होता है जब मनुष्य और प्रकृति एक ही भाव में एकाकार हो जाते हैं।
शिव और शक्ति: पूर्णता के दो रूप
शिव और शक्ति को यदि अलग-अलग समझा जाए, तो सृष्टि अधूरी हो जाती है। वे जब मिलते हैं तभी सृष्टि का चक्र पूरा होता है। यही अर्धनारीश्वर का भाव है, जिसे सावन की पहली सोमवारी जीवंत कर देती है। शिव का ध्यान शक्ति की उपस्थिति के बिना अधूरा है और शक्ति की गति शिव की स्थिरता के बिना दिशाहीन है। इसलिए जब स्त्रियाँ व्रत करती हैं और पुरुष कांवड़ उठाते हैं, इस तरह दोनों ही शिव और शक्ति की मिलन यात्रा में सहभागी बनते हैं।
समकालीन जीवन में सावन का महत्व
आज के डिजिटल और तेज रफ्तार जीवन में सावन की सोमवारी एक धीमे, अर्थपूर्ण क्षण की तरह आती है। यह दिन सिखाता है कि कभी-कभी रुकना, स्वयं से जुड़ना और मौन में बैठकर शिव का स्मरण करना ही सच्चा आध्यात्म है।
सावन, शिव और शक्ति का संगम
भगवान शिव की साधना तभी सफल है जब शक्ति का सम्मान हो और शक्ति तभी फलित होती है जब शिव की स्थिरता उसका आधार हो। सावन की पहली सोमवारी कोई तिथि नहीं, एक भावनात्मक अनुभव है। यह वह क्षण है जब वर्षा की हर बूँद शिव का नाम लेती है, हर स्त्री माता पार्वती की तरह प्रार्थना करती है और हर भक्त अपने भीतर बसे शिव को महसूस करता है।
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