Lucknow News : तीव्र गति से आने वाले विचार हमें प्रसन्न रहने से हैं रोकते
-लखनऊ विवि के मनोविज्ञान विभाग में शुरू हुआ फैकल्टी डेवलपमेंट प्रोग्राम
लखनऊ (हि.स.)। लखनऊ विश्वाविद्यालय के मनोविज्ञान विभाग एवं यूजीएचआरडीसी के संयुक्त तत्वावधान में एक सात दिवसीय फैकल्टी डेवलपमेंट प्रोग्राम का उद्घाटन सोमवार को डीन फैकल्टी ऑफ आर्ट्स प्रो. बीके शुक्ला ने किया। उद्घाटन सत्र में दिल्ली विश्वविद्यालय के मनोविज्ञान विभागाध्यक्ष प्रो. आनंद प्रकाश ने कहा कि हैप्पीनेस बहुआयामी निर्मित है, जिसमें जैविक, सामाजिक, मनोविज्ञानिक, राजनीतिक और पर्यावरण जैसे विभिन्न पहलू हैं। उन्होंने हैप्पीनेस पर शोध करने के लिए गुणात्मक और मात्रात्मक दोनों विधियों का प्रयोग करने का सुझाव दिया।
फैकल्टी डेवलपमेंट प्रोग्राम के प्रथम दिन अन्य दो सत्रों के वक्ता व्यास यूनिवर्सिटी, बंगलौर के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. ज़ुडू इलावरसु एवं प्रो. मधुरिमा प्रधान रहे। डॉ. ज़ुडू ने कहा कि मन के बंधन जैसे बाध्यकारी चिंतन, तीव्र गति से आने वाले विचार, परिसीमाएं हमें प्रसन्न रहने से रोकते हैं। इसका समाधान योग अभ्यास को जीवन का अंग बनाकर, अपने गुणों की पहचान कर एवं कर्म योग द्वारा किया जा सकता है।
प्रो. मधुरिमा प्रधान ने कहा कि पाश्चात्य मनोविज्ञानिक हैप्पीनेस की संरचना का अध्ययन कर यह बताते हैँ कि जीवन में अधिक सकारात्मक भावो एवं कम नकारात्मक भावों की अनुभूति एवं जीवन में अधिकाधिक संतोष प्राप्त कर हैप्पीनेस को प्राप्त किया जा सकता है। लेकिन, भारतीय मनोवैज्ञानिक हैप्पीनेस को एक स्थूल से सूक्ष्म की यात्रा के रूप मे देखते हैं। वे न केवल हैप्पीनेस क्या है, इसके बारे में बताते हैं, वरन एक स्थायी प्रसन्नाता को प्राप्त करने के उपाय भी बताते हैं। एक सुखी मन, एक दुखी मन से भिन्न कार्य करता है। एक सुखी व्यक्ति सकारात्मक विचारों, सूचनाओं से भरता है, अपने आत्म-गौरव को उच्च रखता है, आंतरिक अंतरद्वदों से बचता है और उसमे उच्च स्तर की आत्म-नियंत्रण की क्षमताएं होती हैं।
उन्होंने कहा कि पाश्चात्य मनोवैज्ञानिक जीवन में सुखी रहने के अनेक उपाय एवं विधियां बताते हैं। भारतीय मनोवैज्ञानिक जीवन में कायम रहने वाले स्थायी आनंद का रास्ता बताते हैं, जिन्हें पंचकोशों की देखभाल एवं सक्रिय प्रयत्न द्वारा प्राप्त किया जा सकता है। योग, प्रणायाम, प्रार्थना,ध्यान एवं सकारात्मक चिंतन द्वारा इस चिर स्थायी आनंद को सहज ही प्राप्त किया जा सकता है। पाश्चात्य एवं भारतीय विधियों के समन्वय से ही जीवन मे स्थायी आनंद प्राप्त किया जा सकता है एवं भारतीय संकल्पना सर्वे-भवन्तुः सुखिन: को साकार रूप दिया जा सकता है।