Gonda News: अवश्य पूरी होती है धैर्य पूर्वक सच्चे मन से की गई उपासना

श्री राम जानकी धर्मशाला में जुगल किशोर अग्रवाल की स्मृति में आयोजित कथा का तीसरा दिन

जानकी शरण द्विवेदी

गोण्डा। तमाम विघ्न-बाधाओं के बावजूद ईश्वर को प्राप्त करने के लिए वर्षां तक तपस्या में लीन बालक धु्रव के समक्ष अन्ततः नारायण को प्रकट होना पड़ा। उन्होंने धु्रव को वरदान देकर राजमहल की तरफ भेज दिया। भगवान के दर्शन पाकर ध्रुव भी बहुत खुश हुए और बेटे को दुबारा महल में पाकर राजा उत्तानपाद भी काफी प्रसन्न हुए। उन्होंने पुत्र को अपना पूरा राज्य सौंप दिया। यह कथा हमें बताती है कि धैर्य और सच्चे मन से की गई उपासना अवश्य पूरी होती है तथा पूरे परिवार को सुख व आनंद की प्राप्ति होती है। यह बात वृन्दावन धाम के ख्यातिलब्ध कथाकार पंडित राधेश्याम शास्त्री ने स्व. जुगल किशोर अग्रवाल की पावन स्मृति में रानी बाजार स्थित श्रीराम जानकी मंदिर में चल रही सात दिवसीय भागवत कथा के तीसरे दिन श्रद्धालुओं को सम्बोधित करते हुए कही।

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व्यास पीठ ने कहा कि मनु और शतरुपा के पुत्र उत्तानपाद की दो पत्नियां थी। उनका नाम सुनीति और सुरुचि था। राजा को सुनीति से ध्रुव और सुरुचि से उत्तम नामक दो पुत्र हुए। राजा दूसरी रानी सुरुचि से अधिक प्रेम करते थे। एक बार सुनीति का पुत्र ध्रुव पिता की गोद में खेल रहा था। इतने में सुरुचि आ गई और ध्रुव को गोद से उठा दिया। सौतेली माता के व्यवहार से दुखी ध्रुव दौड़ते हुए अपनी माता के पास आए। उनकी माता ने कहा कि तुम भगवान को अपना सहारा बनाओ। माता के वचन सुनकर ध्रुव को कुछ ज्ञान उत्पन्न हुआ और वह भगवान की भक्ति करने के लिए घर छोड़कर चल पड़े। रास्ते में उनकी मुलाकात देवर्षि नारद से हुई। देवर्षि ने उसे ऊं नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र की दीक्षा दी। ध्रुव यमुना के तट पर जा पहुंचे तथा महर्षि नारद से मिले मंत्र से भगवान नारायण की तपस्या शुरू कर दिया। प्रसन्न होकर नारायण प्रकट हुए और बोले कि हे धु्र्रव! तुम्हारी भक्ति से प्रसन्न होकर मैं तुम्हें वह लोक प्रदान कर रहा हूं, जिसके चारों ओर ज्योतिष चक्र घूमता है तथा जिसके आधार पर सब ग्रह नक्षत्र घूमते हैं। नारायण के वरदान स्वरूप ध्रुव समय पाकर ध्रुव तारा बने। उन्होंने कहा कि किसी बालक का चरित्र उसकी माता के गुण-दोष पर निर्भर करता है।

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व्यास पीठ ने कहा कि यदि हम उपासना करेंगे तो वासना अपने आप समाप्त हो जाएगी। वासना ही हमें सत्कर्मों की तरफ अग्रसर होने से रोकती है। उन्होंने कहा कि मनु जी महराज ने मनुष्य को जीवन में शांत रहने व क्रोध न करने की सीख दी है। हमारे जीवन से जब भोग की भावना समाप्त हो जाएगी, तब भक्ति की प्राप्ति होगी। उन्होंने कहा कि यज्ञ का मतलब है कि अपने दुगुर्णों की आहुति दे दो तथा धन का सदुपयोग करो। धर्म का मतलब है कि धारण किया जाय और बड़ों का सम्मान किया जाय। व्यास पीठ ने कहा कि भवसागर पार करने के तीन बातें बहुत जरूरी हैं-जीवों पर दया करना, हर स्थिति में खुश रहना तथा अपनी इंद्रियों का वश में करना।

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पंडित गोपाल कृष्ण शास्त्री ने अपने सम्बोधन में कहा कि शिव के परिवार में समता है। जहां विषमता भी समता बन जाय, वही शिव परिवार है। उन्होंने कहा कि जिंदगी में किसी का बुरा मत सोंचना क्योंकि जो लोग किसी का बुरा सोंचते हैं। उनका ही बुरा होता। इसलिए बड़ों का सम्मान करो। छोटों पर दया करो। इससे मन शांत रहेगा। जो बराबर के लोग हैं, उनसे समान व्यवहार करो। उन्होंने कहा कि ठाकुर जी को हमेशा खिला हुआ फूल चढ़ाओ। मुरझाया फूल मत चढ़ाओ। इसका भाव यह है कि पूजा जवानी में करो। बुढ़ापा आने का इंतजार मत करो। कथा के आयोजक अनुपम अग्रवाल ने बताया कि रोजाना तीन बजे से इस कथा का दिशा टीवी, यू-ट्यूब, फेसबुक पेज पर भी सीधे प्रसारण भी होता है। इस मौके पर स्व. अग्रवाल की धर्मपत्नी श्रीमती सरोज अग्रवाल, उनकी पुत्रबधू रश्मि अग्रवाल, अनिल मित्तल, राजेन्द्र प्रसाद गाडिया, राजीव रस्तोगी, केके श्रीवास्तव, राजा बाबू गुप्ता, डा. एचडी अग्रवाल, मुकेश अग्रवाल पिण्टू, संजय अग्रवाल, विक्रम जी, कृष्णा गोयल, अतुल अग्रवाल, संदीप अग्रवाल, रेनू अग्रवाल, अंशू अग्रवाल, अर्पिता अग्रवाल समेत सैकड़ो श्रद्धालु मौजूद रहे।

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